सिवाना डायरीज - 29

 सिवाना_डायरीज  - 29


"जब राजनीति में धर्म प्रवेश कर जाये तो रामायण होती है और धर्म में राजनीति तब महाभारत।"

-पुराना कहीं पढ़ा हुआ है ये क्वोट। शाश्वत प्रतीत होता है। आज-आज में एक अखबार से, एक आज तक न्यूज चैनल से और एक सोशल मीडिया से तीन खबरें एक ही बिंदू के आस-पास दिखाई दी। पुष्कर में गुर्जर नेता स्व. कर्नल किरोड़ीसिंह बैसला जी के अस्थि-विसर्जन कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं के  विरोध-प्रदर्शन पर राजस्थान सरकार के खेल एवं युवा मामलात मंत्री श्री अशोक चांदना जी को ट्विट करना पड़ गया कि- "मुझ पर जूता फिकवाकर सचिन पायलट यदि मुख्यमंत्री बने तो जल्दी से बन जाये क्योंकि आज मेरा लड़ने का मन नहीं है। 

जिस दिन मैं लड़ने पर आ गया तो फिर एक ही बचेगा और यह मैं चाहता नहीं हूँ।" उधर देश के गृह मंत्री अमित शाह जी जब सूर्य नगरी जोधपुर के ओबीसी कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। दो बार के पूर्व सांसद जसवंतसिंह जी विश्नोई को मंच पर स्थान न देने को विश्नोई समाज की तौहीन बताया जा रहा है। दोपहर में लंच के वक्त न्यूज स्टार्ट की तो 2024 में विपक्ष के एक होने की संभावना पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव जी का इंटरव्यू ले रहे थे आज तक के वरिष्ठ पत्रकार देबांग। अखिलेश बाबू का कहना था कि मोदी और योगी सरकार ने प्रशासनिक लवाजमे को साथ लेकर वोटिंग लिस्टों में जान-बूझकर यादवों और मुस्लिमों के बहुलता वाले इलाकों में फेरबदल की।

-उक्त तीनों परिस्थितियाँ इस जाति और समाज वाले बिंदुओं से जुड़ी है। और समाधान? समाधान यह है कि राजनीति का यही ढंग रहा तो एक दिन कम जनसंख्या वाली जातियों को मतदाता सूचियों से अपना नाम खुद विदड्राॅ करवाना पड़ जायेगा। कुमार विश्वास सर की वो एक लाईन - "जाति है कि जाती नहीं" विवशता हो चुकी है हम सब की। जाने कहाँ ले जायेगी ये अब हमें। सोचता हूँ तो निराश सा हो जाता हूँ...


बहरहाल, दौड़ चल रही है अपनी इस स्कूल से उस स्कूल तक की। आज गोलिया पंचायत की ही दो स्कूल्स में गया था। पहली उच्च प्राथमिक, पीपलून और दूसरी प्राथमिक, नगा पीपलून। दूसरी फैकल्टीज और स्कूल का स्ट्रक्चर बदलते रहे हैं। मगर जो पीपलून में चिरस्थाई है, वो है मीना मेडम। वो ही प्रबंधक, वो ही एचएम,  वो ही टीचर और वो ही बाईजी भी। सब रोल निभाये हैं उन्होंने इस स्कूल में। अब दो नई टीचर्स आई है वहाँ, तो खुश है वो। तीनों से खूब सारी बातें करने के बाद कक्षा छः और सात को एक साथ लिया मैंने। मैं एक ठीक-ठाक टीचर भी हो सकता हूँ - महसूस हुआ जब पाँच-छः बच्चे तो पीछे पड़ गये मेरे कि आप कहीं नहीं जाओगे। हमें लंच भी नहीं करना। बस आप यहीं क्लास में ही रहो। पूरी क्लास तब तक दरवाजे पर रही, जब तक अपनी आई-स्मार्ट उनकी नजरों से ओझल नहीं हुई। प्राथमिक विद्यालय,  नगा पीपलून छप्पन की पहाड़ियों के बीच स्थित है। लगभग तीन किलोमीटर की पगडंडी के बाद। अपने भीलवाड़ा की अंकिता दीदी लगी हैं वहाँ पिछले तीन सालों से। खूब सम्भाल रखा है बच्चों को। अभिमन्यू सर भी है एक वहाँ। इतनी दूर और दुर्गम स्कूल को खुद चुना है उन्होंने। नमन करने का मन होता है ऐसे टीचर्स को। दोनों स्कूल्स में जो काॅमन है, वो ये है कि दोनों में एक-एक टीचर और है। मगर वो सिर्फ साईन के लिए आते हैं। दोनों गाँवों के ठाकुर साहबों के लड़के। इनके पुरखों ने स्कूल्स के लिए ज़मीन दी थी, इसलिए ये भी फैकल्टीज है और बस साईन करके चले जाते हैं। अभी तक यूँ सामंतवाद है अपने यहाँ। जानकर बड़ा अजीब लगा मुझे ये सब। 

लंच के बाद ऑफिस के काम में लार्ज स्केल कैंप की तैयारियाँ थी। छः टीचर्स को भेजना है ब्लाॅक से विजयपताका तीर्थ, सिरोही में आवासीय शिविर के लिए। सुरेश जी काफी प्रयत्न कर रहे हैं। मैदान में चल रहे टूर्नामेंट में मेरी फेवरेट बटकू की धारणा टीम हार गई है मूठली की टीम से।


मन ठीक नहीं  है। एकांत ठीक नहीं चल रहा। कम्फर्ट जोन से बाहर नहीं आ पा रहा। घड़ी का कांटा और कैलेंडर का पेज रोज बदले जा रहा है। क्या हो रहा है, समझ नहीं आ रहा। देखते हैं, अपना खुद को लिखना है या कहीं लिखा हुआ है! अब नींद आई है।

गुड नाईट...


- सुकुमार 

13-09-2022

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