सिवाना डायरीज - 32

 सिवाना_डायरीज  - 32


-"सुनो, एक दिन होगा जब हम पास बैठ एक-दूसरे का दुख अपनी आँखों से रो लेंगे।"

-"हाँ, और फिर गले मिलेंगे। मैंने सुना है, दुख ऐसे ही कम होता है। जब उससे थोड़ा भी बाँट लें, जो सारा ले लेना चाहता है।"

-"आपको नहीं लगता कि बहुत लेट मिले हम! हमें काफी पहले मिल जाना चाहिए था!"

-"नहीं, सब चीजें उनके एक्जेक्ट टाईम पर ही हो रही है। हमें अब ही मिलना था, सो अभी ही मिले हैं।"

-"काश, हम अभी भी साथ होते!"

-"बट फरिश्ते साथ कहाँ रहते हैं! इतना स्योर हूँ कि रब ने किसी खास मकसद के लिए मिलवाया है हमें।"


-और इतनी सी बात करके ही दोनों आज परी लोक की किसी कहानी के पात्र हो गये। सोच रहा हूँ जिंदगी इतनी मुश्किल भी नहीं है, जितनी गंभीरता से हम जिये जाते हैं। चेहरे पर मुस्कान रखो, तो कभी कोई आपको सोचकर बेवजह भी मुस्कुरा सकता है। फिर दुनिया पूछती रहती है - "कौन था वो, कौन था वो?" 


खैर, यूपीएस के शिक्षकों की आत्म-सम्मान कौशल कार्यशाला का दूसरा दिन था आज। विषय रहा कि किस तरह बच्चे केवल लुक्स को बेस मानकर अपने आइडियल सेट कर लेते हैं। किशोरवय के लिए आदर्श या तो मीडिया में दिखने वाले एक्टर-एक्ट्रेसेज होती है या लुक के आधार पर डेशिंग/गाॅर्जियस दिखने वाले अपने आस-पास के लोग। पूरा दिन संभालना था इस छोटे से विषय पर। कुछ लघु-अभिनय और  कुछ फेयर&लवली, पाॅन्ड्स और डव आदि के विज्ञापनों के विडियोज के साथ रखी हमनें अपनी बात। पूरा दिन राजकीय लोगों के बीच रहकर आजकल वैसी वाली ही फीलिंग आने लगी है। एक महीना पूरा हो गया है मुझे यहाँ। दूसरे महीने का पहला था आज। राहुल गांधी उत्तर की और बढ़ रहे हैं अपनी कथित भारत-जोड़ो यात्रा में, मैं भी 'हैप्पी ओजोन डे' का सहारा लेकर बढ़ा आगे। और मोदी जी उज्बेकिस्तान के समरकंद में हैं, जिसका नाम मध्यकालीन भारत में खूब पढ़ा है हम सबने। रूस में जन्मदिन की पूर्व संध्या पर 'हेप्पी बर्थ-डे इन एडवांस' बोलना अपशकुन माना जाता है, तो उस पुतिनवा ने भी कल पर टाल दी है मोदी जी के लिए बर्थ-डे विशेज।


मन ठीक रहा। किसी का इंतजार रहता है हर वक्त। मन करता है कि वो आये और कह दे एक बार - "सब ठीक हो जायेगा। हम हमेशा साथ है।" मगर सब उलझे हैं शायद अपनी-अपनी उधेड़बुन में। सही भी है। आदभीं अपने मन की गांठें सुलझायेगा तो आगे बात करेगा। घर पर गौमाता नंदिनी ने एक और बछड़ी दी है कल। माँ नाम पूछ रही थी तो हमने सिया की छोटी बहन उर्मि रख दिया है। लेट तक जगा हूँ बेवजह कि कोई गांठ खुले, तो शायद सुलझा हौआ धागा आये अपनी इस पतंग को भी उड़ाने।

शब्बा खैर! गुड नाईट...


- सुकुमार

16-09-2022

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