सिवाना डायरीज - 1
सिवाना_डायरीज - 1
'आदमी अपनी ज़िंदगी दो वेज में जीता है। एक लाॅजिकली और दूसरा इमोशनली। लाॅजिक जरूरी है क्योंकि चीजें आगे बढ़े और इमोशन्स जरूरी है क्योंकि ये ही हमें इंसान बनाते हैं। जहाँ कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, उसके पीछे खास कारण यह है कि इंटेलेक्चुअल्स अपने लाॅजिक को एक खूंटे पर बांध के बैठे हैं और लोगों की भीड़ इमोशन्स के सहारे ही चल रही है।' - इतनी फिलोसाॅफिकल बात बोलते हुए भी हमारे डिस्ट्रिक्ट कॉर्डिनेटर रवि इतने सहज लगे कि मेरे इस नये सफर से पहले दिन ही प्यार हो गया है मुझे।
पहाड़ों से रेत तक का सफर था पिछली रात का। या यूँ कहें स्थूल से सूक्ष्म की ओर। कितना एफिशिएंट, कितना फाईन और कितना एक्यूरेट, ये तो आने वाला समय ही बतायेगा। मगर नाॅन-आर्टिफिशियल लोगों की जमात हैं यहां। पहले भीलवाड़ा से वाया सिवाना बाड़मेर और फिर बाड़मेर से वापस सिवाना। कन्याकुमारी से स्वाति, शोलापुर से सागर, बंगाल से शतान्ति और राजस्थान से अपन, पंद्रह अगस्त के एक दिन बाद सारे झंडे समेट लिये जाने के बावजूद पूरा भारत एक ही कार में बैठा दिख रहा है। बाड़मेर से सिवाना आते हुए रेत के छोटे टिब्बे भी 'वाओ, दि अमेजिंग साईट' और 'इट्स दि राजस्थान' वाला फील दे रहे थे उन तीनों को। वैसे भी जिसने राजस्थान कभी भी नहीं देखा, उसके लिए पूरा का पूरा राजस्थान सेंड-ड्यून्स पर ही ठहरा हुआ है।
आसोतरा के खेतेश्वर धाम ब्रह्मा मंदिर के बगल में शिव-धूणा नाम का एक छोटा सा मंदिर और है। महिलाओं का प्रवेश आज भी वर्जित है वहां। हममें से एक भी मत्था टेकने नहीं गया उधर। सोच रहा हूँ जिस जोगमाया से ब्रह्मा-विष्णु-महेश की उत्पत्ति हुई, उसे ही भीतर प्रवेश की अनुमति नहीं? फिर काहे का शिव-विग्रह? जिनको अर्द्धनारीश्वर के रूप में पूजा जाता है, उनको आधा ही पूजने से क्या मतलब! मानस में तुलसीदासजी ने शुरुआत की पंक्तियों में ही 'भवानीशंकरौ वंदे, श्रद्धाविश्वासरूपिणौ' यूँ ही थोड़े लिखा है।
'सिवाना बाड़मेर का कश्मीर है।' - तीन लोगों से सुन चुका हूँ सुबह से और यहाँ आकर छप्पन की पहाड़ियों पर ज्यों ही नजर पड़ी महसूस भी हो गया। मेला-मैदान में भरा पानी डल से कम नहीं लग रहा। होटल के थर्ड-फ्लोर वाले मेरे रूम से कर्टेन्स हटाते ही दिखने वाला गढ़-सिवाना हिमालय वाला फील दे रहा है।
बहरहाल मन में कई बातें चल रही हैं। कुछ ठीक और कुछ अठीक भी। जिन लोगों के साथ काम करना है, वो खूब पाॅजिटिव और एनर्जेटिक है और जिन लोगों के बीच काम करना है, वो मुख्य धारा से कोसों दूर हैं। मैं एकांत अब तलक ढंग से नहीं साध पा रहा और यही चीज काटे जा रही है मुझे। बाकी सिवाना ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है जिंदगी को खुशनुमा दिखाने के लिए। चलो कल सुबह को ठीक करते हैं अभी टाईम पर सोकर। फिर से मोहित चौहान का गाया राॅकस्टार मूवी का वही गाना सुन रहा हूँ - फिर से उड़ चला/ उड़ के छोड़ा है जहां नीचे/ मैं तुम्हारे अब हूँ हवाले हवा/ दूर-दूर लोग-बाग मीलों दूर/ ये वादियाँ...
शब्बा खैर। गुड नाईट...
-सुकुमार
16/08/2022
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