सिवाना डायरीज - 56

 सिवाना_डायरीज  - 56


बाजरी कटकर खड़ी थी एक झुंड में खेत में। हिम्मत हार चुकी जमीन को तब तक भी यक़ीन था खुद पर, के निपजता तो है उसमें कुछ। एक रोज थ्रेशर आया और कर गया चूर-चूर। केवल बाजरी को ही नहीं, जमीन की उम्मीदों को भी। अपने दम पर पहाड़ियों का उड़ेला सारा पानी रिस लिया खुद में। मगर ट्यूबवेल जैसी कोई आई मशीन और कर गई वो भी खोखला, इसे। अंडरग्राउंड वाटर के नाम पर रोने के लिए आँसू तक ना छोड़े। उड़-उड़कर रेत आती गई और पसारती गई अपनी सल्तनत इस पर, मगर उफ्फ तक न बोली ये जमीन। कितने ही तेरी जाति-मेरी जाति के शीत-युद्धों को झेलते हुये भी लोकतंत्र जिंदा रखा इसने खुद में। तभी तो सिवाना के अपने घर वाले मम्मीजी कह रहे थे - "कभी नहीं था मेरा सिवाना ऐसा। खूब पानी था मेरे सिवाना में। ये तो जाने किसकी नजर लग गई इसको कि सारी पानी सूख गया। पीने के लिए पानी भी पन्द्रह दिन में एक बार आने लग गया।"


बहरहाल, एक स्कूल देखा आज जो श्रेष्ठ है संसाधनों के हिसाब से, सिवाना में आज तक के देखे स्कूल्स में। मतलब ना कि जरूरी कक्षा कक्षों के अलावा पोषाहार कक्ष, स्टाफ-कक्ष, पुस्तकालय कक्ष(रीडिंग काॅर्नर के नाम से) और एमडीएम के लिए सेपरेट बिल्डिंग। कुल स्वीकृत नौ पदों में से छः भरे हैं अभी। कार्यवाहक प्रधानाध्यापक मोहन जी हैं जो साईंस-मेथ पढ़ाते हैं बच्चों को। अधिकांश कक्षाओं में बच्चों के बैठने के लिए टेबल-बेंचेज हैं और पढ़ने के लिए मार्कर वाला बोर्ड। महिलावास पीईईओ रीजन में मालियों का बेरा स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय सचमुच बहुत खूबसूरत है। मोहन जी की स्कूल मन मोह गई मेरा। पहली कक्षा के बच्चों के साथ रहा लंच से पहले और लंच के बाद छट्ठी और आठवीं के साथ। शाम को दि डिलिशस राजमा-चावल खिलाकर हमारे बड़े भैया रघुनन्दन जी ने अपने प्यार का और कर्ज चढ़ा दिया मुझपे। 


रात के बारह बजने में सात मिनट बच रहे हैं और कमरे की खुली खिड़की के तारों से छन-छनकर आती हवा जैसे कुछ कहना चाह रही है मुझसे। जैसे कहना चाह रही हो कि महसूस कर उस खत को जो लिखा जाना बाकी है तेरे लिए। महसूस कर उस कविता को जिसमें हर 'तुम' में तुम खुद को देख सको। जैसे कहना चाह रही हो कि डूब जा अब नींद के आगोश में और उड़ेल दे कपाल का सारा बोझ उसी के हिस्से। सच में मैं भी मैं हवा हो जाना चाहता हूँ अभी...शब्बा खैर...


-सुकुमार 

10-10-2022




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