सिवाना_डायरीज - 60

 सिवाना_डायरीज  - 60


"किसी के काम जो आये उसे इंसान कहते हैं।

पराया दर्द अपनाये उसे इंसान कहते हैं..."

-दिन में 01 बजे छुट्टी हो जाती है अभी अपने राजस्थान के स्कूल्स में। ये आवाज शाम को साढ़े चार बजे गूंजी कानों में, जब मैं बैठकर माॅडल फाइनलाइजेशन कर रहा था माॅडल्स का बाड़मेर के धोरीमन्ना ब्लाॅक के भीमथल पीईईओ रीजन में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय-मूंढ़णों की ढाणी के बरामदे में। आवाज इतनी खूबसूरत थी कि आँखें बंद कर महसूस करने से नहीं रोक पाया खुद को। चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाने के बाद दो कमरों, एक ऑफिस और एक बरामदे वाले छोटे से स्कूल में ये आवाज जिधर से आ रही थी, उस तरफ खींचे चले गये कदम मेरे। दूसरे वाले कमरे की देहरी पर खड़ा होकर चौथी कक्षा का श्रवण किवाड़ पर चिपके कागज को देखकर गा रहा था ये। उसको डिस्टर्ब किये बिना बस वहीं खड़ा हो गया था मैं। कभी-कभी ना यूँ लगता है कि माँ वीणापाणि यहीं-कहीं आस-पास विराजित है अभी, जो अपने आभामंडल में उपस्थित सारे लोगों को दुकान रही है। श्रवण, चौथी कक्षा का एक लड़का जिसका सेंस-ऑफ-ह्यूमर शायद आठवीं-दसवीं के बच्चे से भी ज्यादा हो। बात केवल श्रवण की नहीं हैं, दिन-भर इसी स्कूल में रुकने के बाद शाम तक लगभग 20 से ज्यादा बच्चों में अलग-अलग तरह का कौशल प्रतीत होता पाया मैंने। 

बहरहाल, धोरीमन्ना हूँ आज। हमारे पर्सपेक्टिव से देखें तो घनश्याम जी, शिवम जी और कृष्णा जी का धोरीमन्ना। धोरीमन्ना ब्लाॅक जो कोरोना-काल की अनचाही रोक के बाद पहला बाल-मेला ऑर्गेनाईज कर रहा है खुद में। बाड़मेर जिले में ये पहला कदम धोरीमन्ना का ही है। मूंढ़णो की ढाणी के दस्तावेजी एचएम ठाकराराम जी असल में बच्चों के साथ बच्चे ही हैं। जिन शिक्षकों का ये मानना है कि बच्चों को सिखाने के लिए थोड़ी सी मार-फटकार या बेंत का डर बहुत जरूरी है, उन्हें एक बार घुमाकर लाया जा सकता है धोरीमन्ना ब्लाॅक की इस स्कूल में। राजस्थान की सामान्य सरकारी स्कूल की पाँचवी कक्षा का एक बच्चा अगर प्रजेंट और पास्ट टेंस के अफरमेटिव, नेगेटिव और इंट्रोगेटिव सेंटेंस हर बार ठीक से बना पाता हो और बहुत ही आत्मविश्वास से उसका माॅडल बना सकता है तो मुझे लगता है सेलिब्रिटी फील है ये उस स्कूल के टीचर्स का। ठाकराराम जी ऐसे ही उदाहरण है राजस्थान के उन शिक्षकों के लिए जो यह कहकर अपना पल्ला जाड़ लेते हैं कि टीचर्स के पास ऑनलाइन काम कितना है, बच्चों को कैसे पढ़ायें?

हिंदी, अंग्रेजी और गणित विषय के कुल दस माॅडल्स बनाये हैं बच्चों ने और ग्यारहवा है एबीएल किट के साथ आया एक किराणा दुकान का प्रतिरूप। दिन-भर में एल्फाबेट्स से स्पेलिंग बनाओ, छोटी और बड़ी संख्याएं पहचानों और स्थानीय मान बताओ जैसे कई माॅडल्स को अंतिम रूप दिया हम सबने मिलकर। एचएम ठाकराराम जी प्रबंधन संबंधित व्यवस्थाओं में व्यस्त रहे, साथी रूपकिशोर जी स्कूल एवं अन्य व्यवस्थाओं में और हम सब बच्चे कल होने वाले बाल-मेले को और भी खूबसूरत करने की कोशिशों में ही लगे रहे दिन-भर। लगभग तीन बजे तक सारे बच्चे रुके स्कूल में और पाँच बजे तक दोनों टीचर्स, मैं और कुछ बच्चे। 


कल बाल मेला है। मेरे लिए यहाँ आने के बाद पहला इतना बड़ा इवेंट। फाउंडेशन पर्सपेक्टिव से देखूँ तो मैं विशेष लाया गया हूँ यहाँ मेले को और व्यवस्थित और ठीक करने के लिए। मन से मैं भी संतुष्ट हूँ कि कोशिश की है शत-प्रतिशत देने की। कुछेक सामान्य चीजें भले भूला जो घनश्याम जी और शिवम जी ने स्पेशली बताई थी, बट ऑवरऑल बहुत प्यारा निकला दिन। धोरीमन्ना एलआरसी आने के बाद भी लगे रहे हम कुछ पोस्टर्स और 'ट्राई अगेन' और 'वेल डन' के टेग्स तैयार करने में। 

जब दिन-भर मनचाहा होता है ना, तो शाम को नींद में थोड़ा सुकून खुद-ब-खुद घुल जाता है। होटल दि लार्ड कृष्णा में एसी को 24° करके मैं खो जाना चाहता हूँ मूंढणों की ढाणी में बिताये इस दिन-भर के बचपन को।

चलो अभी सो ही जाता हूँ। कल मिलते हैं बाल-मेले में।

शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

14-10-2022

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