सिवाना डायरीज - 37
सिवाना_डायरीज - 37
वह हिंगलाज माता के मंदिर में था परसों। तभी काॅल आई-
"ओये, की होलो?"
उसे मजाक सूझी...धीमे से बोला-
"हिंगलाज माता मंदिर आये हैं यार।"
"हिंगलाज माता! मगर वो तो बलूचिस्तान में है ना?"
उसका निशाना ठीक लग रहा था। थोड़ी डर-भरी आवाज में बोला-
"हाँ, यहीं...ध्यान ही नहीं रहा यार। गलती से इस पार आ गये हम।"
"अरे! मगर बाड़मेर की सीमा थोड़े ही पाकिस्तान से लगती है?"
"लगती है। मैप चैक करो तुम। जैसलमेर के बाद सबसे बड़ी सीमा इसी की लगती है।"
"ओह, हाँ यार! मगर तुम उधर गये कैसे? किसी ने रोका नहीं तुम्हें? बाॅर्डर भी तो होगी ही?"
उसका निशाना सही राह पर था। बोला-
"हाँ यार! हम क्या करें? इधर तारबंदी भी नहीं है बाॅर्डर पर। हम तो पगडंडी पर सीधे-सीधे आ गये। वो तो यहाँ मंदिर के पुजारी डांट रहे हैं कि ध्यान क्यों नहीं दिया तुमने? बाॅर्डर पर पत्थर लगे हुए थे कि भारत सीमा समाप्त - पाकिस्तान सीमा प्रारंभ।"
"हाँ तो तुम्हें दिखाई नहीं दिये वो पत्थर? अंधे हो क्या तुम?"
वह फिर डरा-डरा सा बोला-
"पुजारी जी कह रहे हैं कि जैसे आये हो, वैसे ही धीरे से चले जाओ। आर्मी वाला कोई दिखे तो रिक्वेस्ट करना थोड़ी कि गलती से पार कर ली थी बाॅर्डर। नहीं तो फिर मेरा रेफरेंस देना कि भले ही पुजारी जी से बात कर लो माता के।"
"तुम भी ना यार, गजब हो। रुको मैं तुम्हारे पापा के काॅल लगाती हूँ।"
"अरे नहीं-नहीं! रुको, अभी उन्हें कुछ मत कहो। बाॅर्डर पर अगर कुछ परेशानी आयेगी, तो बताऊँगा तुम्हें। बस तुम अपने कान्हा जी से प्रे करो यार कि सही-सलामत उस पार आ जायें हम।"
"ठीक है। काॅल करना मुझे। भूलना मत।"
"हाँ चलो फोन रखता हूँ मैं। डर लगने लगा है मुझे।"
"ठीक है, टेक केयर।"
लगभग 20 मिनट बाद वह काॅल करता है उसको-
"ओये, आ गये हैं हम इस पार। तुम चिंता न करना। बाॅर्डर पर लगे हैं यार पत्थर तो। थेंक गाॅड।"
"हद है यार। इतना भी दिमाग नहीं है तुममें कि कहाँ जा रहे हैं, वहाँ की लोकेशन ढंग से पता कर लो। पता है मेरी साँसें फुल गई थी।"
"साॅरी यार। चलो अभी रखता हूँ, घर पहुँचकर काॅल करता हूँ।"
थोड़ी देर बाद घर पहुँचकर उसने फिर काॅल किया-
"हेलो, आ गया मैं घर।"
"हाँ, बहुत बड़ा काम कर आये हैं आप। वतन वापसी की मुबारकबाद आपको।"
वह हँसते हुए बोला-
"ओये, तो इसे मेरी इंटरनेशनल विजिट में काउंट कर लूँ मतलब!"
"चुप रहो। पहली अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पाकिस्तान की! भक्क।"
"हाहाहाहा।"
रात को उसने उससे जब यह पूछा कि-
"डियर! सिवाना से बाॅर्डर की दूरी देखी तुमनें कभी मैं में?"
"नहीं, मगर मेरे लिए तो तुम बाड़मेर हो और बाड़मेर की सीमा तो मिलती है पाकिस्तान से। हिंगलाज माता भी बलूचिस्तान में है। फिर भी तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?"
"हाहाहाहा। हिंगलाज माता मंदिर एक यहाँ सिवाना में भी है। पत्थर की और रेत के धोरों वाली पहाड़ियों के बीच। कहीं पाकिस्तान नहीं गये थे हम।"
"गज़ब यार! मतलब तुम मुझे बेवकूफ बना रहे थे लास्ट तीन घंटों से। मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी अब। बाय।"
"अरे सुनो तो, लव यू यार। अब मज़ाक भी नहीं कर सकता!"
"हम्म, मगर मैं तो परेशान हो गई थी ना यहाँ। तुम्हारे चक्कर में पहली बार भगवानजी को इतना परेशान कर दिया मैंने। पता है कैसे-कैसे खयाल आने लगे कि मीडिया वाले आ गये हैं सब मेरे पास और मैं खुद को तुम्हारी प्रेमिका बताकर सरकार से गुजारिशकर रही हूँ कि उनको इधर ले आओ..."
और इस बार दोनों ठहाके मारकर हँस पड़े...
-फिर यही कहूँगा कि बातें हैं, बातों का क्या! सच में प्रेम ना, ईंधन है ठीक इंसान हो जाने के लिए। जो ढंग से जी रहे हैं अपनी जिंदगी, मतलब उनके पास है ये ईंधन पर्याप्त रूप से। शायद मेरे पास भी, तभी चेहरे पर हँसी तो रहती ही है।
बहरहाल, अंतिम तीसरा दिन कार्यशाला के दूसरे चरण का। इस बार सुरेश जी और हमनें डेढ़-डेढ़ दिन बांटे थे दोनों समूहों के लिए अपने। मेरे लिए नया था यह बैच। प्यार बहुत मिला इससे आशीर्वाद स्वरूप में। एमटी भंवर जी गौड़ दिखते नहीं हैं, पर है बहुत ही विद्वतजन। समापन के बाद हाथ मिलाने के बजाय चरण स्पर्श करना ठीक लगा मुझे। बच्चों में आत्मविश्वास जागृत करने की थीम रही लास्ट दिन। शिक्षक सम्मेलनों के आगे बढ़ जाने का आदेश आया है देर शाम। खूब सारी योजनाएँ फेल हो जायेंगी अब। टीचर्स के अपने घर जाने के कई टिकट्स कैंसल होंगे। हमारे सीईओ अनीस जी की सिवाना विजिट के दिन ही है शिक्षक सम्मेलन की छुट्टियाँ। देखते हैं क्या होता है। सिवाना में इंदिरा रसोई जा आया ऑफिस से लौटते वक्त। खाना बहुत अच्छा था मगर सफाई के नाम पर थोड़ा सोचना पड़ेगा।
मन ठीक रहा। जाने क्यों खींच रहा है मन को कोई। समझ नहीं आ रहा। कई बार सोचता हूँ गायब हो जाऊँ मैं। न दिखाई दूँ किसी को भी। जिंदगी के कैनवास पर कुछ नाम जुड़ गये हैं परमानेंट मार्कर से। थिनर डालकर भी साफ नहीं होने वाले हैं वो। देखते हैं ये आदमी कितना ले जा पाता है जिंदगी की इस राह पर अपनों और सपनों से भरी गाड़ी। सोचते-सोचते नींद आने लगी है। सो ही जाता हूँ। गुड_नाईट...
- सुकुमार
21-09-2022
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