सिवाना डायरीज - 31

 सिवाना_डायरीज  - 31


"स्त्री पैदा नहीं होती, बना दी जाती है।"


-नारीवादी लेखिका सिमोन द बोउवार की इस पंक्ति की अक्षरशः सत्यता आज के समाज को देखकर ही लग जाती है। अपने कलिग्स के रूप में केवल पुरूषों वाले संस्थानों में भी काम किया है मैंने और स्त्री-पुरुषों के सामूहिक वाले संस्थानों में भी। मेरा प्रीवियस वर्कप्लेस फुली मैन-ऑरियंटेड था। प्रत्यक्ष और परोक्ष लगभग तीन-चार हजार पुरुष। अकाउंट्स, आईटी या एडमिनिस्ट्रेशन में कोई एक-आध फिमेल एम्प्लोईज के अलावा। केवल पुरुष मित्रों के बीच बैठकर लड़की या स्त्री विषय पर जिस तरह की बातें कर जाते हैं हम लोग, यहाँ शेयर करने में भी शेम फील होती है।

और जहाँ तक समानता की बात है, हममें भरा सारा प्रगतिवाद डोलने लगता है जब अपने बेटे के जैसे ही बेटी को नाईट पार्टी की अनुमति देने का फैसला करना हो। हमारा समानीकरण ध्वस्त हो जाता है अपने व्यवहार से ही अपनी पत्नी के होने पर भी जब घर आये मेहमान को पानी पिलाने के लिए ट्रे और गिलास सजानी पड़े। नारी सशक्तिकरण पर हमारा ही दिया वक्तव्य आँखें फाड़कर देख रहा होता है हमें, जब घर आते ही चाय न मिलने पर हम उफन रहे होते हैं माँ पर। न चाहते हुए भी ऐसा व्यवहार हम कैसे करते जाते हैं, कुछ समझ नहीं पड़ता। 

असल में इसे ही स्टीरियोटाईप कहा जाता हैं। जेंडर स्टीरियोटाईप, मने एक पैरामीटर बना लेना स्त्री और पुरुषों के बीच कामों को लेकर, जीवन को लेकर और रहन-सहन को लेकर। एक अलिखित सविंधान अप्लाई कर देना समाज में कि ये ईकाई इस काम के लिए ही बनी है। 


बहरहाल, वो ही डाॅ. गुलाटी की तरह - 'व्हाट अ बिजी डे।' यूनिसेफ और एससीईआरटी, राजस्थान ने पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत बाड़मेर और डूंगरपुर जिलों को चुना है बाॅडी-इमेज और आत्म-सम्मान कौशल कार्यक्रम के लिए। उसी की वर्कशाॅप्स चल रही है उच्च प्राथमिक विद्यालयों के टीचर्स की। अपने ऑफिस में भी थी, है और रहेगी ये आगामी सप्ताह के पहले तीन दिनों तक भी। विषय सारे ऐसे थे जिनका सामना अमूमन हर भारतीय करता है अपनी निजी जिंदगी में। लैंगिक रूढ़ीवादिता, आदर्श प्रतिरूप, बाॅडी इमेज और भी बहुत सारे। पहले चरण का पहला दिन था आज। ऊपर लिखी सारी बातों के साथ आईना दिखा दिया वर्कशाॅप ने हमें। हम कैसे बनावटी समाज में जी रहे हैं, हैं ना! वर्कशाॅप में अपने व्यूज रखने का अवसर मुझे भी मिला खूब सारा। बस जो सिखाया जाता है, असल जिंदगी में उतार सकें हम सब। लंच राजकीय था आज तो। मजा आ गया बहुत दिनों बाद ऐसा खाना खाकर। वर्कशाॅप खत्म होने के बाद खीर-पूड़ी खाने अपने पाव-भाजी वाले लोभजी के यहाँ गया। बाजार बंद होने के कारण आज उनका स्टाफ फ्री था, तो इसी का आयोजन कर लिया था उन्होंने। मन से खिलाने वालों के खाने में टेस्ट ही वैसा आ जाता है। खीर बादाम शेक सी लग रही थी मुझे।


मन ठीक रहा। थोड़ा इधर-उधर, मगर ऑवरऑल ठीक था। रविवार को दादाजी का श्राद्ध है, तो माँ कह रही है आने की, मगर इन वर्कशाॅप्स के कारण इस वीक तो पाॅसिबल ही नहीं। अगले वीक देखते हैं। सोचता रहता हूँ कि जितना और जैसा बोलता हूँ, एप्लाई भी करूँ जिंदगी में। बहुत मुश्किल तो कुछ भी नहीं है। बिस्तर पर पड़े-पड़े कब अगली भोर हो जा रही है, पता ही नहीं चल रहा। आज एक महीना पूरा हो चुका है यहाँ जुड़े। सब अच्छे ही अनुभव है अभी तो। सोच रहा हूँ, थोड़ा तरीका सुधारूँ जीने का। बाकी सब ठीक है। चलो नींद आने लगी है। सो ही जाते हैं। कल भी वर्कशाॅप है।

गुड नाईट...


- सुकुमार 

15-09-2022

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