सिवाना डायरीज - 28
सिवाना_डायरीज - 28
'हजार बर्क़ गिरे, लाख आंधियाँ उट्ठे।
वो फूल खिलके रहेंगे, जो खिलने वाले हैं।।'
-बटुकी धारणा गाँव की खो-खो टीम में आई है सिवाना, ब्लाॅक स्तरीय राजीव गांधी ग्रामीण ऑलम्पिक खेलने। नौ खास खिलाड़ियों के अतिरिक्त चुने गये तीन में से अंतिम वाली है वो। मुख्य टीम में इसलिए नहीं आ सकी क्योंकि ट्रायल के दिन वो टाईम पर न जा सकी। उसकी माँ का कहना था कि लड़कियाँ घर के काम के लिए होती है, ऐसे दौड़-भाग के लिए नहीं। और इस कारण वो उसे घर के काम में उलझाये रखती थी। पहला मैच जैसे-तैसे जीता धारणा ने, मगर तीन खिलाड़ी घुटने फोड़ बैठे अपने। पोस्ट-लंच पीटीआई मेडम खेलने वाले नौ खिलाड़ियों को चुन रही थी, बटुकी चुपचाप एक तरफ खड़ी थी। अपने खेल पर भरोसा तो है उसे मगर यह जानती है कि यहाँ एक्स्ट्रा ही बनकर रह जायेगी वो। इसी बीच सातवें नम्बर पर नाम बोला पीटीआई मेडम ने उसका। उसकी बाँछें खिल गई। टाॅस हुआ। उनकी टीम को 'रनर' बनने का मौका मिला। पीटीआई मेडम ने उससे पूछा - "बटुकी, रनर जायेगी तो आउट तो नहीं हो जायेगी ना जल्दी?" बटकी ने हामी में सिर्फ गर्दन हिला दी। धारणा की तरफ से पहले तीन रनर्स में से एक बटुकी थी। सामने वाली मोती मोतीसरा की टीम ने पहला मैच टूर्नामेंट-विनर की तरह खेला था। सब टीमें स्कूली टूर्नामेंट्स में भी डरती थी उससे। मोतीसरा के चेजर्स ने पहले ढाई मिनट में ही धारणा के दो रनर्स को चलता कर दिया था। अब अकेली बची थी बटुकी। मोतीसरा के सारे नौ खिलाड़ी बचे हुए साढ़े छः मिनट उसे आउट करने का जतन करते रहे। मगर वो नहीं रुकी उनसे। फेक-खो, सडन-खो, डाइविंग और पाॅल-डाइविंग जैसे सारे नुस्खे अपना लिये थे मोतीसरा के खिलाड़ियों ने। मैच से दस सैकंड पहले बटुकी की साँसें जोरदार फूली, मगर रुकी नहीं वो। एक लम्बी साँस भरकर बचा हुआ टाईम भी निकाल लिया उसने। समय समाप्त होने की विशल जब रेफरी ने बजाई, तब मोतीसरा का स्कोर केवल दो था। अब रनर बनने की बारी मोतीसरा की थी। नौ मिनट में धारणा ने मोतीसरा के कुल सात रनर्स को आउट किया, जिसमें से चार बटुकी की भेंट चढ़े। अंतिम तीस सैकंड्स में जब बटुकी जोरदार हांफ चुकी थी। लास्ट डाइव करके उसने मोतीसरा के सातवें खिलाड़ी को आउट किया था। मैच खत्म होते ही हांफते हुये वो दौड़कर मैदान के बाहर गई और घुटनों के बल बैठकर रोने लगी। पीटीआई मेडम और उसके बाकी साथी उसके पास पहुँचे और मेडम ने उसे कसकर गले लगा लिया। जब सब अपने-अपने आवास की तरफ लौट रहे थे, पीटीआई मेडम को काॅल आया कि मैच देख रहे बीडीओ सर ने बटुकी को ब्लाॅक की टीम के लिए चुना है।
ये पूरा प्रसंग अपनी डायरी में क्यूँ लिख लिया मैंने? नहीं पता। मगर, साहिर लुधियानवी का ऊपर वाला शेर आज के दिन के लिए बटुकी पर था।
बहरहाल, एक और अच्छा दिन। नानाजी पहुँच गये हैं भीलवाड़ा।। दो स्कूल्स को विजिट करने का टार्गेट लिया है अब एक दिन में। सबसे पहले गोलिया पंचायत के ही यूपीएस, गुंगरोट स्कूल गया और फिर सीनियर सैकंडरी, गोलिया। एचएम खींची सर बहुत हेल्पिंग हैं। प्राईमरी की शालू मेडम अपने भीलवाड़ा की ही हैं। उनकी गुड़िया चैरी मुझे फर्स्ट क्लास में ले गई खींचकर, और बोली - "हमें पढ़ाओ।" गोलिया सीनियर स्कूल की हालत खराब है। बारह कक्षाओं के लिए चार का स्टाफ, जिनमें से दो एब्सेंट। एक सेकंड ग्रेड जयप्रकाश जी कार्यवाहक पीईईओ का काम देख रहे हैं और बचे रशीद जी सारी बारह कक्षाओं को सम्भाल रहे हैं। ये सब देखना ही मुश्किल लगा मुझे। लंच बाद ऑफिस आने के बाद वही दैनिक कार्यक्रम और फिर स्कूल-ग्राउंड में ही ऊपर वाला खो-खो का मैच। घर आया, टाईम-टेबल बनाया और नींद के झोंके आने लगे है।
मन ठीक है। इसे टाईम ही नहीं देना चाहता अब कुछ भी उल्टा-सीधा सोचने का। खुद के बनाये टाईम-टेबल पर कितना खरा उतरूंगा, ये तो वक्त बतायेगा। मगर हाँ मैं कोशिश जरूर करूँगा। अब नींद भी आने लगी है। चलो सो ही जाते हैं।
गुड नाईट...
- सुकुमार
12-09-2022
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