सिवाना डायरीज - 22
सिवाना_डायरीज - 22
सुबह-सुबह-
राम-रेवाड़ी है आज। पहले जल में झूलने और फिर नगर-भ्रमण पर जायेंगे ठाकुर जी आज। जगह-जगह बेवाण निकलेंगे। कोई धोळी-फट धोती इसी रंग के कुर्ते के साथ इसलिए प्रेस कर रहा है कि कोई मना न कर सके बेवाण को छूने के लिए। चप्पलें आज धरनी ही नहीं पैरों में। हर छोटे-बड़े मंदिर ट्रस्ट ने लाल अबीर-गुलाल के कट्टे स्टाॅक कर लिये हैं। जो गढ़बोर पैदल नहीं जा सके, वे एक ही रात में पैंतीस किलोमीटर चलकर कोटड़ी पहुँच गये हैं। नई साख में खेतों में उगे मक्या-काकड़ी ठाकुरजी को अर्पण करने के लिए घरों में तैयार रखे हुए हैं। मोहल्ले की तरुणाई मोटर-साइकिलों पर ही पहुँच गई है ठाकुर जी के किसी न किसी घर। सुबह-सुबह मोहल्ले के मिलन-चौक में पापा-टाईप के लोग भी समूह बनाकर चर्चा कर रहे हैं शाम तक गढ़बोर, सिंगोली-श्याम या कोटड़ी पहुँच जाने की। मंदिरों के पुजारियों ने भी सजा दी हैं पालकियाँ। मंदिरों के बाहर वाली दुकानों वालों ने घर के दो-तीन सदस्यों को बढ़ा दिया है आज दुकानों पर। फूल-माला, नारियल, अगरबत्ती, गुलाल और प्रसाद की अच्छी ग्राहकी रहने वाली है आज। व्हाट्सएप और इंस्टा पर स्टेटस अपडेट किये जा रहे हैं लगातार पिछली राम-रेवाड़ियों वाले। व्हाट्सएप तो पूरा का पूरा 'जय छोगाळा', 'जय चारभुजानाथ', 'श्री कृष्णम शरणं मम्' और 'हे मेरे ठाकुर' से भरा हुआ है।
दोपहर तीन-चार बजे के आसपास-
जो विडियो या फोटोज दिख रहे हैं अधिकतर छतों से लिये गये हैं, ताकि ड्रोन वाली फीलिंग आये। सब तरफ लाल-गुलाल बिखरी है। कहा जाता है कि कोटड़ी-श्याम तो तीन बजे के लगभग खुद मूवमेंट करते हैं थोड़ी आज के दिन, तभी विग्रह हाथ में लेने का सामर्थ्य जुटा पाते हैं पुजारी जी। जब तक वे खुद न हिले, कोई नहीं ले जा पाता उन्हें। सफेदपोश कपड़े, लाल पगड़ी और मुँह पर धवल कपड़ा बांधे पुजारी जी जब विग्रह को बेवाण में रख देते हैं तो दुनिया की सारी ताकत उस बेवाण में समाहित हो जाती है। लाखों की भीड़ में चाहे जितने जतन कर लो, ठाकुर जी का बेवाण एक इंच पीछे की तरफ नहीं खिसकता। गढ़बोर वाले नाथ का पालकी में सवार होकर मंदिर की सीढ़ियाँ उतरने वाला वीडियो जबरदस्त वायरल हो रहा है। माँ से विडियो-काॅल में बात की तो ठाकुर जी की लाली में ऐसे रंगे हैं की पहचान भी नहीं पा रहा मैं उन्हें।
और यहाँ सिवाना में-
सुबह-सुबह ही एक रथ-यात्रा निकली। महंत नृत्यगोपाल जी गद्दी पर विराजमान हैं। आगे एक कैम्पस में सफेद कपड़े पहनें की बुजूर्ग खड़े हैं। महिलाएँ रंग-बिरंगी साड़ियों और ओढ़नियों में दोनों हाथ ऊपर उठाये तालियाँ बजा रही है। युवाओं का जत्था महाराज जी द्वारा प्रसाद के रूप में लुटाई जा रही चाॅकलेट्स के लिए नृत्य करते हुए खींचतान की मुद्रा में हैं।
-तो ऐसी रही मेरी जलझूलनी एकादशी। सारी की सारी आँखों देखी, मगर व्हाट्सएप पर! सोचता हूँ घर होता तो मैं भी कोटड़ी-श्याम पैदल जाता। और कहीं का नहीं तो अपने पुर के किसी भी मंदिर का कोई बेवाण अपने कंधे पर लेता। ठाकुर जी के सामने चंवर हिलाता। बेवाण के नीचे से बार-बार निकलता। आरती में शामिल होता। हाथ में लकड़ी और घंटी लेकर उसे बजाता। कुछ तो करता ही।
बहरहाल, यहाँ एक प्राथमिक विद्यालय, निम्बेश्वर जाना हुआ। अभी तक के मेरे विजिट किये स्कूल्स में से बेस्ट था ये। स्कूल की बिल्डिंग के जस्ट पीछे छप्पन की पहाड़ियों में से एक खड़ी है। अद्भुत लुक दे रही है। स्कूल में एंटर होते ही देखा बच्चों के फूटवियर्स करीने से जमे हुये हैं नीचे की तरफ। पानी की बाॅटल्स भी पिलर्स के चारों तरफ ढंग से जमी हुई है। प्रधानाध्यापक दूदाराम जी बहुत स्नेहिल व्यक्तित्व वाले हैं। कुल नामांकन 35 बच्चों का है और उपस्थिती लगभग 27-28 की रहती है। लंच के समय बच्चे एकदम लाईन बनाकर गये हैं खाना खाने। स्टाफ में एचएम के अलावा एक और मेडम है - मंजू जी। पढ़ाई का स्तर भी अच्छा हैं बच्चों का। कुल मिलाकर बहुत ही अनुशासित सा लगा सब-कुछ। लंच के बाद ऑफिस में ही निकला पूरा दिन।
ठाकुर जी का दिन था मगर मैं न हो पाया ठाकुर जी का प्रिय। एकांत सध नहीं रहा। कुछ है जो कमजोर किये जा रहा है बार-बार। शाम को सोने से पहले तो भारी हो रहा है सिर। उल-जुलूल जानें क्या-क्या सोच रहा है। एक मन तो है कि स्वीच-ऑफ करके साईड में रख दूँ फोन। है ईश्वर, संभालो। खुद को एक्सप्लोर करना है, मगर प्रदर्शित नहीं। अब से चुप रहूँगा दुनिया के सामने। इलाबोरेट ज्यादा करता हूँ मैं किसी भी बात को। अब जितनी जरूरत होगी, उतनी ही। नींद आवाज दे रही है। सो जाता हूँ अब।
गुड नाईट।
जय श्रीकृष्ण...
-सुकुमार
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