सिवाना डायरीज - 10
सिवाना_डायरीज - 10
'इन्नीक निन्ने इश्तामानु'
' हाँ, मलयालम में ऐसे कहा जाता है प्रेम की अभिव्यक्ति को।
नमस्ते रोहित जी। टीनएज रोमेंस या यूँ कहूँ लड़कपन की शैतानियाँ मैंने भी की है। खूब की है। मगर प्यार, इश्क, मोहब्बत, प्रेम या प्रणयम। हाँ 'प्रणयम' कहते हैं मलयालम में प्रेम को। वो है ना थोड़ा मैच्योर हो जाने के बाद ही समझ आता है। क्रिकेटर संजू सैमसन का बैचमेट रहा है मनु। ढेरों कहानियाँ हैं उसके पास। हैदराबाद यूनिवर्सिटी मेरे जीवन को यूँ बदल देगी। कभी सोचा न था। क्यों हुआ, क्या हुआ, कैसे बढ़ा? - ये सारे प्रश्न और इनके उत्तर जल्दी ही मिलेंगे आपको। थोड़ा पेशेंस रखिये...'
सुबह-सुबह ही इतना कहकर पहला एपिसोड खत्म किया उसने। फिर जैसे-जैसे दिन ढलता गया, उसकी ऑडियो रिकाॅर्डिंग्स आती गई और शाम होते-होते एक लम्बी सी कहानी मिल गई मुझे भी लिखने के लिए।
तमिल, उड़िया, मलयालम, अंग्रेजी और हिंदी भाषा की मिक्स-वेज सब्जी जैसी है वो। हाँ मिक्स-वेज, मिक्स-वेज इसलिए कि मूलतः तमिलनाडू की होकर भी प्योर वेजिटेरियन है। बहुत ही प्यारी और चुलबुल एक दोस्त जिसने प्रेम की अपनी परिभाषाओं को थ्री इडियट्स मूवी के डायलाग 'तितलियाँ उड़ने लगती है।', 'घंटियाँ बजने लगती है' जैसा बताया। कभी लिखूंगा इस कहानी को पूरा।
बहरहाल डाॅ. गुलाटी की टोन में इतना कहूंगा - 'व्हाट अ बिजी डे।' हमारे ही उपखंड की इन्द्राणा पंचायत की गवर्नमेंट यूपीएस स्कूल कल्याण जी की ढाणी और पीएस मेघवालों की ढाणी जाना हुआ कलिग हरीश जी के साथ। पाँचवी कक्षा में दो-तीन बच्चो को छोड़कर अंग्रेजी में स्तर बहुत अच्छा है बच्चों का कल्याण जी की ढाणी में। इंग्लिश टीचर उषा शर्मा मेडम काफी फ्रेंडली और घुल-मिल गई है बच्चों से। एक सेशन गोला बनाकर केवल 'टाॅक इन इंग्लिश' का भी चलाया जाता है स्कूल में। कविता जिसके पोस्टर तैयार किये थे हमनें परसों एलआरसी में, उसके माध्यम से बच्चों के लिए अंग्रेजी आसान करने की कोशिश की। लिरिक थे उस पोएम के - 'सिंग अ लिटिल, स्माइल अ लिटिल, डु इट एवरी-डे। लव अ लिटिल, लाफ अ लिटिल, डु इट एवरी-डे...' नई-नई क्रियाएँ जोड़कर इसे और बड़ा भी किया जा सकता है। बच्चों ने हाथों-हाथ रन, वाॅक, जम्प और भी कई वर्ब्स जोड़ दी। मेघवालों की ढाणी स्कूल में चार का स्टाफ है। वहाँ भी काफी अच्छा स्तर है। हमारे भीलवाड़ा के कनेछन कलां की है एक दीदी उनमें से एक। लंच का टाईम तो ऑफिस आते-आते ही खत्म हो गया। टिफिन वालों के यहाँ ही लंच करके जब ऑफिस पहुंचे तो बालोतरा-सिवाना काॅर्डिनेटर दिनेश जी, जयपुर एचआर डिपार्टमेंट से पारुल जी और पूजा जी पहले से वहीं थे। ढेर सारी अनौपचारिक गपशप हुई। कुल मिलाकर एक प्यारा दिन रहा आज। बच्चों के साथ बिताई सुबह पूरा दिन बना देती है।
मन ठीक ही रहा। जाने क्या ऑब्जर्व कर रहा है बार-बार। खुद को ठीक करने की बजाय दूसरों पर ज्यादा ध्यान देता रहता है। एकांत ढंग से नहीं सध रहा। आगे के कुल ख़्वाब लिये जा रहे हैं, रफ्तार बहुत धीमी है। घर वाली माताजी किंवदंतियों के विपरीत ज्यादा ही ठीक सा आचरण कर रही है। बारिश हो जाने पर मेरे कपड़े छाया में ले आई सुखाने के लिए। सब-कुछ ठीक होने के बाद भी पता नहीं क्या है जो कमजोर किये जा रहा है। अकेले में खुशी क्यों नहीं मिल रही। समझ नहीं आ रहा। दो-तीन दिनों से सोने में भी बहुत देरी हो रही है रात को। हर-कुछ ही सोचते-सोचते भी बारह बज जाती है। आज भी यही हाल है। कोशिश कर रहा हूँ सो जाने की। मोबाइल में कवि रमेश शर्मा जी की कविता चला ली है - बारिशें ना मन छुएंगी/स्वप्न आना छोड़ देंगे/पतझड़ों से दुख ने होगा/नैन दर्पण तोड़ देंगे/तब मिलूँगा/तब मिलूँगा/जब तुम्हें आशा न होगी/तब मिलूँगा...
शुभ रात्रि...
- सुकुमार
26/08/2022
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