सिवाना डायरीज - 61

 सिवाना_डायरीज  - 61


"पिघला दे जंजीरें

बना उनकी शमशीरें 

कर हर मैदान फतेह ओ बंदेया

कर हर मैदान फतेह..."

-बैकग्राउंड में ये धुन असल में नहीं बज रही थी मूंढ़णों की ढाणी स्कूल में आज! मगर मेरे कानों में अपने-अपने प्रोजेक्ट-माॅडल लिये बैठे छोटे-छोटे बच्चों के चेहरे पर कुंडली मारे बैठा आत्मविश्वास बार-बार ये ही विजय-ध्वनि बजा रहा था। कोई जींस-ट्राउजर और बेल्ट से कमर कसे प्रोफेशनल लुक वाले सर नहीं हैं उनके पास। उनके पास है सामान्य रूप शर्ट-इन न करके बाहर ही रखने वाले ठाकराराम जी और रूपकिशोर जी। 

अपने धोरीमन्ना के साथी घनश्याम जी द्वारा एक ही रात पहले बनाया स्वागत-पोस्टर स्कूल की फाटक पर जब श्रुति और स्कूल के ही चौथी के श्रवण ने लगाया, बरबस मुस्कान आ गई हर एक अंदर आते शख्स के चेहरे पर। स्वाति, शतांति और सागर ने जब बरामदे वाले मुख्य सूचना-पट्ट पर अभिनंदन-आर्ट शुरू की थी, मुझे बहुत औसत लग रहा था ये। मगर जब फाइनली तैयार हुआ बोर्ड, तब कोई नहीं रोक पाया खुद को अपनी नजरें उधर लगाने से। अनुराग बच्चों के साथ गुब्बारे फुलाने के काम के साथ उनमें ही घुल सा गया था और संतोष तैयार था आज होने वाले हर एक मूवमेंट को कैद करने को। इन्हीं सभी साथियों ने घनश्याम जी के साथ हर माॅडल के थ्योरिटिकल चार्ट भी तैयार किये थे सुबह-सुबह स्कूल में ही। अपने घनश्याम जी, एचएम ठाकराराम जी और शिक्षक रूपकिशोर जी के लिए ये कार्यक्रम 'बेटी के ब्याह' जैसा लग रहा था। तीनों की इस कार्यक्रम में तन्मयता बिल्कुल दुल्हन के पिता की भाँति प्रतीत हो रही थी। मतलब न कि जिसे जो काम पेंडिंग दिख रहा था, वो उसी में लग जाते थे। काम छोटा-बड़ा, कम-ज्यादा और उसके करने लायक-इसके करने लायक जैसा कुछ नहीं था उनके लिए। और ये सब तो वो है जो मेरी आँखों ने देखा पिछले ढाई दिनों में, मगर इस इमारत की बुनियाद खड़ी करने में जितना पसीना घनश्याम जी, शिवम भाई और कृष्णा भैया का काम आया होगा, उसको हम फाउंडेशन के लोग तो ठीक से समझ ही रहे होंगे। 


अब हाईलाइट्स बता देता हूँ थोड़ी-थोड़ी -

इवेंट - बाल मेला

स्कूल - राजकीय प्राथमिक विद्यालय,  मूंढ़णों की ढाणी, भीमथल, धोरीमन्ना, बाड़मेर

दिनांक - 15 अक्टूबर, 2022

1) सुबह लगभग 10 बजे से शुरू होकर दोपहर 12:30 बजे तक चलने वाले इस मेले में आया हुआ और प्रत्यक्ष या परोक्ष जुड़ा कोई शख्स ऐसा न होगा, जो कुछ-न-कुछ सीखकर या जानकर नहीं गया हो। सीबीईओ-धोरीमन्ना खैरात जी, पीईईओ शंकराराम जी और सरपंच रामलाल जी से लेकर अपनी माँ के साथ दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली अपनी बड़ी बहन के स्कूल में पहली बार आया तीन साल का राहुल भी कुछ-न-कुछ तो ले ही गया वहाँ से अपनी आँखों में छापकर।

2) लगभग 09 स्कूल्स के 350 बच्चे जुड़े थे इस मेले में प्रतिभागी या दर्शक के रूप में। सब अपने-अपने हिस्से का सीखना अपने साथ ले ही गये होंगे।

3) लगभग 25 ग्रामीण-जन और प्रशासनिक अधिकारी जिनका स्कूल से सीधा-सीधा कोई वास्ता नहीं है, उपस्थित रहे मेले में। यही बताता है कि एक छोटी सी ढाणी के प्राथमिक विद्यालय का उजास कहाँ तक गया होगा।

4) लगभग कुल 51 स्टाॅल्स जिन पर हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान के कई माॅडल्स पर बच्चे अपनी प्रजेंटेशन दे रहे थे।

5) पीईईओ क्षेत्र भीमथल के लगभग 25 शिक्षक और अपने फाउंडेशन के 11 सदस्यों ने व्यवस्था, प्रबंधन और टेबल्स पर माॅडल्स के प्रोपर एस्टाब्लिशमेंट के लिए कमान संभाल रखी थी।

6) पेड़ों पर रस्सी बांधने, टेबल्स सेट करने, पीने के लिए टाँके से पानी केन में भरने, टेंट खड़ा करने और मेला देखने जैसा कोई भी काम ऐसा नहीं था जिसमें सभी की भागीदारी न हो। 

