सिवाना डायरीज - 54
सिवाना_डायरीज - 54
"सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति होती है।"
-मेरी वन ऑफ फेवरेट कहानी 'पूस की रात' के कहानीकार का कथन है ये। बिल्कुल गोस्वामी जी के 'समरथ को नहीं दोष गोसाईं' के माफिक। आज पुण्यतिथि भी है मुंशी प्रेमचंद की। लगभग 85 साल से ज्यादा समय तो उन्हें यहाँ से गये हो गया, प्रासंगिकता मगर थमी रही महाराज के लिखे की। खुद में झाँककर देखें तो भी अब इस पंक्ति को ही जीवन-वाक्य बना लेना ठीक लगता है। वैसे मैं खुद भी सोचता रहता हूँ ये कि अपनी सफलता वाली चादर इतनी बड़ी कर दो कि चोरी-छिपे किया, गाहे-बगाहे हुआ और यश-अपयश भरा सारा कुछ उसमें छिप जाये। चित्तौड़ वाले कमल सर मुझे हमेशा कहते थे कि दुनिया परिणाम देखती है। आपने कितना पसीना बहाया, ये भी तब ही पूछा जायेगा जब आप सफल हो जाओगे। अन्यथा हारे हुए के यहाँ तो लोग ढाढ़स बंधाने तक जाने से कतराते हैं। पिछले चार-पाँच दिनों से मैंने भी झाँका है थोड़ा खुद में और थोड़ा आस-पास। लोग चाहे जितने विश्वस्त हो आपके। आपके अचीव कर लिये तक ही विश्वास है उनका। आपकी सम्भावनाओं पर आपको होगा विश्वास, उन्हें नहीं है। और वो करें भी क्यों? आपकी परिपक्वता इसमें है कि अपनी सफलता के लिए सारी उम्मीदें, सारा विश्वास, सारी कोशिशें और सारा श्रम अपने दम पर ही भरें। दूसरे आपके पास तब खुद चलकर आयेंगे, मगर तब जब ये सब सफलता में बदलेंगे।
बहरहाल, शनिवार मतलब स्कूल्स का नो-बेग डे। प्री-प्लान्ड था अपना आज का शिड्यूल। लंच से पहले प्राथमिक विद्यालय, कानसिंह की ढाणी गया और लंच के बाद प्राथमिक विद्यालय, निम्बेश्वर। अम्बा दीदी की स्कूल कानसिंह की ढाणी में तीसरी, चौथी और पाँचवी के बच्चों के साथ खूब सारी बातें हुई। गत 24 सितम्बर को बर्थ-डे निकला था चौथी क्लास की स्टुडेंट जनता का। उसको हमनें तीनों क्लास की तरफ से पेंसिल-कलर गिफ्ट किये। निम्बेश्वर स्कूल तो मेरा सबसे पसंदीदा स्कूल हो गया है। वहाँ के बच्चे पूजा, स्वागत, भावेश, रविना, दिव्या, एक और छोटी पूजा और भी कई सारे - सब पक्के वाले दोस्त बन गये हैं अपने। सबने मिलकर 'हाथी आया, हाथी आया' वाली कविता का पोस्टर बनाया आज। हाथी का चित्र पाँचवी कक्षा की पूजा ने बनाया पोस्टर पे। मैदान में खेल भी खेले खूब सारे और हँसी-ठिठोली भी की खूब। स्कूल खत्म होते ही घर आकर लंच बनाया और खाया बस। बाकी शाम यूँ ही आ गई कुछ पढ़ते-कुछ गाने सुनते।
जुकाम उतार पर है और खाँसी भी। मने तन ठीक रहा, बस मन नहीं। जैसा कि कल महसूस किया और लिखा था मैंने, आज भी दिन-भर मन अपनी अहमियत ही टटोलता रहा। और जो टटोला तो पाया कि सफल होना कितना जरूरी है। लोग आपकी जिंदगी में होकर भी नहीं है अगर आप अभी तक ऑन द वे ही हैं तो। नींद आज कोसों दूर है जबकि दिन में भी नहीं ली झपकी भी। मन को कुछ कचोट रहा है कि जिसकी प्रतीक्षा रहती है इसे बार-बार, क्या वो बस औपचारिकता के लिए ही आयेगा! मेरी उपस्थिती मे भी अगर मन भाग रहा है, तो मुझे सच में खुद पर बहुत काम करने की जरूरत है। और अब मैं करूंगा खुद पर काम। बहुत हो चुका। सोने की कोशिश करता हूँ। उम्मीद करता हूँ मेरा होना भर कुछ स्थिर करे मन को। बाकी जय-जय।
गुड नाईट...
- सुकुमार
08-10-2022
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