सिवाना डायरीज - 30

 सिवाना_डायरीज  - 30


"खेल ही नहीं, दिल भी जितिये। शुभकामनायें..."

-एक बल्ले पर अपनी मोहक कर्सिव हिंदी राइटिंग में लिखते हुए वह बल्ला  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने कप्तान सौरव गांगुली को भेंट किया सन् 2004 में। सौरव के बगल में ही सचिन, कैफ और सहवाग भी खड़े थे। भारत सरकार की तरफ से वेल-विशेज पार्टी थी भारतीय क्रिकेट टीम को 2094-05 की सीरीज से पहले। भारत-पाकिस्तान के बीच इस क्रिकेट सीरीज की जब प्लानिंग हो रही थी, सचिन तेंदुलकर ने काॅल किया था बीसीसीआई उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला को। हँसते हुए कहने लगे - "क्यूँ मरवाना चाहते हो। ध्यान नहीं हैं क्या कि थोड़े दिनों पहले ही उनके राष्ट्रपति मुर्शरफ साहब भी मरते-मरते बचे हैं हमले में।" जगमोहन डालमिया चीफ थे बीसीसीआई के तब। अटल जी ने सीरीज के लिए हामी भरी मगर उप-प्रधानमंत्री आडवाणी जी तैयार न थे। पाकिस्तान ने वादा किया कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति कैडर की सैक्यूरिटी दी जायेगी इंडियन टीम को। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड चीफ शहरयार खान ने अपने जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण टास्क बताया इस सीरीज को। खूब सारी ऊहापोह के बीच हुई वह सीरीज जितना जोड़ पाई हमें हमारी बिछड़ी जमीन से, वह सच में काबिल-ए-तारीफ थी। 

शहरयार खान की माँ भोपाल नवाब की बेटी थी और लियाकत अली खान की लव-मैरिज उत्तराखंड की आइरिन पंत से हुई थी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल के पिता अवतार नारायण गुजराल पाकिस्तान बनते ही वहाँ के पीएम पद के दावेदार थे। सऊदी अरब में हाॅली-प्लेस पर पूजा-वूजा का सारा जिम्मा भोपाल नवाब की ओर से तय होता था। भारत और पाकिस्तान अपनी जगह ठीक मगर पंजाब के लोगों में पंजाबियत ज्यादा थी। एक ने तो कहा भी था - "पार्टिशन जो न होता, तो पंजाब राज्य रावलपिंडी से पलवल तक होता। आधे के बराबर सांसद हमारे होते और भारत का प्रधानमंत्री हर बार एक सरदार होता।"

-कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और बीसीसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला जी की किताब 'स्केयर्स ऑफ 1947 - दि रियल पार्टिशन स्टोरीज' में लिखे वाकये हैं ऊपर वाले सब। अपने सौरभ द्विवेदी जी के लल्लनटाॅप के किताबवाला में एक पूरा एपिसोड है इस पर। पूरा देख-सुनकर मजा आ गया। 


बहरहाल, अपना वैसे ही चल रहा है अभी भी। लंच के पहले स्कूल विजिट और उसके बाद अपनी एलआरसी पर ही रोजमर्रा के काम। आज राउप्रावि, जैसाराम की ढाणी जाना हुआ। स्कूल कैम्पस तो इसका अपनी पीईईओ स्कूल गोलिया से भी बड़ा है। दो-तीन कमरों के तो ताला लग रहा है, जिससे रोज सफाई न करनी पड़े। कुल 74 नामांकन हैं और तीन टीचर। एक और है, मगर वो डेपुटेशन पर एसडीएम ऑफिस में लगे हैं। शनिवार को क्रियाशील पुस्तकालय पर काम आगे बढ़ाने की बात हुई है। अपन फिर जायेंगे उधर। फाइनल थे आज ब्लाॅक स्तरीय राजीव गांधी ग्रामीण ऑलम्पिक के। हमारे मैदान में गर्ल्स खो-खो का था। पादरड़ी खूर्द और बैरा नाडी की टीम्स में था। एक पाॅइंट से पादरड़ी जीत गई है। सुरेश जी लार्ज स्केल कैंप के लिए टीचर्स अरेंजमेंट में लगे रहे दिन भर। कल से किशोरी बालिका पर कार्यशाला भी है अपने ऑफिस में ही। हमनें थोड़ी उसकी भी तैयारी की।


मन को टाईम ही नहीं मिल रहा कुछ सोचने का। बस दौड़े जा रहा है ये। हिंदी दिवस है आज। न कुछ खास लिख पाया और न ही पढ़ पाया। हो सकता है कल टीचर्स वर्कशाॅप में एक-आध सेशन लेना पड़े। दस भी नहीं बजे है, और नींद खटखटाने लगी है दरवाजा। अक्षर बिगड़ रहे हैं झोंकों में। चलो अभी सोते हैं।

गुड नाईट...


- सुकुमार 

14-09-2022

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