सिवाना डायरीज - 36

 सिवाना_डायरीज  - 36


काॅल पर हाय-हेलो के बाद-

"तनु...कुछ कहो ना।"

"क्या...?"

"कुछ भी। कुछ अलग तरह से प्रपोज करो ना!"

"यार...ये कैसी डिमांड है!"

एक मिनट सोचने के बाद-

"मन...घर में सबके लिए पापा ने एयरटेल फैमिली प्लान लिया है। तुम अपना नम्बर भी उसी में जुड़वाना पसंद करोगी!!!"

"हाहाहाहा, तुम भी ना..."

"अच्छा ठीक है, एक और नये तरीके से।"

"हाँ..."

"मन...क्या तुम अपने यहाँ वाले घर के वाई-फाई से रोज नेट चलाना पसंद करोगी!!!"

"हे, ये थोड़ा हल्का हो गया।"

"ओके, एक और ट्राई।"

"हाँ..."

"मन...हमारे एयरटेल पोस्टपेड नम्बर्स के बिल्स एक ही एड्रेस पर मंगवाना पसंद करोगी!!!"

"हाहाहाहा...क्या बात है आज तुम एयरटेल, मोबाइल, वाई-फाई और इंटरनेट से बाहर ही नहीं निकल रहे!"

"जस्ट किडिंग ओ..."

"तनु...सबके उत्तर 'हाँ' में हैं..."

और फिर दोनों महसूस करने लगे एक दूसरे को अपनी आँखों में।


-बातें हैं, बातों का क्या! सोच रहा हूँ कितनी उल-जुलूल बातें हैं ना ऊपर वाली। समरकंद सम्मेलन, लम्पी वायरस, भारत-जोड़ो यात्रा, कुनो नेशनल पार्क, सचिन पायलट-अशोक चांदना, वसुंधरा-शेखावत, मेरा घर-तुम्हारा घर, स्कूल-ऑफिस के कलिग्स, हिंगलाज मंदिर बलुचिस्तान और आगामी टी-20 वर्ल्डकप वाली सारी कर लेने के बाद बातों के सिलसिले में जब कुछ नहीं बचता तब ऊपर वाला मुद्दा शुरू होता है। मगर बुराई क्या है! बच्चे क्रियेटिविटी तो ला ही रहे हैं दिमाग में। मैं जितना समझ पाया हूँ, इंसान को कभी-कभी बेतुकी बातें कर लेनी चाहिए। अकेले में बैठे-बैठे कभी मुस्कुराने के लिए...


बहरहाल, फिर वही हाल। दिन-भर वर्कशाॅप। दूसर दिन था आज दूसर चरण का ही। सुरेश जी और मैंने कल ही अपने बैच तय कर लिया था कि लंच बाद बैच बदलेंगे अपन। बच्चों के लिए अपियरेंस आइडियल कैसे हों, इस विषय के इर्द-गिर्द रहना था। आज माॅक बहुत शानदार हुये। एक टीचर घर से ऑब्जेक्ट्स बना कर लाई थी प्ले के लिए। अच्छा लगा सबको। वर्कशाॅप खत्म होते ही अपने भूपेंद्र जी के साथ पास ही हिंगलाज माता मंदिर गये। सच में अद्भुत है वो। कभी नहीं कह सकता कि मैं थार में हूँ। पहाड़ी पर है मातेश्वरी। रात होने से पहले लौट आये थे हम। 


मन ठीक रहा। कहीं-कहीं अटका भी, मगर अब ज्यादा सोचना बंद कर दिया है। महसूस कर रहा हूँ कि फोन को बहुत ज्यादा टाईम देने लगा हूँ मैं आजकल। कम करना पड़ेगा। एक बात तो है सिवाना के सारे टीचर्स ने मिलकर पूरे राजस्थान को एक कर रखा है। क्या हाड़ौती, क्या वागड़, ढूंढ़ाड़ी, मालवी, शेखावाटी, यौद्धेय और मेवाड़ी - सब संस्कृतियाँ मिल जायेंगी यहाँ। अच्छा लग रहा हैं यहाँ। बाकी सब ठीक है। अब सो जाते हैं...


- सुकुमार 

20-09-2022

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