सिवाना डायरीज - 46

 सिवाना_डायरीज  - 46


"My whole childhood is lie...!!!"

-बचपन में शक्तिमान और शाका-लाका-बूम-बूम बहुत सच्चे लगते थे। ड्राइंग-पेंटिंग कभी इतनी ठीक नहीं रही, मगर पेंसिल से उकेरा हुआ सच हो जाये - इस चक्कर में ठीक-ठाक कर लेने की कोशिश होती थी। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ में देखा था एक बार जब जाॅन सीना ने अपने प्रतिद्वंदी के माथे पर कुर्सी दे मारी थी। लगा था मर ही जायेगा सामने वाला। लहूलुहान भी हो ही गया था। मगर अगली फाईट में फिर उसी तरह आया जैसे यहाँ स्टार्टिग में था। छपा हुआ सारा शाश्वत सत्य लगता था। किताब में कही गई बात ईश्वर द्वारा कही हुई प्रतीत होती थी। मैं तो ये भी सोचता था बचपन में कि लड़कियाँ फिमेल्स के पेट से आती है और लड़के मेल्स के पेट से। चूहे-शेर की बातचीत, कछुए-खरगोश की दौड़, कौए की प्यास और हाथी का दर्जी की दुकान पर कीचड़ फेंकना सब कुछ सच लगता था। इसी तरह और भी अजीबोगरीब कई चीजें थी जो आज जताती है कि बचपन में सच कुछ भी नहीं था। ऊपर वाली लाईन उठाई है आज मैंने लल्लनटाॅप के आज वाले ही एपिसोड से और सोच रहा हूँ कि कितनी सच है ना ये! राजस्थान और कांग्रेस की इंटरनल डेमोक्रेसी में भी यही सब-कुछ तो चल रहा है। सब-कुछ टीवी-यूट्यूब पर ही। जमीन पर थोड़े दिनों बाद सब एक हो जाने है।


बहरहाल,  दिन खूबसूरत होना ही था आज क्योंकि अपने घर हूँ। इसे खूबसूरत इसलिए भी होना था कि हमारे पूजनीय पूर्व अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी गोपाल जी दाधीच की पुस्तक 'कब छँटेगा ये कोहरा' का विमोचन कार्यक्रम भी था उनके कस्बे गंगापुर में। सिया से खूब सारी बातें की सुबह से घर पहुँचते ही। भौंहें चढ़ाकर शुरू के दो घंटे वो जाँच रही थी कि ये है कौन? फिर सहज हुई थोड़ा। लगभग 12 बजे निकले हम घर से सतीश जी व्यास और पुखराज जी सोनी के साथ गंगापुर के लिए। सचमुच अद्भुत रहा आज का पूरा कार्यक्रम। मुझे भी अवसर मिला मंच पर किताब की भूमिका के पठन का। एक्च्युअली अपने सांगानेर में लेक्चरर राम भैया तय थे इस काम के लिए, मगर अवसर देना नहीं चूकते वो कभी भी मुझे। मैंने वाचन किया भूमिका का। बिल्कुल वैसे ही जैसे मैं मन से बोलता हूँ। मतलब ना कि सबको खूबसूरत लगे, वैसा वाला। अंत में राम भैया वाला पारितोषिक भी मैंने ही पाया। जीमणे में दाल-बाटी-चूरमा का ये वाला हिस्सा बहुत मिस कर रहा था मैं। कल पूर्ण हुआ। वापसी रात को नौ बजे पुखराज जी की गाड़ी से ही की। पूरे कार्यक्रम में खड़ा रहा था तो, थकान के कारण नींद जोरों से आ रही थी। घर पर सामान्य बातचीत के बाद कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। अभी रात के एक बजे उठा तो ये लिख रहा हूँ। लिखकर फिर सो जाता हूँ। नींद पूरी कहाँ हुई है अभी। शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

30-09-2022

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