सिवाना डायरीज - 58
सिवाना_डायरीज - 58
"मुसाफिर हूँ यारों, ना घर है, ना ठिकाना।
मुझे चलते जाना हैं...हाँ, चलते जाना..."
-वाले फील में हूँ आज शाम से ही। एक पल के लिए माथे पर सल प्रिंट हुये थे जब यूँ मुसाफिर हो जाने की कहा गया, मगर 5 मिनट बाद वो प्रिंट हवा हो गई जब सोचा कि जिंदगी में आये भी तो इसीलिए हैं। सिवाना की थोड़ी सी पहाड़ियाँ धक्का मार रही हैं कि जा दूर-दूर तक फैली रेत देख आ। लूणी नदी बालोतरा के बाद खारी हो जाती है और धीरे-धीरे लुप्तप्राय भी। जा देख आ जहाँ-जहाँ भी पुलों के नीचे रेत पसरी है लूणी के नाम पर। दौड़ने-भागने के इस सिलेबस का जो मुख्य उद्देश्य है, वो परीक्षा में अच्छे अंक लाने के बजाय लाइफटाइम लर्निंग लग रहा है मुझे। सूखी लूणी नदी के सहारे-सहारे कल सुबह से ही लबालब नर्मदा नहर की दिशा में दौड़ना है अब मुझे। देखते हैं क्या होता है।
खैर, अच्छा बिता दिन। सुबह पीपलून स्कुल गया था आज अपने स्केफोल्डिंग प्लान को लेकर। मीना मे'म, नीलम मे'म और सविता मे'म से विस्तृत चर्चा की अपने विषय को लेकर। पहली-दूसरी-तीसरी के बच्चों के साथ भी गणना की अवधारणाओं पर खूब बात की। साचौर में उगी बाजरी, सिवाना की बाजरी और बाड़मेर-गडरा रोड़ वाली बाजरी में बहुत अंतर होता है। बाड़मेर की रेतीली मिट्टी में उगी बाजरी सबसे पौष्टिक और स्वादिष्ट होती है। ये बात स्कूल में आये दिन आने वाले एक बुजूर्ग से दिखने वाले बाऊजी ने बताई। लंच के बाद कशमकश चलती रही कल वाली क्लस्टर वर्कशाॅप और बाल-मेला, धोरीमन्ना में अपनी उपस्थिति को लेकर। शाम होते-होते फाइनल हुआ कि कल से तीन दिन धोरीमन्ना ही निकालने हैं अपने को। दिन में लंच चे समय ही देवेन्द्र जी भाईसाहब का फोन आया था कि वे बालोतरा हैं प्रवास पर। इसलिए अभी शाम ही निकल लिये अपन सिवाना से दिवाली की राम-राम और पंद्रह दिन के लिए नमस्ते करके। अतिथि कक्ष में खूब सारी बातें हुई भाईसाहब से अभी बारह बजे तक। अब सोने के लिए हाॅल में आया हूँ नगर प्रचारक जी और कार्यालय में रहने वाले विद्यार्थी के बीच। सुबह जल्दी ही धोरीमन्ना निकलना है। नींद भी आने लगी है...
शुभ रात्रि...
- सुकुमार
12-10-2022
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