सिवाना डायरीज - 101
सिवाना_डायरीज - 101
"साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ--(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना--
विष कहाँ पाया?"
- कभी-कभी लगता है अज्ञेय जी मुझ पर कर गये हैं ये कटाक्ष। अपने सभ्य और संस्कारित होने की केंचुली जाने कब साथ छोड़ देती है मेरा, मैं खुद ही नहीं जान पाता। सच तो यह है कि जब कोई काफी समय साथ/पास रहकर भी अगर कोई मेरी बड़ाई न करे, तो मुझे अच्छा लगता बंद हो जाता है। मैं इंतजार में होता हूँ कि जहाँ हूँ, वहाँ विशेष रूप से दिख क्यों नहीं पा रहा। अपने लिए ही सोच रहा था आज कि अगर कहीं कोई माॅटिवेशनल स्पीच देने की भी कहे मुझे, तो बोलने को आधा घंटे से ज्यादा कुछ नहीं है मेरे पास। और उसमें भी वही घिसी-पिटी दो-तीन कहानियाँ और एक कविता। सबके सामने प्रेम की ठीक-ठीक परिभाषा देते-देते भी थक चुका हूँ मैं, जबकि खुद उन पर रत्तीभर भी अमल नहीं कर पाता। बहुत बुरा महसूस कर रहा हूँ आजकल। अंदर ही अंदर घुट रहा हूँ।
खैर, दिन बराबर निकले जा रहे हैं। एक और निकल गया एक बुरी खबर वाली सुबह के साथ। फुफाजी शांत हो गये हैं। मम्मीजी का फोन आया था सुबह लगभग साढ़े छः बजे ही। आँखों के सामने एकदम से उनकी मुझे समझाने वाली तस्वीर बन गई कि बेटा अब शादी कर ले। दादाजी के बाद पगड़ी वाले फुफाजी भी चले गए अब। बहुत लगाव तो नहीं रहा कभी उनसे, मगर उनकी सरलता सिसकियाँ ला रही है बार-बार। दिन-भर निम्बेश्वर स्कूल वाले बच्चों के साथ रहा और शाम होते-होते ट्रेनिंग के लास्ट सेशन में। असेसमेंट वाले सारे पेपर ऑनलाइन फीड कर दिये हैं लेट तक ऑफिस रुककर। मनोहरा को काॅल की पर अटेंड नहीं किया उसने। अब करेगी भी नहीं शायद। मैसेज छोड़ने पर रात को आई काॅल। मन की सारी बातें ढंग से कह दी। वो कतई तैयार नहीं है अब फिर से लौटने को। मैंने भी स्वतंत्र किया से। हाँ बस कोशिश करूँगा कि अब वैसा बनूँ, जैसा वो चाहती है। दिन में हलवा और मैगी खाकर अमावस्या व्रत को पूरा किया। शाम को कुछ भी मन न था, तो बस दूध ही पिया। दिनेश भाई को बोल दिया है कल घर निकलने की।
मन संतुष्ट है अभी कि मनोहरा से मन की बात कह दी। वो न भी लौटे, तो भी उसके लिए यथासंभव प्रतीक्षा करूँगा मैं। अभी ये ही तय किया है। बाकि अब सो ही जाता हूँ। गुड नाईट...
- सुकुमार
24-11-2022
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