सिवाना डायरीज - 63
सिवाना_डायरीज - 63
"इंदिरा जी, हम दोनों में बस एक इक्वलिटी है। आपकी नाक भी तीखी है, और मेरी नाक भी।"
-1971 के युद्ध में 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों से आत्मसमर्पण करवाने के बाद आर्मी-चीफ सेम माणिक शा के लिए जब ये बात उठने लगी कि अब शायद आर्मी-रूल लगाकर सेम भारत के शासक न बन जाये, तब सेम ने कही थी ये बात इंदिरा जी से। तीसरी बार सुना ये किस्सा आज। सेम के प्रति सम्मान तीसों गुना बढ़ गया फिर से। विभाजन के समय याया खान जब सेम के जूनियर थे, तब सेम की एक बाईक खरीदकर ले गये थे वे पाकिस्तान और वहाँ पहुँचकर भुगतान के लिए मना कर दिया था। तब 1971 का युद्ध जीतने के बाद सेम ने बस ये ही कहा था - "मैंने तो याया खान से अपनी बाईक का हिसाब लिया है बस। सच में ना मन खुश हो जाता है सुबह-सुबह जब ऐसे प्रसंग पढ़, सुन या देख लेता हूँ कहीं।
बहरहाल, गुलाबी नगर में मैथ ऑपन-काॅर्स का पहला दिन था आज। सुबह टाईम पर उठ गये थे हैदर भाई और हम दोनों। रेडी होकर गये नीचे तो बुफे सिस्टम वाले ब्रेकफास्ट में यही कोई बारह-पंद्रह चीजें थी। माथे पर सिलवट भी आई जब लास्ट स्टाॅल तक पहुँचा मैं। थोड़ी असहजता तो हो ही जाती है हम जैसे प्योर वेजिटेरियन लोगों के लिए जब बाॅयल्ड-एग्स वाली स्टाॅल भी सबके साथ ही लगी हो। आशिमा दीदी, हैदर भाई और कृष्णा भैया बात कर ही रहे थे कि आज रोहित ने इतना कम ब्रेकफास्ट कैसे किया। खैर, वहाँ से निपट हम टाईम पर पहुँच गए थे हमारे स्टेट-ऑफिस। दिन-भर चली चर्चाओं में संख्यापूर्व अवधारणाओं और गणित शिक्षण के उद्देश्यों पर ढेर सारी बातें हुई। हमारे फेसिलिटेटर आशीष जी, धीरेंद्र जी और दिनेश जी रहे। लंच वहीं सामने वाले होटल में था और चाय-बिस्किट दोनों टाईम ऑफिस में ही। शाम को लगभग साढ़े छः बजे फ्री होते ही पहुँच गए हम चारों वर्ल्ड ट्रेड पार्क में। पहली बार गया था मैं वहाँ। अद्भुत है वो। मे बी अपने राजस्थान का सबसे बड़ा माॅल। दुबई बाजार से खुशबू के लिए एक स्वेटर लिया है। मतलब ना कि अपनी अनिवार्य वाली शापिंग पूरी। हैदर भाई के लिए टेबलेट-मेडिसिन्स लेकर होटल आये और डिनर करके आ गये रूम में। बस ये ही हुआ दिन-भर में आज। सीधी-सीधी बात ये है कि बैठे-बैठे ही थक गये आज तो।
अंदर ही अंदर द्वंद्व बना रहा आज दिन-भर। सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा। या यूँ कहूँ कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। मुझे सम्मान रखना है अब दूसरों के मन का भी। केवल खुद के लिए सोचना कहाँ तक ठीक है! मैं समझा रहा हूँ अपने मन को भी बार-बार। मान जायेगा एक दिन। कल जो मैंने खुद के बनावटीपन वाली बात कही थी, वो सच में सच है। मैं बहुत खुश दिख रहा हूँ सबको मगर मन मर जाने का हो जाता है कभी-कभी। मगर नहीं, मरने के बाद तो कहानी खत्म हो जायेगी मेरी, और अभी तो ठीक-ठाक एंडिंग बाकी है ना! वैट करते हैं...
गुड नाईट...
- सुकुमार
17-10-2022
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