सिवाना डायरीज - 23
सिवाना_डायरीज - 23
'बेहद पतली गली है, उधर कार नहीं जाती।
और चूँकि कार नहीं जाती, इसलिए उधर सरकार भी नहीं जाती।'
-कितनी सच्ची बात है ना! नहीं, नहीं व्यंग्य के सिरमौर परसाई जी का नहीं हैं ये क्वोट! एक उभरते लेखक प्रशांत सागर का है। पहले रेवदर(सिरोही) और अब दौसा में एसाॅ. प्रोफेसर विष्णु शर्मा जी के व्हाट्सएप स्टेटस से उठाया है अपन ने। सिवाना पहली जगह होगी जहाँ रहने के शुरुआती दिनों में ही मेरा मन कह चुका है कि अक्खी जिंदगी गुजारी जा सकती है इत्ते। दिमाग ने कुछ रोका यह समझाकर कि बुनियादी सुविधाओं का अभाव हैं यहाँ! कैसे सरवाइव करोगे? मगर मन तो मन है। इसे तो जो रम गया, वो रम गया। बात यह है कि सिवाना की बड़े-बड़े विला-बंगलों वाली पतली गलियों के लिए भी एकदम सच है ऊपर वाला क्वोट।
-आठवीं कक्षा का एक बच्चा है गोपाराम। राजस्थान की सरकारी स्कूल्स की यूनिफॉर्म का पुराना वर्जन ओढ़े। पुराना वर्जन मने - काॅफी कलर वाली पुरानी ड्रेस। तीन जगह से घिसकर फटने में आया शर्ट और तीन-चार एक्स्ट्रा विंडो वाली पेंट। नई नहीं ली क्योंकि सरकार बदलते ही ड्रेस बदलने के पैसे नहीं है। सपना आईएएस बनने का है। आठवीं कक्षा में ही ये भी जानता है कि आईएएस बनने के लिए कुल ग्यारह पेपर और एक इंटरव्यू देने पड़ते हैं।
बहरहाल, आज अपने ऑफिस वाली सड़क पर ही सीधा चला। गोलिया भायलान राजस्व ग्राम पंचायत के ऊमसिंहजी की ढाणी उच्च प्राथमिक विद्यालय में जाना हुआ। कुल 172 के नामांकन में प्राथमिक स्तर के 105 और उच्च प्राथमिक स्तर के 67 बच्चे हैं। कक्षा आठ की कुल स्ट्रेंथ 28 है और आज की उपस्थिति 25 रही। यह गोपाराम भी इन्हीं में से एक है। संयोग से आज ही सिवाना बीडीओ हनुमताराम जी की भी एमडीएम सर्वे हेतु विजिट थी इसी स्कूल में। मतलब सब-कुछ वेल-प्लान्ड था स्कूल में। हो सकता है हमेशा ऐसी ही हो स्कूल। साफ-सूथरी और बहुत ही अनुशासित। एचएम मनसुखलाल जी वैद्य खूब काॅपरेटिव है। ईश्वर करे गोपाराम का नाम पढूँ कभी अखबार में।
अगले दिनों बहुत व्यस्त रहने वाले हैं। कल जब प्लानिंग ले रहे थे, तब दिखा कि आने वाले हर सप्ताह के हर दिन कुछ न कुछ स्पेशल इवेंट्स हैं। मसलन एमटी ट्रेनिंग, क्लस्टर वाईज टीचर्स ट्रेनिग, वीटीएफ्स और मैनेजमेंट के अनीस जी की बाड़मेर विजिट। उत्साहित हूँ बहुत इन सब इवेंट्स को लेकर। क्रियाशील पुस्तकालय पर स्कूल्स में काम बढ़ाना है।
मन ठीक रहा। क्योंकि जिंदगी कैनवास को ठीक करने की कोशिश जारी है। कुछ सुंदर से फूल हटाये इससे, क्योंकि शायद वो खुश नहीं थे इस ज़मीन पर। इस कैनवास की पहचान मधुमालती को भी अपनी खुशी चुन लेने की छूट दे दी है ताकि विचारों के बोझ से हल्का हो जाये थोड़ा ये। घर पर सब ठीक नहीं है। सबके अपने-अपने इगो-इश्यूज है। सबके मन में ये है कि मैं इतना करके या सहके भी चुप हूँ। नहीं आ रहा कुछ समझ में। मैं किसे-किसे ठीक करूँ जब खुद ही उधेड़-बुन में रहता हूँ। पहला काम खुद को ठीक करने का सोचा है। बाद में देखेंगे सब। संदर्भ पुस्तिका से दो आर्टिकल पढ़ने थे गणित से सम्बंधित। आज नहीं पढ़ पाया। सुबह देखता हूँ। अभी तो नींद दस्तक दे रही है। चलो सोते हैं।
गुड नाईट...
- सुकुमार
08-09-2022
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