सिवाना डायरीज - 66
सिवाना_डायरीज - 66
"पतवार के बिना ही, मेरी नाव चल रही है।
ठहरा हुआ जमाना, मंजिल भी मिल रही है।।
अब क्या बताऊँ मोहन, आराम हो रहा है।
मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है..."
-स्व. विनोद अग्रवाल जी की आवाज में जब-जब भी सुनता हूँ ये भजन। निरा हो जाता हूँ मैं। हाँ निरा, निरा मतलब खाली। विचारशून्य। सौंप देता हूँ अपना सब-कुछ उसके हाथ में, जिसके हाथ में सबकी एक-न-एक डोर तो है ही। कई बार अपनी मनोहरा को वहीं पाता हूँ, या और स्पष्ट करूँ तो प्रेम से ही प्राप्ति लगती है। ईश्वर की भी और मनोहरा की भी। जब-जब भी सुनता हूँ ये भजन मैं और अधिक प्रेम में होता हूँ। सच कहूँ, शायद वो मेरा बेस्ट वर्जन होता हो...
बहरहाल, वर्कशाॅप का चौथा दिन। जयपुर भा गया है इस बार। काफी समय बाद इतना लम्बा यहाँ रुका हूँ। सामान्य दिनचर्या की बात करूँ तो सुबह उठकर रेडी हो जाओ। फिर ब्रेकफास्ट करो और निकल जाओ ऑफिस-वर्कशाॅप के लिए। सुबह साढ़े नौ से शाम छः तक वहीं और फिर कहीं न कहीं घुमकर नौ बजे तक वापस आ जाओ होटल में। डिनर करो और सो जाओ। बस यही। आज वर्कशाॅप में गिनमाला पर जोड़ और घटाव की संक्रियाएँ की। सुगमकर्ता धीरेंद्र जी ने लिये ज्यादा सेशन। वहाँ से निपट मैं आ गया था आज जयपुर की अपनी फेवरेट जगह जवाहर कला केंद्र उर्फ जेकेके। सौभाग्य से हस्तशिल्प प्रदर्शनी का अंतिम दिन था आज और मैं पहुँच गया टाईम पर। पपेट्स लिये हैं अपनी सिया और मनोहरा के लिए। एक-एक जोड़ा दोनों के लिए लेकर बहुत खुशी हो रही है मन में। सिया के लिए तो घोड़ा भी लिया एक। रात को होटल आकर डिनर किया और अपने कमरे में बैठे आज हम बाड़मेर के सब साथी। सब हिसाब-किताब बैठाकर ही उठे आज। थोड़ा मन व्यथित हुआ अभी शाम को ही जब दो फेस देखने को मिले एक ही शख्स के। खैर होता है ऐसा। कुछ-न-कुछ तो हमेशा सिखाती रहती है जिंदगी।
मन का ना ही पूछो। बहुत खुश है। मनोहरा चाहती थी कि पपेट्स लाऊँ मैं उनके लिए और खरीदकर आधा काम कर दिया है मैंने। सच में जयपुर आने का मुख्य उद्देश्य यही लग रहा था मुझे। आज पूरा हुआ। सब-कुछ ठीक है अभी। बाकि देखते हैं। सुबह चैक-आउट भी करना है होटल से। अभी तो शुभ रात्रि...
- सुकुमार
20-10-2022
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