सिवाना डायरीज - 64

 सिवाना_डायरीज  - 64


"The best strategy to win a war is to keep a peace."

-जयपुर में पाया जाता हूँ आजकल। पिंकसिटी की शान वर्ल्ड ट्रेड पार्क के थर्ड-फ्लोर वाले दुबई बाजार वाले पाॅर्शन के टायलेट में लगा था ये क्वोट। अपने काम से निपटते ही हैंडवाश करके सबसे पहले इसे कैद किया मैंने अपने केमरे में। वर्ल्ड ट्रेड पार्क के सीएमडी अनूप बरतारिया के लिखे इस क्वोट ने काफी सम्बलन दिया मुझे। जिस दौर से गुजर रहा हूँ, इसे काफी जरूरी था मुझसे मिल जाना। बात केवल दिखने वाले 'वार' की नहीं है, बात मन के अंतर्द्वंद्व की है मेरे लिए। और अभी तक मैं मन पर पत्थर रखकर चुप था मन के इस युद्ध में। इसे पढ़ने के बाद अब मौन-फेज में रहूंगा। इस क्वोट के 'पीस' को मैंने मौन रहने से लिया है क्योंकि मुझे लगता है अभी यही जरूरी है। मौन ही वह फेज हैं जहाँ से हम जहां भर के बदलते-फूटते रंग ऑब्जर्व कर पाते हैं और सामने वालों के मन पढ़ पाते हैं। उम्मीद करता हूँ अनूप बरतारिया के इस क्वोट को सोचने से मेरे मन का अकेलापन एकांत में बदले। बाकि देखते हैं, क्या होता है...


बहरहाल, जयपुर में वर्कशाॅप का दूसरा दिन था आज। बड़ी हाॅटल्स में रहने के कल्चर और माॅडर्निटी के नये मायनों को सीख रहा हूँ आजकल। सच बोलूँ तो नाईफ से ब्रेड पर बटर और जेम लगाकर भी जिंदगी में आज पहली बार खाया। ये तो आशिमा दीदी है, जो झेल लेती है मेरे ऐसे देहातीपन वाली बातें भी। घूमें खूब है अपन इधर-उधर, मगर स्टे अक्सर परिचितों के घर में या धर्मशालाओं में ही किया है अपन ने। गंगटोक और पणजी को छोड़ दें तो पूरा राजस्थान, कलकत्ता, दिल्ली, भोपाल, मुम्बई और इवन पौड़ी-गढ़वाल तक अपनी जान-पहचान ही काम आई। अब फाउंडेशन जाॅइन करने के बाद लगभग हर जगह स्टे किसी न किसी होटल में ही हो रहा है। चैक-इन, चैक-आउट के रूल्स, रूम्स को खोलने के लिए मास्टर कार्ड्स, बेंक्वेट-हाॅल, लाॅन्ड्री के लिए प्रोसेस और तीन तरह के चाकू और चम्मचों से खाना खाना - सब-कुछ अब सीख रहा हूँ। थ्री-स्टार होटल के इस बाथरूम में ग्लास वाला सेक्शन है नहाने के लिए, जिसमें कोई नल नहीं लगा है। एक शाॅवर सिलिंग पर है और हेंड-ऑपरेटेड नीचे ही स्टेंड में। फिल्मों में देखते हैं अपन ये सब, अभी उपयोग में ले रहे हैं।

सुबह फ्री होकर हम सब निकल लिये थे अपनी वर्कशाॅप के लिए स्टेट-ऑफिस। स्कूल्स में टीचर्स ऑब्जर्वेशन एरियाज, एक से बीस तक गिनती और एडिशन-सब्ट्रेक्शन पर क्लासेज थी आज। हमारे धोरीमन्ना वाले कृष्णा भैया राॅकस्टार है सच में। 'देखिये, आप गलत नहीं है' - कहते हुए उनके दोनों हाथों का अपना ही अंदाज सबको मोह लेता है। वहाँ से निपटकर हम आज फिर वर्ल्ड ट्रेड पार्क और गौरव टावर वाले माॅल में गये। डी-कोट डाॅनियर और कोटेल-मिलानो में ऑफर चल रहा है बाई-टू-गेट-फाॅर वाला दीपावली पर। हैदर भाई ने की है आज सबसे ज्यादा शाॅपिंग कोटेल-मिलानो से। होटल पहुँचते-पहुँचते हर बार रात की नौ हो जाती है हमें। आकर डिनर करके अभी अपने-अपने रूम में हैं...


कुल मिलाकर भौतिक रूप से तो जिंदगी जी रहा हूँ अभी। कई दफा यूँ लगता है जैसे जीवन ही अब शुरू हुआ है अपना तो। आशिमा दीदी, हैदर भाई और कृष्णा भैया का ये साथ थामें है मुझे अभी। सच कहूँ तो अगर इनका साथ नहीं होता तो शायद केवल सिसकियाँ आती यहाँ लिखने में भी। थोड़ा मैंने खुद सम्भाला है मन को इस बार और थोड़ा इन व्यस्तताओं और इन दोस्तों ने। बाकी टूटा हुआ तो आज भी हूँ। बस ये सब प्लास्टर का काम कर रहे हैं अभी मेरे मन के लिए। आज टाईम पर सो जाता हूँ, ताकि सुबह और ठीक कर सकूँ। देखता हूँ नींद आती है या नहीं....!

शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

18-10-2022

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