सिवाना डायरीज - 52
सिवाना_डायरीज - 52
"जहां भर के थके, हारे और मायूस लोग अगर तुम्हारी छाँह में सुस्ताना चाहते हैं। तब तुम्हे इस बात की चिंता किये बिना कि तुम्हें सींचने में किसी ने एक लोटा पानी भी दिया था या नहीें, अपनी शाखाओं का विस्तार कर ही लेना चाहिए। विश्वास करो, जिंदगी की जमीन आँसू और पसीने से सींची मिट्टी में भविष्य में कुछ अच्छा ही निपजायेगी और तब तुम साक्षी रहोगे यह सब देख पाने के।"
-खुद के बनाये जाल में फँसते देखा है आपने किसी को! अगर नहीं तो खुद को ही देख लो। सच्ची-सच्ची सोचूँ तो हमारी सारी परिस्थितियों के जिम्मेदार हम स्वयं है। चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक। अब जो बची है जिंदगी, उसमें बन जायें निराश्रितों का घर तो हर्ज क्या है। आखिर हमारे अच्छे-बुरे विचारों को भी शरण तो दी ही थी ना किसी ने। जिंदगी के जिस दौर से गुजर रहा हूँ, खुद का बनाया मायाजाल सोचने पर मजबूर कर रहा है। कशमकश में है दिल की राह चलते राहगीर के सुस्ताने के लिए खुले में खड़ा बरगद का पेड़ हो जाये या सीमेंट-कंकरीट से बनी आलीशान धर्मशाला जिसके मैन-गेट पर चार-स्टेप वाला बड़ा तालाब लगा हो। इस बात की चिंता करूँ कि धर्मशाला के निर्माण में किस-किसने अपनी तरफ से ईंट-पत्थर दिये थे या बरगद की तरह हो जाऊँ कि जो भी आये, बस आराम पाये। स्वार्थपरता है थोड़ी सी और बहुत-कुछ इन्हीं राहगीरों के फेंके पत्थर याद आ रहे हैं। देखते हैं, क्या होता है आगे।
खैर, रावण को जलाने का अगला दिन। मतलब सत्य की जीत। कुछ सच मैंने भी जीना चाहा, तो आँखों में आँसू मिले प्रतिफल में। सच भी है, आसानी से डाइजेस्ट नहीं होता सच। उच्च प्राथमिक विद्यालय, पीपलून जाकर पहली-दूसरी के बच्चों के साथ आज संख्यापूर्व अवधारणाओं पर काम किया। पहली कक्षा के तनसिंह ने 'हम भारत के भरत खेलते' कविता एक साँस में सुना दी। गोलिया पीईईओ लगता हैं यहाँ। स्कूल-लंच के बाद उच्च प्राथमिक विद्यालय, गूंगरोट का प्लान था, मगर गोलिया सीनियर सेकेंडरी में ही रुकना पड़ा। नौंवी और दसवीं के बच्चों से खूब सारी बातचीत हुई। हाफ-डे बाद पूरा टाईम ऑफिस में निकला। तबियत नासाज है आज थोड़ी। हल्की सी फिवरिश भी फील हो रही है। खाँसी, जुकाम और नाक-बंद को झेल रहा हूँ पिछले दो दिनों से।
मन ठीक नहीं है। जैसा पहले पेरेग्राफ में लिखा है, वो ही स्थिति है। स्पष्टीकरण की अति मन भी खराब कर रही है और दिन भी। आत्म-सम्मान और परवाह की फिक्र के बीच की डोरी ढूंढ़ रहा हूँ। आप किसी की जिंदगी में कितना महत्व रखते हैं, ये जाने किस बात पर डिपेंड करता है। एक पक्षी जिसे कनेर ही ठीक लगता था। गुलमोहर के खूब बुलाने पर भी नहीं गया वो उसके पास। फिर जब कनेर ने लतिया दिया एक दफा, तब गुलमोहर को आकर कह रहा है मुझे तो प्रारंभ से तुम ही ठीक लगते थे। अब गुलमोहर पसोपेश में है कि करे क्या! खैर, अपनी मनोहरा ने हरसिंगार लगा लिया है अपने घर में। आज हुई थोड़ी सी बारिश से खुश है कि मेरे हरसिंगार को बड़ा होने में मदद मिलेगी। अब नींद आई है। टेबलेट लेकर सो जाता हूँ...
गुड नाईट...
- सुकुमार
07-10-2022
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