सिवाना डायरीज - 3
सिवाना_डायरीज - 3
'Eternal vigilance is the price of freedom.' - प्रतियोगिता दर्पण के सितम्बर वाले अंक के सम्पादकीय की अंतिम लाईन का अंग्रेजी अनुवाद है ये। मने स्वतंत्रता की रक्षा हमारे चैतन्य रहने से है। अब इस चेतना की परिधि क्या है, विद्वतजनों के मध्य होने वाला सारा शीत युद्ध इसी के इर्द-गिर्द है। सकलरूपेण स्वतंत्रता के विषय पर मनन करें तो तीन तल दृष्टिगत होते हैं। पहला जो 'राष्ट्र देवो भव:' के खूँटे को नहीं छोड़ना चाहता। दूसरा 'वसुधैव कुटुम्बकम' के साँचे से इतना प्रेम करता है कि वो राष्ट्रीयता के खूँटे का शत्रु मान लिये जाने पर भी नहीं कतराता। तीसरा और अंतिम वो जो राष्ट्रीयता के खूँटे से बंधे हुए भी वैश्वीकरण के साँचे का स्थायी सदस्य है।सैद्धांतिक रूप से विकल्प रखे जायें तो सब कोई तीसरे ही तल को चुनते है, मगर व्यावहारिक तौर पर हम सबमें यह समझ अभी कहां विकसित हुई है कि इसे अवसरवादिता न कहकर सार्थकता कह दें। मेरा व्यक्तिगत उद्देश्य स्वयं में और अपने आस-पास यही समझ विकसित करना है बस।
बहरहाल कुछ ज्यादा ही डिप्लोमेटिक हो गई ना बात! एक और खूबसूरत दिन खूबसूरत लोगों के साथ। सुरेश जी मेरे कमरे को लेकर जितनी फिक्र कर रहे हैं, मापने का कोई स्केल होता तो शायद मैं भी पीछे हूँ उनसे। एक घर देखा फर्स्ट फ्लाॅर वाला, उधड़ा हुआ है पूरा। पहली नजर में ही मना कर दिया मन ने। दिन में सुरेश जी के एक शिक्षक-मित्र ने बाहर से बताया घर। शाम को चाबी लेकर देखा तो भूलभुलैया मूवी याद आ गई। दरवाजे ही दरवाजे। एकदम से कहीं से आवाज आ जाये 'आमी मंजुलिका...' तो मुझे अपने सारे पुरखे याद आ जाये। शाम को एक बड़ा सा घर बताया एक बाऊजी ने। पर वो बहुत बड़ा है, बहुत ही बड़ा। अकेले रहना बड़ा भारी है। सिवाना के घरों और यहां की सोसाइटी के बारे में अलग से कभी बड़ा-सा लिखूंगा। ऑफिस में सुरेश जी के साथ मजा आ रहा है काम करने में। बहुत ठीक से समझाते-सिखाते हैं वो मुझ जैसे मंदबुद्धि को।
बाकी, ठीक ही था दिन मन के रास्ते में तो। पापाजी से लम्बी बात हुई। पूरा बताया उन्हें यहाँ के बारे में। अपनी मनोहरा के साथ जन्माष्टमी का व्रत रखने की सोचा है कल। मनोहरा के साथ तो निभेगा ही। व्रत के साथ कितना निभता है, देखते हैं। एकांत नहीं सध रहा रोज के जैसे। समझ भी नहीं आ रहा कि कैसे ठीक करूँ इसे। कल थोड़ा कृष्ण को घोलने की कोशिश करता हूँ देके खुद में। कुछ तो निखरेगा ही। दरवाजा खटखटा रहा है कोई। 'कौन है?' पूछने पर जवाब भी नहीं दे रहा। शायद नींद है। हाँ, वो ही है। चलो स्वागत है इसका भी। जावेद अख्तर जी की लिखी ईश्वर-स्तुति चला ली है यू-ट्यूब पर - 'हो सुनो/तो कहो/प्रभु जी हमरी है विनती/दुखीजन को धीरज दो/हारे नहीं कभी वो दुख से/तुम निर्बल को रक्षा दो/रह पाये निर्बल सुख से/भक्ति को शक्ति दो/जग के जो स्वामी हो/इतनी तो अरज सुनो/हैं पथ में अंधियारे/थे दो वरदान में उजियारे/ओ पालनहारे...
शुभ रात्रि...
-सुकुमार
18/08/2022
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