सिवाना डायरीज - 69
सिवाना_डायरीज - 69
"शुभं करोति कल्याणांरोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।"
-पूरे तीन साल बाद ढंग से दीवाली मनाई जा रही है अपने भारत में। तिथियों का सूतक एवं ग्रहण के कारण आगे-पीछे होना और मुहूर्तों का भी अलग-अलग आना चलता रहता है अपने यहाँ। जाने क्यों एक मानक पद्धति नहीं डिसाइड कर पाये सारे विद्वज्जन मिलकर। एक ही अखबार के भी अलग-अलग पन्नों में अलग-अलग आया है मुहूर्त का समय। धनतेरस आज थी और कल भी थी। रूपचौदस आज भी है और कल भी है। दीपावली कल है और परसों का दिन खाली है। गोवर्धन पूजा और भाईदूज उस खाली दिन के अगले दिन मिक्स में हैं। और इन सबके कारण वो अपने चौथ के चूरमे वाला त्योहार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी अपनी तारीख सेट नहीं कर पा रही है। चारों तरफ कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन है। देखते हैं क्या होता है आगे...
बहरहाल, घर पर दूसरा दिन। सच बोलूँ तो मन कर रहा था कि अभी ही निकल जाऊँ सिवाना। कभी-कभी ना आदमी अपनी प्राइवेसी चाहता है यार। सुबह से शाम तक का टाईम यूँ ही निकल गया। घरवालों की शिकायत रह ही गई कि कुछ भी हेल्प नहीं की और अपन थके भी बराबर ही। पीछे वाले लास्ट कमरे और पूरे प्लाॅट की सफाई में ही रहे माँ, खुशबू और गुड़िया पूरे दिन। लिस्ट में केवल नाम लिखवाने में मैं भी। खैर जब आपको अपने आस-पास के सारे ही लोगों से शिकायतें होने लगे तो समझ जाना चाहिए कि काम खुद पर करना है। मेरा मन सबसे दूर जाने का है। सबसे। पूरा शिड्यूल, शरीर, मन और माइंडसेट गड़बड़ा गया है अपना तो। कुछ भी ठीक नहीं लग रहा। अभी भी बस सो जाने का मन है। तीन दिन और निकालने हैं मुझे यहाँ। हाँ, अब निकालना शब्द काम में लिया है मैंने। जाने क्यों.....?
गुड नाईट...
- सुकुमार
23-10-2022
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