सिवाना डायरीज - 8

 सिवाना_डायरीज - 8

'शिक्षा विभाग!

नहीं, नहीं जी। चुनाव आयोग, स्वास्थ्य विभाग, परिवहन विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का काॅकटेल हैं जी हम। चार मेल-टीचर हैं चौदह के स्टाफ में। तीन बीएलओ है और एक एचएम सर हमारे सुपर-वाइजर। अभी वोटर-आईडी को आधार से लिंक कर रहे हैं अपने-अपने बूथ के वोटर्स की। परसों ही एसडीएम मेडम का मैसेज आया है कि प्राथमिक विद्यालयों का स्तर तो बाद में भी सुधारा जा सकता है, पहले इस कार्य को प्राथमिकता दो। पोषाहार और मिड-डे मील का चल ही रहा है। हालाँकि बच्चों के खाना बनाने के लिए पास की ही तीन महिलाएँ हैं, मगर मानिटरिंग के लिए एचएम सर ने वीकली ड्यूटी लगा रखी है। और खाद्य सामग्री भी तो अपने को ही लानी होती है बाईक के पीछे बच्चों को पकड़ाकर। कोविड टाईम में तो नाके पर आने-जाने वालों का रिकाॅर्ड रखने के लिए रजिस्टर लेकर बिठाया गया था हमें। वैसे तो डब्ल्यूएचओ ने पोलियो मुक्त डिक्लेयर कर दिया है भारत को, फिर भी सुरक्षा के लिए टीके भी तो लगवाने होंगे ना बच्चों को। उसमें भी ड्यूटी आने वाली है। मतलब ना कि एक शिक्षक सारे काम करेगा सरकार के। केवल बच्चों को पढ़ाने के बजाय। और हँसी हमें इस बात पर आती है कि राजकीय सेवा में हमारे चयन का आधार 'हाऊ टू टीच' था।'

-मेरे सिवाना के मेला मैदान स्कूल के जफर जी और संदीप जी जब मुझे ये सुना रहे थे। तभी एक सुअर खाना ढूंढ़ते-ढूंढ़ते प्रार्थना-सभा वाले चबूतरे के पास आ गया, जिसे फाटक से बाहर निकालने के लिए संदीप जी को ठेठ बाहर तक भागना पड़ा।

कल 'फतड़ाई की नाडी' और आज 'मेला मैदान' वाली स्कूल्स की बातें जब अपनी मनोहरा से शेयर कर रहा था, तो कह रहा था उससे कि अभी बहुत जरूरत है यार हमें इस पर काम करने की। बाड़मेर वह लोकेशन है जहाँ बहुत कम लोग मन से आते हैं अपनी पोस्टिंग में। मेरे माथे पर एक सिलवट भी नहीं थी, जब मैंने अपने ऑफर-लेटर में लाॅकेशन देखी थी। यहाँ आकर लग रहा है कि ठीक आया हूँ। मनोहरा भी समर्थन में है और कोशिश में है कि अगले थर्ड-ग्रेड को क्लीयर करके इधर ही आये। 


खैर एक और मिला-जुला दिन। सुरेश जी और हरीश जी सुबह अपने घर से ही फील्ड-विजिट के लिए अलग-अलग स्कूल्स निकल लिये। पहली बार मैं लेफ्ट-राईट-लेफ्ट करते आधे घंटे में पहुँचा ऑफिस। ऑफिस खोलकर मैं भी पास ही के मेला मैदान स्कूल में जा आया लंच से पहले। लंच के बाद बादल मुस्कुराने लगे जो करीबन साढ़े चार बजे शांत हुये। हाँ, मैंने परसों-तरसों ही तो कहा था - 'बारिशें बादलों की मुस्कुराहट है।'

सिवाना से मोहब्बत हो गई है। मगर जिस एक चीज ने खासा परेशान किया है, वह है यहाँ की गंदगी। लोगों की प्रैक्टिस में ही नहीं हैं अपने घर का कचरा इकट्ठा करके स्वच्छता अभियान वाले ट्रीपर में डालना। गरीब और ठीक-ठाक लोगों के साथ-साथ सो-काल्ड बड़े-बड़े लोग भी घरों का कचरा अपने ही घरों के सामने वाली सड़क पर फेंक देते हैं। ड्रेनेज सिस्टम पूरे पश्चिमी राजस्थान का बहुत ठीक नहीं है। सड़कें सारी पाई पड़ी है गंदगी से। शाम को हरीश जी और एक मित्र भूपेंद्र जी के साथ कहीं बाहर जाने का प्लान हुआ तो मेरी पहली लाईन थी हरीश जी से कि किसी साफ-सुथरी जगह ले चलो। पिछले सात-दिनों से मैंने साफ सड़क या ग्राउंड नहीं देखा है। और फिर हरीश जी ले चले हमें छप्पन की पहाड़ियों के एक भाग में। लगभग सात किलोमीटर दूर मवड़ी गाँव के पास कई झरने फूट रहे हैं पहाड़ों से। दूर से यूँ प्रतीत हो रहे थे जैसे किसी की मनोहरा अपने केश धो रही हो शैम्पू से। झरने के पानी की आवाज में भी असीम शांति मिल रही थी वहाँ पहाड़ी पर बैठे-बैठे। सही भी है आदमी को खुद को जो एक्सप्लोर करना हो, तो हो आना चाहिए पास के किसी पहाड़ पर। और वैसे भी सिवाना में आने के बाद तो बाड़मेर बाड़मेर लग ही कहाँ रहा है...!


मन पर आता हूँ। ठीक सा है। मनोहरा सम्भाले है। सोच रहा हूँ और कैसे ठीक करूँ मन को। सब-कुछ तो ठीक ही है अभी। भास्कर में एन रघुरामन जी का मैनेजमेंट फंडा कह रहा है कि - 'ये जरूरी नहीं कि हम कितना लम्बा जीते हैं, मायने ये रखता है कि हमारी जिंदगी कितनी अर्थपूर्ण और प्रभावी रही।' थोड़ा पढ़ा भी है आज तो। स्वाध्याय करो तो भी मन ठीक रहता है थोड़ा। नींद ने आवाज लगा दी है। मैं जाता हूँ अभी...

गुड नाईट...


- सुकुमार 

23/08/2022

Comments

  1. वाह,
    क्या बात है।
    बढ़िया लेखन भाईसाहब
    😊

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    1. खूब सारा धन्यवाद सर🥰🙏

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