सिवाना डायरीज - 18
सिवाना_डायरीज - 18
"पानी को पतीले में डाल आँच में रखने पर गुनगुना होकर, गर्म होकर, फिर थोड़ा उबलकर एक सीमा तक वह सब कुछ सहने की कोशिश करता है। मगर जब आँच उस हद से ज्यादा ही कर दी जाये तो वह पहले तो पतीले से बाहर निकलने लगता है और फिर एक सीमा बाद उसके ढक्कन को भी अपने वेग से नीचे गिरा देता है।"
-पूर्व केंद्रीय मंत्री और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद सहनशीलता की सीमा की बात कर रहे थे बीबीसी के साथ हुए अपने एक इंटरव्यू में। सुबह नाश्ता करते टाईम आज यू-ट्यूब ने रिकमंडेड में सबसे ऊपर ये दे दिया, तो यही देख लिया। कुछ भी कहो, आदमी भला है यार! मुझे सरप्राइज इस बात पर होता है कि अपने विचारों से इत्तर जाते ही हम कैसे कोसने लग जाते हैं साथ वाले को भी। जय-वीरू की जोड़ी थी ना कांग्रेस में अपने गहलोत साहब और आजाद जी की! एक क्षण लगा गहलोत साहब को आजाद जी को कोसने में। मसला केवल इतना है कि हम किस तक असहिष्णु हो चुके हैं। हमें कुछ भी नहीं सुनना अपने विचारों के इत्तर। और जो भी इनसे इत्तर है, सारा का सारा खराब है। अब तो ईश्वर ही भरे हम सबमें असहमति को भी सहन करने का सामर्थ्य।
बहरहाल हर दिन एंजॉय कर रहा हूं आजकल। कुछ नया, कुछ पुराना ही, कुछ थोड़ा जोड़-तोड़कर हर दिन पिछले से अलग कर रहा हूँ। आज पड़ाव था अपने डेरे का कानसिंह जी की ढाणी के प्राइमरी स्कूल में। बड़ा सा स्कूल कैम्पस, 40 बच्चों का नामांकन, उन पर एचटी सहित दो टीचर और राजस्थान के प्रारंभिक शिक्षा विभाग की अनगिन अपेक्षाएँ। एचटी दलपतराम जी अपने क्षेत्र के बीएलओ भी हैं, तो वो काम भी निपटाना होता है। चौथी-पाँचवी के बच्चों के साथ दो घंटे की लम्बी बातचीत में पढ़ाई, गतिविधियाँ, खेल और भी बहुत कुछ। एक टीचर अम्बा मैडम विश्नोई है। कोई कुछ भी कहे, एक अपनापन तो आ ही जाता है। मैडम की बजाय दीदी बोलने का मन किया, तो बोल दिया। एक-आध परिचय निकल ही गया रिश्तेदारी में। किसी खेत से ककड़ी आई हुई होगी तो दीदी ने वो भी खिलाई वहीं स्कूल में ही।
लंच के बाद ऑफिस में ही रुका शाम तक। सुरेश जी के साथ-साथ हरीश जी की भी तबियत खराब हो गई थी आज। शाम को हरीश जी के साथ सिवाना की सीएचसी गया। सफाई के मामले में सिवाना का ही लग रहा है वो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र। गौमूत्र की दो-तीन सूखी धारें इमरजेंसी-गेट के मार्बल पर वहाँ की स्वच्छता का आईना दिखा रही है। एक ही डाॅक्टर है। वह भी इमर्जेंसी होने पर कई बार नहीं मिलता। कुल मिलाकर बुनियादी सुविधाओं के मामले में बहुत पिछड़ा है अभी सिवाना।
मन कुछ ठीक नहीं है क्योंकि नया कुछ नहीं पढ़ा जा रहा है। एकांत वैसे ही चल रहा है, जैसे नहीं चलना चाहिए। अकेलापन हावी है आजकल उस पर। बहुत दिनों से कुछ ठीक लिखा भी न गया। घड़ी सी चल रही है बस जिंदगी। राउंड-राउंड। घर पर बराबर हो रही है बात। माँ आज सुबह निकल लिये हैं गढ़बोर चारभूजाजी के लिए पैदल। मनोहरा अपनी तैयारी में व्यस्त है और मैं अस्त-व्यस्त हूँ। बस दौड़े जा रहे हैं दिन। मेरी स्पीड बहुत कम हो गई है। सो जाना चाहता हूँ अभी। गाना भी बज रहा है - चलते, चलते/मेरे ये गीत याद रखना/कभी अलविदा ना कहना/कभी अलविदा ना कहना...
शुभ रात्रि...
- सुकुमार
02-09-2022
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