7) मेले की शुरुआत के छोटे से उद्घाटन समारोह में संचालन अपने महावीर भाई ने किया।


कुछ रोचक बातें -

1) अंग्रेजी वाक्य निर्माण के माॅडल वाले पाँचवी कक्षा के रमेश को शिकायत रही कि बड़ी कक्षा के बच्चे, गाँव के कई बड़े शिक्षित लोग और कुछेक शिक्षक भी उसकी स्टाॅल पर रुकने की हिम्मत नहीं कर पाये। सबके मन में डर था कि आई, यू, वी, दे, ही, शी, इट और किसी नाम वाले सब्जेक्ट के साथ इज, एम, आर, वाज, वर जैसी हेल्पिंग-वर्ब में से कुछ भी गलत न हो जाये।

2) पीईईओ सर जब अपना स्पीच दे रहे थे, तब ठाकराराम जी बच्चों को शांति से बैठे रहने के लिए उनके पास खड़े थे। ज्यों ही पीईईओ सर ने ठाकराराम जी के अच्छे प्रयासों वाली लाईन बोली, सबसे पहले उन्होने ही ताली बजाई और उनके तुरंत बाद सारे बच्चों ने जोर-जोर से।

3) फाउंडेशन के अपने एसोसिएट्स किसी सामान्य गाँव में आये फाॅरेनर्स की तरह प्रतीत हो रहे थे। आपस में अंग्रेजी, हिंदी और कभी-कभार तमिल-मलयालम यूज करते संतोष, श्रुति, अनुराग और स्वाति सबके लिए सेलिब्रिटी जैसे थे। हालाँकि इन सबका व्यवहार, कार्य और मन सब मेले के मुताबिक थे। मगर बच्चे, शिक्षक और गाँववालों से लेकर पीईईओ-सीबीईओ तक सब इनके बारे में जानकर बहुत अचम्भित से थे। निश्चित ही फाउंडेशन के प्रति उनका भाव और अधिक अच्छा हुआ होगा।


अब मेले के माॅडल्स की बातें -

1) चूड़ी फेंको-स्पेलिंग बनाओ वाला माॅडल दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर रहा था बड़े-बड़े पढ़े लाखों को भी।

2) चूड़ी फेंको-जोड़ करो वाले माॅडल के दहाई दिखाने वाले स्टार्स बच्चों को बहुत कंफ्यूज कर रहे थे।

3) रमेश के इंग्लिश वाले सेंटेंस मेकिंग माॅडल को स्क्रॉल करने की हिम्मत कुछेक लोगों की ही हुई।

4) एक चक्र वाले माॅडल में वाॅवेल-कोंसोनेंट के जोड़ों का मिलान कर सार्थक शब्दों की पहचान करना बहुतों के माथे पर लकीर खींच गया।

5) छोटी, बड़ी और बराबर की संख्याओं के पहचान वाला माॅडल प्राथमिक वाले बच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी बहुत ठीक रहा।

6) भीमथल सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों ने विज्ञान विषय के युग्मनाज, ह्रदय, जैव-गैस संयंत्र और रोम्बस का आमाशय जैसे कई पोस्टर्स बनाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

7) पोखराणियों की ढाणी के प्राथमिक विद्यालय के बच्चों ने थर्मोकोल और गत्तों से भीमथल के पूरे ग्राम-पंचायत भवन का माॅडल खड़ा कर दिया था।

8) उसी स्कूल के एक बच्चे ने ऑक्सीजन-मास्क और जल-स्त्रोतों के माॅडल से लोगों को जागरूक करने की कोशिश की।

9) भीमथल स्कूल की छात्राओं ने संज्ञा-शब्दों की पहचान और विलोम शब्दों को समझने के लिए हैंडीक्राफ्ट आधारित माॅडल बनाये थे।

10) रंगों की पहचान, आने वाला कल-जाने वाला कल, सप्ताह के दिनों और बीज से पेड़ बनने सम्बंधित कई और माॅडल्स भी थे, जो मेले को संवर्धित कर रहे थे।


कुछ बिंदू जो और भी जोड़े जा सकते थे -

1) बच्चों की अभिव्यक्ति पर थोड़ा और काम किया जा सकता था। 

2) बाल-मेले को मेले जैसा माहौल देने और बच्चों को सहज करने के लिए गुब्बारों के अलावा और कोई विकल्प नहीं नजर आया।

3) व्यवस्था संबंधी पक्ष थोड़ा और ठीक किया जा सकता था।


इस बाल मेले में अपना फाउंडेशन -

1) जैसा मैंने जाना और समझा कि शिवम भाई, घनश्याम जी और कृष्णा भैया ने खूब काम किया हुआ था पहले ही बच्चों पर। और ये बात पीईईओ सर ने भी कही थी अपने स्पीच में।

2) महावीर भाई, संदीप भाई और रवींद्र जी की उपस्थिति ने सबको ऊर्जा दी।

3) अपने एसोसिएट्स के लिए तो बस इतना कहूँगा कि जहाँ भी होते हैं, जान डाल देते हैं कार्यक्रम में।

4) दो दिन पहले मुझे भी अवसर दिया था इसे और खूबसूरत करने को अपनी बाड़मेर टीम ने। मेरे लिए पहला अवसर था और मैंने कोशिश की अपना शत-प्रतिशत देने की। बाकि का असेसमेंट मेला देखने वालों के हाथ में।

5) सीबीईओ, पीईईओ समेत सब लोग प्रशंसा कर रहे थे अपने फाउंडेशन के सहयोग की। स्पेशली ये कह-कहकर कि -

"अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के घनश्याम जी और पूरी टीम का खूब-खूब धन्यवाद इस अप्रतिम योगदान के लिए..."


अपना पूरा दिन इसमें ही निकला और शाम रवाना हो गये अपन भी पहले बाड़मेर और फिर जयपुर के लिए। ट्रेन के थर्ड-एसी कोच में पड़े-पड़े लिख रहा हूँ ये सब। अब नींद भी आई है।


बाकी अपनी तरफ से भी अब जय-जय...

धन्यवाद...


-सुकुमार

15-10-2022

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