सिवाना डायरीज - 21
सिवाना_डायरीज - 21
"हेलो, सर प्रणाम। चरण स्पर्श!"
"हेलो, खुश रहो, खूब खुश रहो। कौन दुष्यंत!"
"नहीं सर। रोहित कुमार विश्नोई...सुकुमार..."
"ओह, रोहित! यार तेरा नाम क्यों नहीं आया यार इस फोन में! नम्बर चेंज किये क्या तुने?"
"नहीं सर। वही है नम्बर तो। चलो कोई नहीं। कैसे हैं आप?"
"मैं बढ़िया यार। तु बता, कैसे याद कर लिया आज!"
"सर आपने बहुत ही खूबसूरत पत्र लिखा आज।"
मैं अपनी बात पूरी करता, इससे पहले ही वे बोल पड़े-
"अरे वाह! तुम तो रोज धमाके करता है जो कुछ नहीं। और मेरे एक लिखे की इतनी बड़ाई।
"नही सर। मेरा लिखा कुछ भी नहीं है आपके सामने। मैं सीख रहा हूँ अभी आपसे और सबसे पहले तो साॅरी कि मैंने आपसे बिना पूछे इस पत्र को आज काम में ले लिया और अब धन्यवाद हमें आज के दिवस पर इतना प्यारा कंटेंट देने के लिए।"
"अरे नहीं-नहीं यार! ये तो गंगा है, जितने लोगों को पार लगाये उतना बड़िया।"
"जी सर। शिक्षक दिवस पर एक संगोष्ठी में वाचन किया आज मैंने इसका हमारे ब्लाॅक के कुछ शिक्षकों के सामने। सबको खरा-खरा मन दिखा एक शिक्षक का।"
-और भी खूब बातें हुई सर से। अंत में-
"बहुत अच्छा बेटा। तुम्हारी यह विनम्रता ही एक दिन तुम्हें खूब आगे ले जायेगी। खूब धन्यवाद ऐसे याद करने के लिए..."
"जी। धन्यवाद सर।"
-यहाँ जिस पत्र की बात हो रही है, उसका एक अंश रखता हूँ-
"खैर, इतने चक्रव्यूह और झंझावातों के बीच फंसा मैं ..... शिक्षक .... शिक्षक हूं न.... इसलिए हार मानने वाला नहीं हूं, डटकर सामना करुंगा.. सबको राह दिखाने का संकल्प लिया है. पूरा करना हैं जी जान से लग जाऊंगा, मुझे कोई पुरस्कार नहीं चाहिए। मेरे बच्चे खुश होकर जब मुझे याद करते हैं, ये मेरा सर्वोच्च पुरस्कार है।"
- ये जो पाती है एक शिक्षक की समाज के नाम, अद्भुत है सच में। मैंने आज तक के जितने पत्र पढ़े हैं या लिखे भी हों एक शिक्षक पर, हमारे भीलवाड़ा के एक प्राध्यापक सुनील जी डिडवाणिया का ये लिखा सबमें श्रेष्ठ है। और उनकी सदाशयता देखो, सबको श्रीजी की कृपा का नाम दे देते हैं।
बहरहाल एक और अच्छा दिन। शिक्षक दिवस था। ऑफिस में ही आमंत्रित किया था शाम के समय शिक्षकों को। आगंतुकों की संख्या 09 रही और 03 हम। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का एक अभिभावक होने के नाते अपने पुत्र के शिक्षक को लिखे पत्र, इटली के कुछ विद्यार्थियों के अपने शिक्षक के नाम लिखे पत्र और अंत में शिक्षक के समाज के नाम लिखे सुनील जी के पत्र पर चर्चा आज का दिन बना गई। ढेर सारी बातचीत के बाद दो छोटे-छोटे उल्टा-पुल्टा एक मिनट जैसे खेल खेले। बीकाजी भुजिया-नमकीन और गुड-डे बिस्किट खाये और हो गया हमारा शिक्षक दिवस कार्यक्रम।
कभी-कभी सोचता हूँ एक पूरा व्हाइट-कैनवास देता है जिंदगी का, भगवान हमें। वाटर-कलर और ब्रश भी थमा देता है हाथ में। मगर हम खींच पाते हैं क्या कुछ मनोहर स्कैच! बना पाते हैं क्या कुछ खूबसूरत चित्र! क्या फिर से सफेदी नहीं पोतना चाहते हम काफी-कुछ खींचे-लिखे पर! सोचो, अगर सफेद रंग उपयोग में लेने की अनुमति न होती तो! और पोत भी दी सफेदी तो एकदम फ्रेश वाली फीलिंग मन में बचती है क्या! सब जानते हैं हम कि यह सिर्फ शाॅ-केस है। जो विचारों की ज्यादा धूप पड़ जाये, तो पुराना बिगड़ा या बिगाड़ा सारा कुछ फिर से उभर जाये।
मन मेरा भी दबाये हैं जाने क्या-क्या। वो सब भी जो मुझे दूसरों की नजरों में गिरा सकता है। वो सब भी जो मेरा दिल ही माफ न कर पाये। कई सारा वो भी जो दूसरों से अपेक्षित था अपने दिये के बदले और खूब वो जो अगर रिवाईंड हो पाता, तो ठीक कर आता सब। मनोहरा से बात करने के दौरान दोनों के बीच होने वाली शांति अबके मौन नहीं चुप्पी लग रही है। माँ ठाकुरजी के गढ़ में हैं। पदयात्रा करके एक माँ अपने लिए तो क्या ही चाहती होगी। गुड़िया भी गाड़ी में चली गई हैं वहीं। कल जलझूलनी एकादशी है। ठाकुरजी का दिन। पता नहीं क्यों, मुझे भी बैठने का मन है थोड़ी देर उनके सामने। कहने का मन है कि बिगड़ा हुआ कैनवास, एक्सचेंज कर सकते हैं क्या? अगर हाँ, तो किस एवज में!
सोने की कोशिश में हूँ। राधाकृष्ण जी महाराज का भजन चला लिया है श्रीजी को सोचते हुए- थारी चाकरी में चूक कोनी राखूं म्हारा सांवरिया/राखूं म्हारा सांवरिया/चाकर मुहाने राखो नी/गिरधारी म्हानें चाकर राखो नी...
जय चारभुजानाथ की...
-सुकुमार
05-09-2022
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