सिवाना डायरीज - 6
सिवाना_डायरीज - 6
'दिन जब आप बेवजह मुस्कुराने लगो, समझो कि वजहें आने वाली है कि तुम और मुस्कराओ।' - कहीं से उठाई नहीं है, अपने ही मन की बात है। सच भी यही है न कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। आदमी जो खूब मुस्कुराता है। दुख में भी मुस्कुराता है। भगवान जमीन पर है, ये देख लीजिये उसमें। मुस्कुराहट संवेदनाओं की सबसे खूबसूरत तस्वीर है। जहाँ जो भी, जिस भी कारण से खूबसूरत है। सब मुस्कुराहट के कारण से है। मसलन फूल पौधे की मुस्कुराहट है, बचपन जिंदगी की, इंद्रधनुष की मोहक छवि आसमां की, बारिशें मौसम की, नदियाँ जमीन की, उगते सूरज की आभा पूरब की, अस्त होते की लालिमा पच्छिम की और मनोहरा की स्मृति मेरी। जो जहाँ हैं, सबकी खूबसूरती उनकी मुस्कुराहट ही है।
बहरहाल मेरा भी एक खूबसूरत दिन। खूबसूरत इसीलिए कि आज खूब मुस्कुराया बिना वजह ही। वैसे सिवाना में रहकर भी अगर मुस्कुरायेंगे नहीं तो फिर कहाँ मुस्कुरायेंगे। होटल से सुबह ही चैक-आउट करके नये घर में आ गया। झाड़ू - पोचे से निपटकर घर बसाने के लिए जरूरी सामान लेने बाजार गया। सोप-ट्रे, कपड़े धोने वाला ब्रश, हार्पिक, लाइजोल, बाल्टी-मग, डस्टबीन, ऑडोनिल और भी बहुत कुछ। अच्छा खासा खर्चा हो जाता है इन छुटकर सामानों में भी। एक टिफिन-सेंटर से खाना भी लाकर खा लिया आज। मोकलसर में लेक्चरर लगे फूलण के जगदीश जी आये थे मिलने। ढेर सारी चर्चाएँ हुई। काफी संघर्ष-भरा जीवन रहा है उनका। सिवाना में सुरेश जी और हरीश जी के बाद एक और 'अपना' महसूस हुआ मुझे आज। कई दिनों बाद दिन में सोया। शाम को सुरेश जी के यहाँ आरव और आर्यन के साथ बातें करते-करते डिनर हुआ और फिर टहलते हुये आ पहुँचे हम अपने घर पर। कपड़ों पर इस्त्री करने का चार्ज बहुत है यहाँ सिवाना में। हमारे भीलवाड़ा-चित्तोड़ से तो लगभग दोगुना। पैसे वालों का कस्बा है ना ये, शायद इसी का परिणाम है।
मन ठीक रहा आज। एकांत साधने में आंशिक सफल भी रहा हूँ। घर पर भी दो-तीन बार बात हुई। ये लिखने से तुरंत पहले कुछ उलझन मन में बनी है, मगर सुबह होते-होते साॅल्व कर लूँगा ये भी। घर से दूर रहना जाने क्यों सुहा रहा है मुझे। समझ नहीं आ रहा। सोने से पहले जाने कैसी बैचैनी है। मन ठीक नहीं लग रहा। जिससे अपेक्षा थी इसे ठीक करने की। वो खुद पीड़ित है इसी से। कई बार हम चाहकर भी उतने ठीक नहीं हो पाते किसी के लिए, जितना हम हो जाना चाहते हैं। ईश्वर सबको खुश रखे बस। आजकल और कुछ नहीं सूझता। अभी सो जाने का मन है। और कुछ नहीं समझ रहा।
गुड नाईट...
- सुकुमार
21/08/2022
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