सिवाना डायरीज - 47

 सिवाना_डायरीज  - 47


'सिफारिश बड़ी या जान?'

-एक परिचित है अपने राजस्थान पुलिस में हेड-कांस्टेबल। उदयपुर के सविना थाने में तैनात सुनील जी के स्टेटस देख रहा था आज। उदयपुर जिले में 'नो सिफारिश' अभियान चलाया जा रहा है अभी। 'नो सिफारिश' मतलब ट्रेफिक नियमों की पालना न करने पर चालान बनाते समय किसी नेता, मंत्री और अफसर की सिफारिश न मानना। मतलब ना कि होंगे आपके चच्चा विधायक! जो ट्रेफिक रूल तोड़ा, आपकी जेब ढीली होने से कोई नहीं रोक सकता। एसपी विकास कुमार जी हैं वहाँ अभी। अपनी 'छुअन का असर' के विमोचन के समय भीलवाड़ा ही थे वे। जोरदार पर्सनलिटी। पुलिस विभाग के हर कर्मचारी को कहा है कि सिफारिश वाली काॅल ना तो करनी है और ना ही अटेंड करनी है। हमारे सुनील जी ने तो एक साफ-साफ स्टेटस लगा रखा है कि जो मेरे नाम की सिफारिश करे, उसका दुगुना चालान काटो और एक दूसरे में लिखते हैं कि मुझे कोई भी सिफारिश लगाने के लिए काॅल न करें, सीट-बेल्ट बांधें और हेलमेट पहनें। सीधी-सपाट बात यह है कि तंत्र जो चाहे तो कुछ भी कर सकता है। इसे अच्छी नकेल कहकर अप्रिशियेट करना चाहिए लोगों द्वारा।


बहरहाल, बिल्कुल फ्री आदमी ही सबसे ज्यादा व्यस्त होता है। अपन भी ठाले ही थे दिन-भर। योगेश जी भाईसाहब की काॅल आई तो व्यावसायिक शिक्षा में बच्चों को लैम्प और पेन-स्टेंड बनाना सिखाने के लिए चले गये गुड़िया और हम दोनों। लौटकर दशहरे वाले पथ-संचलन के लिए थाने में स्वीकृति लेने निकल लिए गुरुदेव, बुद्धि जी और दीपक जी के साथ। वहाँ से फ्री होकर पंचमुखी बालाजी के ही हो गई शाम हमें और फिर घर ही ठहरा रात तक। दैनिक भास्कर के गरबा कार्यक्रम में जाने का प्लान था, मगर सफल न हो पाया। खाना खाकर अब बिस्तरों में हूँ। थक गया हूँ शारीरिक रूप से, जबकि मन कह रहा है कि ज्यादा फ्र्यूटफुल कहाँ कुछ भी किया आज! 


खैर, मन अच्छा है आजकल। मेरी मनोहरा को शिकायत रहती है अक्सर कि घर आकर तुम थोड़े तो बिजी हो जाते हो और थोड़े डरपोक भी। घरवालों के सामने बहुत धीमी हो जाती है तुम्हारी आवाज। सही भी है। मैं उतना खुलकर बात नहीं कर पाता यहाँ मनोहरा से। वो सम्भाले है मुझे और मैं उसी के कारण थमा हुआ हूँ। उसका साथ आसमान लगता है मुझे। चलो अभी सो जाते हैं। कल सुबह जल्दी चित्तौड़ जाने का प्लान है हम सबका।

शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

01-10-2022

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