सिवाना डायरीज - 44
सिवाना_डायरीज - 44
'आदमी सच और सही बोले, मगर यह जाँचकर कि समय और स्थान उपयुक्त है कि नहीं।'
-अपने ही मन की उपज है ये। खुद को जस्टीफाई करने की कोशिश करूँ तो यूँ लगता है कि गलत कहा क्या था? मगर जब खुद के भीतर जाऊँ तो यह भी पाता हूँ कि अगर यह सच और सही है तो पहले निर्धारित किया था क्या मैंने यह भी कह जाने को। जो एकदम से सत्य है, वो ये है कि मेरा बड़बोलापन रहा जिम्मेदार आज मन का मिज़ाज खराब करने को। तो बात यह है कि आज बाड़मेर टीम की सीईओ और स्टेट-काॅर्डिनेटर के साथ मीटिंग में जब अवसर मिला मुझे बोलने का तो कुछ ऐसा ही कह गया मैं जो सच तो है मगर डाइजेस्टेबल नहीं। हाँ, खुद के लिए भी नहीं। मनोहरा की बार कहती है मुझे कि तुम्हें तो स्टेज मिलना चाहिए बस। शिक्षा विभाग में सामान्यतया किसी भी वर्कशाॅप के प्रारंभ में सहजता की कोई गतिविधी करवाई जाती है। मुझे मेरे लिए भी जरूरी लगी वो। बात यह है कि खुद पर काम करना ही चाहिए मुझे। टर्निंग पाॅइंट फील हो रहा है मुझे ये जिंदगी का। देखता हूँ कितना खरा उतरना हूँ अपने ही कहे पर।
बहरहाल, दिन ठीक-ठाक। सुबह होटल कलिंगा में ही खुली नींद और उठते ही मन ठीक किया अपनी मनोहरा को काॅल करके। सुबह नौ बजे के लगभग सुरेश जी और हरीश जी के साथ पहुँच गए हम भी अजीम प्रेमजी स्कूल में। बाड़मेर जिले के अलग-अलग ब्लाॅक्स के साथियों के साथ पहला परिचय था मेरा आज। दीन-भर के तीन सेशन्स, जिनमें लास्ट वाले में अनीस जी और राजीव जी थे साथ। खूब सीखा और जाना भी। मन में खयाल भी आया कि अपनी शादी होगी, अपने बच्चे होंगे, उन्हें भी इसी स्कूल में एडमिशन दिलवायेंगे। रात होते-होते बालोतरा तक सौरभ जी की गाड़ी में और फिर बस में दस बजे तक पहुँच गये हम सिवाना।
मन ठीक रहा दिन-भर। बस जो खटक रहा है, वह यह है कि दिल दुखा दिया मैंने अपने कलिग्स का। शाम वाला वाकया न होता तो जिंदगी के सबसे अच्छे दिनों में से एक था ये। खैर, जो भी है। मनोहरा का का सपोर्ट एनर्जी भर देता है मुझमें फिर से खड़े होने को। दिमाग की नसों पर ज्यादा ही जोर जा रहा है अभी। मैं सोने की कोशिश करता हूँ। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
28-09-2022
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