सिवाना डायरीज - 62
सिवाना_डायरीज - 62
"मीत न मिला रे मन का
कोई तो मिलन का
कोई तो मिलन का,
करो रे उपाय
मीत ना..."
-मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा और किशोर कुमार का गाया गीत बज रहा है मन में। वैसे सनातन सिंगल्स के लिए तो ठीक है ये, मगर कहीं एसोसियेटेड हैं अगर आप, तब ये कभी भी ठीक नहीं। मैं किस फेज में हूँ अभी इस वक्त, कुछ समझ नहीं आ रहा। अकेला बैठा-बैठा जब खुद को सोचने लगता हूँ, पाता हूँ कि खुद को बनावटीपन से परे बताते-बताते कितना बनावटी हो गया हूँ मैं। एक कचेलापन जम गया है तहों-तहों पर तो मेरे भी। बढ़ती उम्र अब मुझे काट खाने लगी है और अंधेरे आँखें बंद कर देने के लिए काफी नहीं हो रहे। चटका तो कई बार हूँ, मगर इस बार टूट रहा हूँ। मन की दीवार पर कोई घाव है जो फैलता जा रहा है, फैलता जा रहा है और मैं नहीं चाहता अब इसे रोकना...
लगभग 07:30 बजे ट्रेन ने पटका आज हमें गुलाबी नगरी में। फाउंडेशन के ही आशिमा जी, हैदर जी और कृष्णा जी है साथ बाड़मेर से गणित की पंचदिवसीय कार्यशाला में। कैब से होटल शाहपुरा रेजिडेंसी पहुँचे हम और नहा-धोकर निकल लिये जीटी टावर घूमने के लिए। आशिमा जी की एक मित्र पुष्पा जी भी आ गई थी वहीं अपनी बहू और पोते के साथ। सिया के दो ड्रेस और गुड़िया के एक कुर्ती मैं भी लाया आज की शापिंग में। पुष्पा जी के घर भी जाना हुआ मानसरोवर में। उनके दोनों बेटे राम और श्याम जोरदार है यार। एक जिम-ट्रेनर है दिल्ली से ट्रेन्ड और एक म्यूजिक टीचर है जो ऑनलाइन क्लासेस भी देता है। मेरे तो दोनों ही काम के हैं। वहाँ से श्याम भैया ने हमें फिर से होटल छोड़ा। आज रिपोर्ट तैयार की अपन ने कल वाले बाल मेले की ठीक तरीके से। वो कम्पलीट करके लंच के लिए गये नीचे रेस्ट्रां में और अब बिस्तर में हूँ बस। ये ही रहा आज का दिन। कल से वर्कशाॅप शुरू होने वाली है स्टेट ऑफिस में।
मन का कुछ पता नहीं चल रहा। अच्छे-बुरे का सोच पाता तो इतना परेशान भी न रहता। मुझे इसको रोज समझाना पड़ता है, रोज दिलासा देना पड़ता है। कितना और बेवकूफ बना पाऊँगा इसे, नहीं पता। बस मरना नहीं चाहता मैं। खैर अभी ठीक नहीं है कुछ भी। मैं कट जाता हूँ सबसे दूर। बाकि बाद में देखते हैं। शब्बा खैर!!!
-सुकुमार
16-10-2022
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