सिवाना डायरीज - 35

 सिवाना_डायरीज  - 35


सुबह जब वो उससे मिलने गया। उसके लम्बे बालों में बायीं तरफ दो सफेद बाल दिखाई दिये उसे। वो दोनों भी बाकी की तरह ही सिर के पीछे की तरफ रास्ता बनाते हुये रिबन के सँकरे गोले से निकलकर पीठ पर आजाद झूल रहे थे। बिना कुछ सोचे ही बोल पड़ा वो-

"अब समझ आया। मैं सोचूँ इतनी मैच्योरिटी कैसे आ जाती है लोगों में!"

उधर से आवाज आई-

"मैं समझी नहीं!!!"

"कुछ नहीं, घिसना पड़ता है सोने-चाँदी के पत्थरों को गहना होने के लिए।"

-बस इतना कहकर वो हँस पड़ा।

उधर वो सोचती रही कि आखिर बात क्या हुई...!!!


-श्रंगार रस जाने कितने ही भावों में जाने कितने तरीकों से लिखा गया है, हमारे साहित्य में। मगर ढलती उम्र को यूँ अपने नजरिये से सजा देने वाली उन दोनों की ये बातें सुनकर मुस्कुरा उठा मैं भी मन ही मन में।


बहरहाल,  आजकल फुल बिजी है अपन। उसी कार्यशाला का दूसरा चरण प्रारम्भ हो गया है। किशोर-किशोरियों में प्रकृति-प्रदत्त आने वाले बदलावों को सम्भालने के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण। पहले दिवस का विषय बिल्कुल गत जैसा था - जेंडर-स्टीरियोटाईप। सेवानिवृत्ति की देहलीज पर खड़े एक सर से कई मारवाड़ी कहावतें सुनने को मिली इसी विषय पर। मेरे लिए पर्सनल फायदा यह हो रहा है कि इतना सारा जानने-सीखने के साथ-साथ अपने सम्प्रेषण को इम्प्रूव करने में लगा हूँ। टार्गेट है कि जब अपन खड़े हो जायें बोलने के लिए, तो वो इतना प्रभावी हो कि किसी को भी अटेंशन होने की कहना न पड़े। खुद-ब-खुद सब सही हो जाये। सुरेश जी के डुग्गू का बर्थ-डे था। शाम तो बन गई अपनी भी बच्चों के साथ। डुग्गू बहुत प्यारा और समझदार बच्चा है।


मन ठीक रहा। बातें ऐसी कह दी-सुन ली जाती है कई बार, जिन्हें दिल पचा नहीं पाता। मुश्किल हो जाता है डाइजेस्ट करना। मन कहीं हार गये हो तो भी आत्म-सम्मान की रक्षा करना तो आना ही चाहिए इंसान को। सच में तो रोज-रोज आदमी बाहर से कम भीतर से ज्यादा मरने लग जाता है। सोचते-सोचते नींद आई है। गुड नाईट...


- सुकुमार 

19-09-2022

Comments