सिवाना डायरीज - 27
सिवाना_डायरीज - 27
"ओऽम् हीँ क्लाम् क्लीम् क्लुम
खाम खीम खुम स्वाहा कुरुं कुरुं
आपदा उद्धारणाय, स्वर्ण आकर्षणाय
श्री नाकोड़ा भैरवाय, मम् दरिद्रम् निर्मूल करणाय
लोकेश्वराय, साँणदाय, ओऽम् महा भैरवाय नमो नमः।।"
-संगमरमर के एक खम्भे का सहारा था मुझे, जिस पर मनमोहक कारीगरी हो रखी थी। पसीना ललाट से बहता हुआ आँखों की पलकों पर भारी लग रहा था। एक लम्बी कतार जिसमें हर पीछे वाला आगे वाले को जल्दी आगे बढ़ने की कहता है और आगे वाला पीछे वाले को उलाहना देता है कि धक्का क्यूँ दे रहे हो। उस खम्भे के सहारे कमर टिकाकर यही कोई तीन-चार मिनट रहा होऊँगा मैं। मंदिर के अहाते में पाठ करने वाले श्रद्घालुओं को देख रहा था। हमारी कतार वाली रस्सी के दूसरी तरफ पास ही में एक भैया भैरव-स्तवन का पाठ कर रहे थे। उसी छोटी सी बुकलेट के पहले पेज पर ऊपर वाला मंत्र था। लिखा था - इस सर्वसिद्धीदायक कम से कम नौ बार या सत्ताईस बार जरूर पढ़ें। अपनी जगह से हटने से पहले नौ बार मैंने भी स्तवन किया इस मंत्र का। आगे जो हो भैरव दादा की इच्छा...
खैर, बढ़िया दिन। बढ़िया क्योंकि नानाजी यहीं थे। सिवाना वाले अपने घर। कल रात ही योजना बना ली थी मैंने आज नानाजी के साथ दर्शन की। पहले आसोतरा में खेतेश्वर ब्रह्मधाम, फिर जसोल में माजीसा रानी भट्टियाणी जी और फाइनली नाकोड़ा भैरव जी। घर से निकलकर तीनों जगह दर्शन कर पाँच घंटे में वापस घर आ गये थे हम। नानाजी के साथ फंडा यह है कि वे बाहर का कुछ भी नहीं खाते। मतलब ना कि मेरी योजना वाला नाकोड़ा जी के यहाँ वाला भोजन-प्रसाद भी छूट गया आज। घर आकर बनाया फिर खाना। खेतेश्वर ब्रह्मधाम अपने पुष्कर वाले जगत-नियंता ब्रह्माजी के अलावा एक और ब्रह्म मंदिर है। यहाँ की साफ-सफाई नानाजी को भा गई। इधर के राजपुरोहित समाज के ट्रस्ट के पास है जिम्मा मंदिर के प्रबंधन का। भारत के पूर्व वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री स्वर्गीय जसवंतसिंह जी के गाँव जसोल में बिराजी माजीसा भट्टियाणी माताजी के महलनुमा मंदिर में नवरात्रि की तैयारियाँ जोरों-शोरों पर हैं और नाकोड़ा जी तो अंतरराष्ट्रीय तीर्थ है ही। तीन-तीन देवस्थानों के दर्शन से दिन बन गया आज तो।
मन ठीक है। एक शब्द बार-बार काम में लेता हूँ 'निष्ठा', स्वयं के प्रति नहीं निभा पाने का एक छोटा सा मलाल कभी-कभी परेशान करता है। नानाजी के यहाँ होने से ननिहाल वाले घर पर भी कई लोगों से बात हुई। मन खुश ही रहा क्योंकि कुछ और सोचने का समय ही न मिला। मनोहरा सम्बलन के लिए है मेरे। ज्यों आल्हादिनी शक्ति हैं वृषभानुजा माधव की, वैसे ही है मनोहरा अपनी। ईश्वर करे सब लोगों के सब दिन यूँ ही हँसते-मुस्कुराते बीते, जैसा आज मेरा था। नानाजी को बैठा दिया है भीलवाड़ा वाली बस में। थक गया हूँ आज जोरों से। अब नींद आई है। चलो सोते हैं।
गुड नाईट...
- सुकुमार
11-09-2022
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