सिवाना डायरीज - 100
सिवाना_डायरीज - 100
"रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा।
जैसे कोई चुटकी ले नर्म-नर्म गालों में।।"
-बशीर बद्र जी का शेर है ये और पता नहीं क्यों पर कल से मैं बड़ा रोमेंटिक हुए जा रहा हूँ अकेले में ही। एक कविता की चार लाईन्स के बाद हरीश भाई भी बोल उठे की लक्षण ठीक नहीं दिख रहे तुम्हारे। महसूस कर रहा हूँ कि फिर से लौटना ही चाहिए मुझे उस दुनिया में जहाँ बस प्यार है। मैं किसी एक के भरोसे सारा कुछ पा लेना चाहता था। अब संभला हूँ। संभलकर जाना कहाँ हैं, ये अभी भी फिक्स नहीं है, मगर सम्भला हूँ बस।
खैर, सौंवा दिन है मेरा आज फाउंडेशन जाॅइन किये और अमावस्या भी। सुबह-सुबह ही फूलण वाले अपने मंदिर चला गया था। पूरे हवन में बैठा स्टार्ट से लेकर एंड तक। मजा आया। एक बुजूर्ग से बाऊजी चुन्नाराम जी के घर भी गया जो मेरे दादाजी के हमनाम भी है और दिखने में उनके जैसे भी। काॅफी पीकर घर पहुँचा तब तक साढ़े दस हो गई थी आज। उनका बहुत आग्रह है कि कभी छुट्टी के दिन रात को आओ। खूब सारी हथाई करेंगे। यहाँ हथाई से उनका मतलब बातचीत हैं। मारवाड़ी भाषा का शब्द है। घर से आज मैं अपनी वन ऑफ फेवरेट स्कूल निम्बेश्वर आ गया असेसमेंट के लिए। बच्चों के साथ दिन-भर रहा आज। गणित के असेसमेंट में काफी टाईम लग रहा है। चौथी और पाँचवी के ग्यारह बच्चों का ही हो पाया। ऑफिस आकर बस ऐसे ही बातचीत हुई हम तीनों के बीच और घर आकर सावे की खिचड़ी बनाई मैंने आज। खा-पीकर बस सोने के लिए बिस्तरों पर हूँ। बस यही रहा दिन तो। जहाँ लगाना चाहता हूँ, वो शै सुनहरी भी काफी है और अपनी पहुँच से ऊँची भी काफी लग रही है। व्हाट्सएप पर चैट होती रही दिन-भर। पर मुझे उधर से उत्तर देने की औपचारिकता लग रही है कई बार। बहरहाल, जो भी होगा, देखा जायेगा।
मन बहुत रहा बार-बार हुआ कि काॅल कर लूँ अपनी मनोहरा को। मगर, स्वाभिमान तो बचाये रखना ही पड़ेगा यार। इस बार अभी तक काफी ठीक रहा हूँ मैं वैसे। देखते हैं, आगे क्या होता है। बाकि जिंदगी तो चल ही रही है। अभी सो ही जाते हैं। गुड नाईट...
- सुकुमार
23-11-2022
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