सिवाना डायरीज - 72

 सिवाना_डायरीज  - 72


बैल बचे ही कहाँ हैं अब? आज से लगभग पाँच साल पहले तक तो दिख जाती थी एक-आध बैलगाड़ियाँ अपने कस्बे में। अब नहीं दिखती एक भी। आज शाम वृषभ-पूजन होना था तो सुबह से ही मोहल्ले के बच्चे निकल गए थे बैल का अल्टरनेट ढूंढने। एक तो बुरी बात ये लगती है मुझे कि बैल-पूजन (गौधन-पूजन) के इस पवित्र त्योहार को 'बळद-भड़काबा वाळो दन' कहकर हमारे क्षेत्र में तो बंटाधार हो गया है इस दिन का। लड़के ढूंढ़-ढूंढ़कर लाते हैं बछड़ों को और उन्हें भांग पिला कंट्रोल में लाकर उन पर रंग-रोगन करते हैं। बैलों की जोड़ियों की संख्या अंगुलियों पर गिनने जितनी होती है और अपने सारे पटाखे लड़के एक-दूजे पर फेंककर खत्म करते हैं। एक-दूजे पर फेंकने के चक्कर में कुछ नहीं दिखता फिर उन्हें। कई बार महिलाओं के झुंड में फेंक दिये जाते हैं बम। ये सब देखना बहुत मुश्किल सा हो जाता है मेरे लिए। इसलिए लास्ट पाँच-छः सालों से गया ही नहीं हूँ मैं अपने पुर के विश्नोई मोहल्ले में। 


बहरहाल, गोवर्धन पूजा और भाई-दूज साथ-साथ थे आज। जोया, ईशू, कानू, आस्था, भोलू, शिवाय, प्रियांशी और मैं सुबह-सुबह स्टेडियम जा आये आज कई दिनों बाद। वहाँ इन बच्चों की रेस भी लगवाई। वापस आकर गोवर्धन पूजा के फोटोज लिये और फिर ढोकले खाये आज लगभग साल-भर बाद। राजू मामासा-भावना मामीसा भी घर ही थे आज लंच के टाईम। फिर जाकर गुरुदेव से भी मिल आया और राहुल-सुनील से भी। लगभग चार बजे सबके साथ माधव गौ विज्ञान अनुसंधान संस्थान, नौगावां जाना हुआ जहाँ सब कार्यक्रम थोड़े सिस्टमेटिक होते हैं। हालाँकि एक तरह का बढ़ता ....वाद हर बार की तरह फिर दिखा यहाँ, मगर ठीक है। जो जैसा चल रहा है, चलने दो अभी। शाम को शरद भैया, कुलदीप भैया, महिमा, रवीना और इशिता भी आये घर। शाम का खाना छोटे नानीजी के यहाँ हुआ जहाँ ननिहाल वाले सब मिल गये। अभी बस में हूँ। स्लीपर में लेटे-लेटे सोच रहा हूँ कि कितने जल्दी निकल गये हैं ना पाँच दिन! 


सच्ची बात कहूँ तो इस बार घर आने के दूसरे दिन ही मन हुआ कि सिवाना चला जाऊँ वापस। अब वो सहज मीठापन दिखता ही नहीं हैं कहीं। सब-कुछ बनावटी सा लगता है। मैं खुद के लिए भी यही महसूस करता हूँ। मनोहरा से जब बात करता हूँ तो बोल देता हूँ उससे ये सब। जाने क्यों इस बार घर जाना फाइनली अच्छा फील नहीं दे रहा है मुझे। सुबह मैं सिवाना में होऊँगा और नहीं जानता कि अब किस करवट जायेगी मेरी जिंदगी की ये पटरी। बस मुझे खूब काम करना है अब। फाउंडेशन के लिए भी और खुद के लिए भी। अभी तो झोंके आने लगे हैं नींद के। सो जाता हूँ...

गुड नाईट...


- सुकुमार 

26-10-2022

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