सिवाना डायरीज - 11

 सिवाना_डायरीज  - 11


दृश्य - १

भगवान ने कहा - 'हे आनंद, यह स्थान बौद्ध भिक्षुओं का प्रथम विहार होगा। बौद्ध भिक्षु यहाँ रहकर सन्मार्ग का अन्वेषण करेंगे। यही तथागत की इच्छा है।'

दृश्य -२

एक वृक्ष की जड़ में अम्बपालिका स्थिर बैठी थी। भगवान को स्थित देख वह उठी और धीर भाव से प्रभु के सम्मुख आकर खड़ी हुई। भगवान ने उसकी ओर देखा। अम्बपालिका ने विनयावनत होकर कहा-

'बुद्धं शरणं गच्छामि। 

धम्मं शरणं गच्छामि।

संघं शरणं गच्छामि।।'

तथागत स्थिर हुए। उन्होंने तत्काल पवित्र जल उसके मस्तक पर सिंचन किया और पवित्र वाक्यों का उपदेश देकर कहा -

'भिक्षुओं! महासाध्वी अम्बपालिका का स्वागत करो।'

फिर जयनाद से दिशाएँ गूंज उठी और अम्बपालिका तथागत तथा अन्य भिक्षुगण को प्रणाम कर वहाँ से चल दी और फिर वैशाली के पुरुष उसे न देख सके...

पहले दृश्य का वह स्थान जिसे तथागत भविष्य के लिए सन्मार्ग के अन्वेषण का केंद्र बता रहे हैं, वह एक वेश्यालय है और दूसरे दृश्य की अम्बपालिका नगर-वधू। आचार्य चतुरसेन की प्रिय कहानियों में से एक 'अम्बपालिका' को आज जब पढ़ा, तो महसूस हुआ कि जिंदगी हमारी सोच के परे खूब आगे तक है। इसे पढ़कर लगा कि सच में तथागत हो जाना कितना कठिन है। सरल हो जाना कितना कठिन है। दुनिया के दुत्कारे को गले लगाना कितना कठिन है। गले लगाना आसान भी हो तो आदमी में खुद में ये कुव्वत हो कि एक बदनाम कसाईखाने को इबादत-गाह कर दे। कोशिश करें हम कि तथागत का सहस्त्रांश भी पचा पायें हम खुद में।


खैर जिस दिन कुछ ठीक पढ़ या लिख लिया जाता है, अच्छा हो जाता है। मन का वो कोना तो हरा-भरा हो ही जाता है जो जिंदगी को तारीखों के आंकड़ों से लम्बाई दिये जा रहा है। सुबह नौ बजे निकल लिये थे आज हम तीनों साथी बालोतरा के लिए। दिन के उजाले में आज देख पाया मैं बालोतरा शहर को ठीक तरीके से। सुरेश जी का मानना है कि अगर क्र्यूड-ऑयल नहीं मिलता बाड़मेर के आस-पास तो बालोतरा इस जिले का सबसे बड़ा शहर हो जाता। राजस्थान सरकार द्वारा कस्बे को निकायों में नगर परिषद देना इसके बड़े शहर होने की पुष्टि करता है। बालोतरा एलआरसी पर दिन में दो बार पराठे, दही और चटनी निपटाई सभी ने। बीच में दिनेश जी ने कार्यशील पुस्तकालय पर शिक्षकों के होने वाले प्रशिक्षण की तैयारी के अपने बिंदू बताये। दिनेश जी हमारे काॅर्डिनेटर है बालोतरा-सिवाना ब्लाॅक के और उनका केन्द्र बालोतरा ही है। एक साथी राजेश जी का विदाई कार्यक्रम भी था आज शाम के समय। लगभग दो घंटे चले इस अनौपचारिक कार्यक्रम ने खूब हँसाया और खूब इमोशनल भी किया। टिकट था शाम की बस का मेरा आज, तो वहाँ से निपट सब जसोल में दि लश रेस्ट्रो एंड कैफे पहुँचे। थोड़ी फोटोग्राफी कर लेने के बाद अपने लिये ग्रील्ड-सेंडविच पैक करा मैं आ गया था ट्रेवल्स-ऑफिस में। हरीश जी को एक राउंड और एक्स्ट्रा लेना पड़ा मेरी वजह से। बस में बैठ चुका हूँ। कल सुबह भीलवाड़ा में मिलूँगा सशरीर।


मन ठीक रहा दिन-भर। मगर सोने से पहले फिर निराशा वाले ट्रेक पर हूँ। थोड़ा रो भी लिया हूँ स्लीपर में लेटे-लेटे। लब्बोलुआब यह है कि मेरा अपना कोई इमोशन है ही नहीं मेरे अधिकार में और मैंने जान-बूझकर नहीं रखा है अपने पास कुछ भी। जाने कौन चला रहा है और रोक रहा है मुझे! जाने कौन हँसा रहा है और रुला रहा है मुझे! मेरे दिमाग की नसें जो अगर लकड़ी की होती, किसी धूप के इंतजार में फुल कर फट जाती अब तक तो उलझनों की जितनी बारिशें इन्होंने झेली है। माँ और पापा दोनों का फोन आ चुका है बस में बैठाते ही। मन साथ नहीं दे रहा मेरा आज। दूर भाग रहा है बार-बार।  तीन कोशिशें कर चुका हूँ, नहीं ठहर रहा। कह रहा है कि समय के साथ सब ठीक हो ही जायेगा। आँखों के तालाब फिर भर आये हैं ये लिखते-लिखते। शाॅल या चद्दर कुछ नहीं है पास तो बस का एयरकंडीशनर शरीर को भी ठंडा ही कर देना चाहता है...

शब्बा खैर!!!



- सुकुमार 

26/08/2022

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