सिवाना डायरीज - 24

 सिवाना_डायरीज  - 24


'हुलस रहा माटी का कण-कण, उमड़ रही रस धार है।

त्योहारों का देश हमारा, हमको इससे प्यार है ।।

मनभावन सावन आते ही...''

-चौथी कक्षा की साहिबा और सुगना बुलवा रही थी धीमी आवाज में ये पूरी कविता चौथी-पाँचवी की कम्बाइन्ड क्लास को। मगर थोड़ी तो रटी हुई न होने के कारण और थोड़ी शरम के कारण हिचकिचाहट हो रही थी दोनों को। शिक्षक धन्नाराम जी के "जो...रूं बोलो, रोट्याँ कोनी खाई कांई!" कहते ही साहिबा की आवाज में और भी मंदी आ गई। अब इनका साथ देने का जिम्मा पाँचवी के नटखट कुशाल का था। कुशाल आया और फिर से जोर से स्टार्ट की कविता - 'हुलस रहा माटी का कण-कण।' अबकी बार कुशाल की आवाज दबाने को साहिबा और सुगना भी जोर-जोर से बोलने लगी। लास्ट वाला 'भारत माता की जय' तो पूरे स्कूल को गुंजायमान कर देने वाला था कुशाल के आते ही उन बच्चियों में भी जोरदार उत्साह आया।

मुद्दे की बात यह है कि बाल-मनोविज्ञान समझ रहा हूँ आजकल। समझ रहा हूँ कि रटने, याद हो जाने और समझ आ जाने में कितना अंतर है! समझ रहा हूँ कि बच्चे सोचते कैसा होंगे आखिर? उन्हें कैसे दिखती होगी ये दुनिया?


खैर, सिवाना ग्राम पंचायत के ही राजकीय प्राथमिक विद्यालय, पिपलिया नाथ जी की कुटिया में भ्रमण था अपना आज। एज युजअल वही दो टीचर्स का स्टाफ। 45 बच्चों का नामांकन और लंच में थी आज खिचड़ी। इस पर जोर इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि एचएम धन्नाराम जी ने जोर नहीं दिया था मुझे इसे खिलाने पर। बस एक बार आग्रह करके आगे बढ़ गये। काश पता होता उन्हें कि मैं ऐसा हूँ कि खिचड़ी खाने के लिए तो मर चुके होने के बाद भी एक बार उठकर आ जाऊँ। बस खिचड़ी की खुशबू मुझे बार-बार इनवाईटेशन दे रही थी। लंच में घर आकर आज अपनी फेवरेट करेले की सब्जी बनाई फिर। तब जाकर शांति मिली पेट को।


मन का क्या बताऊँ! इसकी पहचान मधुमालती नहीं चाहती अब ये जमीन। अपन ने भी हँसते हुये स्वीकृति दी है। उसके बिना इसे बाग भी कौन कहेगा खैर। मगर उसका खिलते रहना भी तो जरूरी है ना! मधुमालती रहती, तो तितली आती, भँवरे आते, गिलहरी आती। सब मिलकर सपने देखते। जुटते उन्हें पूरा करने को। अब किसी पुरानी तहसील के डाक-बंगले सा हो जायेगा ये। अनचाहे उगे अंग्रेजी बबूल, जानवरों की शरणस्थली और मोहल्ले का कचरा-पात्र। सिवाना अब कचोटेगा शायद। शायद ये लिखना-पढ़ना रुक जाये। शायद आखिरी पन्ना हो ये डायरी का। शायद...

खैर, हैव अ हैप्पी लाईफ अहिड मधुमालती...


- सुकुमार

08-09-2022

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