सिवाना डायरीज - 25

 सिवाना_डायरीज  - 25


'वो जो खुद में से कम निकलते हैं

उनके जहनों में बम निकलते हैं

आप में कौन-कौन रहता है?

हममें से तो सिर्फ हम निकलते हैं...'

-बड़बोला हूँ मैं। शुद्ध हिंदी में वाचाल। काॅल आता है जब किसी का तो मिनिमम 05 मिनट ले लेता हूँ मैं। व्हाट्सएप पर जितने कन्वर्सेशन्स हैं, सामने वाले से दोगुना या तीन गुना मेरी ओर से लिखा गया है। बात खत्म होते टाईम भी कोई स्माईली या हाथ जोड़ने वाला इमोजी मेरा ही होगा। चाहकर भी न रोक पाया आज तक खुद को एक्सप्रेस करने से। कई बार तो रुक जाने के बाद खुद ही महसूस भी होने लगा है। एक इमेज है काफी टाईम से फोन में, जिसमें लिखा है - 'Stop telling people more than they need to know.' रख इसलिए रखी है इसे फोन में कि दिखती रहे, तो कभी आजमा पाऊँ खुद में। कई दफा कोशिश की, मगर अब तक तो सिफर ही रहा सब। ऊपर लिखी कुमार सर की लाईन हौसला देती है ऐसा ही करते रहने को! हाहाहाहा। आदमी चाहे तो अपने लिए अलग अर्थ निकाल ही लेता है किसी भी चीज का। सच तो यह है कि - 'अति सर्वत्र वर्जयेत।' मैं भी उसकी सीमा के आस-पास ही हूँ। खुद पर काम करना है। कोशिश में हूँ...


बहरहाल, सीखने-सिखाने में एक और अच्छा दिन। राजस्थान के सरकारी स्कूल्स में अब तक के देखे स्कूल्स में सबसे अठीक। सिवाना की गोलिया भायलान ग्राम पंचायत में यूपीएस, दानाराम की ढाणी कक्षा सातवीं तक है। एक पैराटीचर जो की एचएम भी है के अलावा दो फर्स्ट लेवल टीचर्स और हैं। स्कूल कैम्पस के नाम पर यात्री प्रतीक्षालयनुमा बने दो कमरे और एक छोटा सा ऑफिस बस। कक्षा पहली और दूसरी मिक्स में दायीं तरफ वाले खेत की मेड़ की बोरड़ी के नीचे जाजम पर बैठी है और छठ्ठी और सातवीं कंकहड़ी-अन्ना की छाया में। तीसरी एक कमरे में जिसमें स्कूल का स्टोर भी है और चौथी-पाँचवी दूसरे में। बरामदे में बाईजी खाना बना रही थी बच्चों के लिए। बोरड़ी के नीचे वाली कक्षा में बैठा में। बच्चों ने सिखाया कि गिलहरी को मारवाड़ी में 'टिलूड़ी' बोलते हैं। एक चिड़िया के अंडे भी बच्चों ने सहेज रखे है एक डाली की कोटर में। सब-कुछ ठीक सा लग रहा था क्लास में, बस ये स्कूल नहीं लग रही थी।

दोपहर से शाम पूरी ऑफिस में बीती। बीच में सीबीईओ ऑफिस भी जाना हुआ क्लस्टर ट्रेनिंग के सेशन्स के लिए, पर किशोरी बालिका वाली वर्कशाॅप्स है विभाग की अगले दो सप्ताहों में। सीबीईओ अपने भीलवाड़ा के ही हैं श्रोत्रिय जी। ढेर सारा परिचय निकला उनसे भी। 


मन दिन-भर उतना ठीक न था। लंच के बाद स्थितियाँ सहज हो ही गई। शायद मधुमालती को भी लगाव तो है ही इस ज़मीन से। ठीक कर लिया हमनें मिलकर सब-कुछ, जो पिछले दिनों बिगड़ा था। खुशबू को टायफाईड हो रखा है वहाँ। मगर तबियत ठीक है अभी। सिया से बात करने में हमेशा मजा आता ही है। कैसे कह दूँ कि ठीक नहीं चल रहा। कल नानाजी आने वाले हैं यहाँ। सिवाना वाले अपने घर पहले अतिथि। एक्साइटेड हूँ। खीर बनाकर खिलाऊँगा उन्हें। अभी सोने का टाईम हो गया है। चलो सो जाते हैं। गाना सुनने का मन है। चला लिया है मोबाइल में- मैंने पूछा चाँद से कि देखा हैं कहीं/मेरे यार सा हसीं/चाँद ने कहा/चाँदनी की कसम/नहीं, नहीं, नहीं...

शब्बा खैर...

शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

09-09-2022

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