सिवाना डायरीज - 67
सिवाना_डायरीज - 67
"हेलो! कहाँ हो?"
"रास्ते में।"
"घर आ रहे हो ना?"
"आ रहे हो!! मतलब? मैं समझा नहीं। आप कौनसा मेरे घर ही हो जो।"
"अच्छा! और मैं आपका घर पर इंतज़ार करती मिलूँ तो?"
"ऐसा अभी तो नहीं हो सकता। बाकि तो बातें हैं, बातों का क्या!!!"
"अच्छा। मैं आपसे मिलूँ या न मिलूँ। मगर यह कह दूँ कि घर पर आज आपकी पसंद की मूँग-दाल ठंडी हो रही हे, जल्दी आओ फिर?"
"नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। घर पर मूँग-दाल ही बनी हो, ये जरूरी नहीं!!!"
-वो इतना श्योर था क्योंकि आज घर पर खाने में क्या बनाऊँ, के जवाब में उसने माँ को 'उनकी पसंद' ही बोला था।
"अच्छा। ये बताओ अगर मूँग-दाल बनी होगी घर में, तो गले लगाओगे ना मुझे?"
"हाँ, पक्का। मगर ये सब इम्पोसिबल सा है।"
"हाहाहाहा। देखते हैं।"
-वह लगभग साढ़े दस बजे घर पहुँचा और देखता है सब्जी में आज बिल्कुल कम मिर्ची वाली उसकी पसंद की मूँग-दाल है। खाना खाकर अपने कमरे में आते ही वह फोन लगाता है।
"गज़ब यार। सच-सच बताओ हाउ इज इट पाॅसिबल! तुम्हें कैसे पता कि मेरे घर में क्या सब्जी बनी है आज?"
"कैसे-वैसे पर मत जाओ और गले लगाओ मुझे अब।"
"हाँ, लग जाओ यार..."
-और दोनों खो जाते हैं एक बार फिर एक-दूसरे में। अपनी ख्वाहिशों से गले मिलने के लिए रोज इसी तरह के प्रपंच करते रहते हैं वे लोग।
बहरहाल, बहुत दिनों बाद घर जाने वाला दिन आ ही गया। असल में क्या है ना कि सड़कें तो घर तलक रोज जाती है, दिन नहीं जाते। आज का दिन था हम सबके लिए, जो घर ले जाने को तैयार था हमें। मेथ्स-वर्कशाॅप का भी लास्ट दिन था। सुबह उठते ही रेडी होकर चैक-आउट की लाईन में लग गये थे हम सब लोग। फाउंडेशन के अधिकांश साथी उसी होटल में थे और सबको आज ही चैक-आउट करना था तो लेट हो गये सब ऑफिस पहुँचते-पहुँचते। सत्र भी थोड़ा देरी से ही शुरू हुआ आज। सुगमकर्ता दिनेश जी ने गुणा और भाग की मानक-कलन विधियों पर विस्तार से चर्चा की आज और अंत में आशीष जी ने पूरी कार्यशाला का समेकन। लगभग सवा चार बजे निकल गया था मैं ऑफिस से रेलवे-स्टेशन के लिए। जयपुर-नागपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस सही में सुपरफास्ट है। चार घंटे में भीलवाड़ा टिका देती है ये। आज पन्द्रह मिनट लेट थी, मगर पहुँच गया में सवा दस तक घर। सिया भूल चुकी है फिर से, तो देखते ही रो रही है। खाना-वाना खाकर अब अपने रूम में हूँ।
मन ठीक रहा दिन-भर। हर बार की तरह यही कहूँगा कि सब-कुछ मनोहरा के साथ अपनी टोनिंग पर डिपेंड करता है अपना। स्पेशली मन के मामले में। बाकि और ठीक चाहिए भी क्या, अगर मन ठीक हो तो। हाहाहाहा। अब नींद आने लगी है। सो जाते हैं अपने घर की नींद...
शुभ रात्रि...
- सुकुमार
21-10-2022
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