सिवाना डायरीज - 51

 सिवाना_डायरीज - 51


'गौरी आवे शिवजी ल्यावे

.........से मेरा विवाह करावे।

देरी न करे, देरी करे तो 

शिवजी का त्रिशूल पड़े।

गुरू गोरखनाथ जी की दुहाई।।'

-मनपसंद लड़के/लड़की से शादी करने का मंत्र है ये। .......... की जगह पर अपने प्रियतम या प्रियतमा का नाम बोलो और 101 दिन तक रोज 21 बार महादेवजी के सामने पाठ करो। हो जायेगी मनवांछित जगह पर शादी। बचपन के एक लंगोटी यार ने बताया था मुझे ये मंत्र जिसकी खुद की अभी तक नहीं हुई है शादी। हो सकता है ये मंत्र जोरदार ही कारगर हो, मगर मेरे साथ पंगा ये रहा है कि .......... की जगह भरने को कंटिन्यू 101 दिन एक ही नाम नहीं भर सका मैं। एक्सक्लेमेटोरी साईन आते रहे टीनएज रोमेंस में भी और कथित सच्चे वाले प्यार में भी। कभी जाति, कभी परिवार, तो कभी आपसी मनमुटाव चेंज करवाता रहा ये नाम। मतलब ना कि भगवान भोलेनाथ भी सोचे कि ये किसी एक पर टिके, तो मैं कदम आगे बढ़ाऊँ। हर इक्कीसवे दिन ये लगभग कंफ्यूज रहता है। सबका तोड़ निकालने की सोची मैंने एक बार। .......... वाली खाली जगह पर 'माता सीता जैसी' बोलने लगा। मगर फिर कोई न कोई नाम ले आता था थोड़े दिनों बाद। और परिणाम! आप सबके सामने हैं!!! हाहाहाहाहा। अब जाकर मामला सेट हुआ लगता है, कल से पक्का एक ही नाम बोलने वाला हूँ 101 दिनों तक। देखते हैं माता गौरी और महादेवजी कितने काम आते हैं अपने।


बहरहाल, रावण जलाया आज सबने। कहीं पैसे खर्च करके खरीद लाकर जलाया, तो कहीं नगर/ग्राम- पालिकाओं/परिषदों/निगमों/पंचायतों ने उपलब्ध करवाया। मगर जलाया जरूर। जिसने नहीं जलाया पुतले का, उसने मन का रावण तो जलाया ही होगा थोड़ा बहुत। मैं भी दूसरे वाले पाले का हूँ। सिवाना - बाड़मेर में हूँ मैं। यहाँ न किसी ने उपलब्ध करवाया और न कोई खरीदकर ही जला पाया। 100 किलोमीटर है यहाँ से मंडोर-जोधपुर। माना जाता है कि रावण का ससुराल था। अपने ही कंवरसा के पुतले को जलाकर जश्न कैसे मना सकते हैं हम। साला एक तो ये तय नहीं होता कि रावण की पत्नी मंदोदरी एक्जेक्टली थी कहाँ से? एमपी के मंदसौर वाले कहते हैं हमारी बेटी थी, जोधपुर के मंडौर वाले कहते हैं हमारी और एक-एक बात ऐसी ही आंध्रा और कर्नाटक वालों के पास भी है। खैर, पूरा दिन अपने घर में ही बीता अपना। सुबह-सुबह जरूर आगे वाली गली की आदर्श विद्या मंदिर स्कूल में जा आया था संघ के विजयादशमी उत्सव में। सिवाना में सक्रियता बहुत कम है स्वयंसेवकों की। शायद नई टोली खड़ी नहीं हो पाई है यहाँ। बाकी दिन-भर मैं थोड़ा पढ़ा और आज तो थोड़ा लिखा भी। बहुत दिनों बाद बन पाई आज एक ठीक-ठाक कविता। घर से उपलब्ध हो रहे अपने पुर के कार्यक्रमों के फोटोज/विडियो स्टेटस पर अपडेट करता रहा। बायतू से शाहनवाज भाई आये थे हरीश जी के पास, तो शाम का एक घंटा उनके साथ बीता। वापस घर आ गया हूँ और न्यूज देख रहा हूँ आज के त्योहार की।


मन ठीक रहा दिन-भर। अपनी मनोहरा दशहरा मेला गई थी आज सेक्टर-62 के पास वाले मैदान में। बच्चों वाला हेयर-बेंड लाई है वो लाइटों वाला। विडियो-काॅल पर बता रही थी मुझे। मेला घूमने के बाद बच्चों वाला उल्लास दिख रहा था उसके चेहरे पर। खैर, जब रावण जलता है तो उल्लास आता ही है मन में। उसके चमकते भाल को देख अपन भी एनर्जाइज्ड हैं। अब सो जाने का मन है। सुबह से स्कूल्स भी फिर से स्टार्ट हो रहे हैं। बाकी जय-जय। गुड_नाईट...


- सुकुमार 

05-10-2022

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