सिवाना डायरीज - 26
सिवाना_डायरीज - 26
"मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या क्या याद है।
वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है।।
यूँ तो दश्ते-दिल में कितनों ने क़दम रक्खे मग़र।
भूल जाने पर भी एक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा याद है।।
उस बदन की घाटियाँ तक नक़्श हैं दिल पर मेरे।
कोहसारों से समंदर तक को दरिया याद है।।
मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी।
लेकिन उसको वो तरजुमे के साथ कलमा याद है।।"
-पाकिस्तान के मशहूर शायर और मेरे साॅ-काल्ड होल टाईम फेवरेट तहज़ीब हाफी की गजल हैं। शुरुआती तीनों शेर कितने गज़ब लग रहे हैं ना! लग तो चौथा भी रहा है, मगर ये चुभ भी रहा है। बचपन से पढ़ता आया हूँ कला दो देशों के बीच की खाई को पाटती है, कला बाॅर्डर्स को पिघला देती है, कला दिलों को जोड़ देने के लिए है और भी ब्ला-ब्ला-ब्ला। मगर एक विडियो में इस शेर को सुनने के बाद एक अच्छे फनकार से इत्तर क्या रिस्पेक्ट दे पाऊँगा मैं हाफी सा'ब को! यहाँ तो बड़ी साफगोई से विवशता जताई जा रही है कि - 'मुझसे वो काफिर मुसलमाँ तो न हो पाया कभी।' मतलब क्या है इस लाईन का? यही ना कि उसको मुसलमाँ करना था मुझे! 'इज देयर एनी हिडन एजेंडा?' - कि जिसके आरोप लगते रहते हैं, वैसी ही गलती कर दो आप। अनएक्सेप्टेबल सा है मेरे लिए। मन दुख रहा है उनके इस लिखे पर...
खैर, शनिवार मतलब आजकल छुट्टी का दिन होता है हमारे यहाँ। बाल्टी के पानी में लाइजोल डालकर पोचे को अच्छे से रगड़ने का दिन। आधा दिन झाड़ू, पोचे, कपड़े धोने और उन पर इस्त्री आदि में ही निकल गया। बचे हुए में पंचायतीराज के स्ट्रक्चर को समझना चाहिए रहा था मगर ठीक कंटेंट न मिल पाया। अरावली के उस पार रहने वाले हम लोगों के लिए मारवाड़ पूरा एक ही है। उधर से लगता है कि सांचौर से बाड़मेर भी बहुत पास है और बीकानेर भी। नानाजी सांचौर से दो सौ किलोमीटर की यात्रा करके सिवाना आये हैं केवल मुझसे मिलने। दोपहर और शाम पूरी नानाजी को यहाँ तक लाने में लग गई। पहले लियादरा से सांचौर, फिर सांचौर से बालोतरा और लास्ट में बालोतरा से सिवाना। खीर, रोटी और लाॅकी की सब्जी बनाई है आज नानाजी के आने पर। बहुत मन से कोशिश की है पहली बार अपना बनाया प्रोपर खाना सर्व करने की। मूँग-पापड़, मसाला, खाखरा और सलाद एडिशनल थी। बहुत खुश हूँ आज कि मेरे घर से पहले सदस्य नानाजी आये हैं सिवाना। गर्मी ने सबको बेहाल कर रखा है इधर। चालीस से ऊपर जा रहा है पारा।
मन ठीक है। विडियो-काॅल पर माँ-पापा बहुत खुश है नानाजी को यहाँ देखकर। मौसी और नेहा से भी बात की विडियो में ही। जब तक सिवाना नहीं पहुँचे नानासा, मामासा बहुत चिंता में थे फोन पर। आज हँसी-खुशी में निकला है पूरा दिन। कोशिश करूँगा कि नानासा को जैन तीर्थ नाकोड़ा जी ले जा पाऊँ कल। बाकी कल देखते हैं। थकान की वजह से नानाजी सो गये हैं। मुझे भी नींद आई है। चलो अब सोते हैं।
शुभ रात्रि...
- सुकुमार
10-09-2022
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