सिवाना डायरीज - 45
सिवाना_डायरीज - 45
"Children aren't coloring books. You don't get to fill them with your favorite colors."
-खालिद हौसेनी सर का ये क्वोट बच्चों को हमारे पढ़ाने के लिए केवल एक संसाधन मान लेने को मना करता है। सच तो यही है कि अधिकतर शिक्षक अपने-अपने चाक पर अपनी तरह की डिजाइन दे, गड़ लेना चाहता है बच्चों के नाम के घड़े। मगर कोई भी उस मिट्टी से नहीं पूछता कि वह मटका ही होना चाहती है या मूरत। हमने सभ्यता और शिक्षा के जो पैरामीटर्स सेट कर दिये हैं दुनिया में, बच्चे उनको लोहे की लकीर मान ले बस। अगर यह होना ही शिक्षक होना है तो क्षमा करना अभी हमें और जरूरत है शिक्षक होने के लिए जरूरी संसाधन जुटाने की।
बहरहाल आज विजिट थी अनीस और राजीव की अपनी एलआरसी में। हमारी सारी व्यवस्था भी चाक-चौबंद थी। कल वाले वाकये से मेरा बाहर आ पाना मुश्किल सा लग रहा था मुझे। जाजम, गद्दियाँ, पानी की बोटल्स और स्नेक्स अपने जिम्मे थे। सबकी व्यवस्था की लंच से पहले। लंच के तुरंत बाद आ ही गये अनीस(बैंगलोर), राजीव(जयपुर), रवि(बाड़मेर) और दिनेश(बालोतरा)। वीटीएफ ऑर्गेनाइज की हमनें 'हमारे विद्यालय में क्रियाशील पुस्तकालय' विषय पर। उम्मीद के मुताबिक लगभग 17 टीचर्स आये इसमें। पढ़ना, सनना और समझना बिंदुओं पर राजीव ने अच्छी बातें कही। वीटीएफ खत्म होते-होते सात बज गई थी शाम की। घर आकर बेग पैक किया और साढ़े नौ निकल गया आज घर के लिए। बेनीवाल ट्रेवल में ही सिवाना ब्लाॅक के सीबीईओ श्रोत्रिय जी भी भीलवाड़ा तक के लिए थे। खूब सारे परिचित जुटाये बातों ही बातों में।
मन ठीक रहा आज। वैसे ठीक ही रहता है आजकल। मनोहरा सम्भाल लेती है मुझे जब भी लुढ़कने लगता हू। कॅरियर से रिलेटेड एक सिलवट तो माथे पर स्थाई ही है। इसकी इस्त्री बस मेहनत से ही होगी और कोई उपाय नहीं। जुटना है अब। बाकी सब ठीक है। सो जाते हैं बस में ही अब।
गुड नाईट...
- सुकुमार
29-09-2022
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