सिवाना डायरीज - 102

सिवाना_डायरीज  - 102

"कोयल अपना घोसला कभी नहीं बनाती। वह अपने अंडे दूसरों के घोसले में बनाती है। और जब उन अंडों में से पहला बच्चा निकलता है, वह बाकी बचे अंडों को गिराकर अपना कॉम्पिटिशन खत्म कर देता है। Life is a race. अगर भागोगे नहीं तो पीछे रह जाओगे।"
-जिंदगी जीने के कौशल में आज के जमाने में बेहद व्यावहारिक मगर नैतिक धरातल पर बेहद संवेदनहीन डायलॉग है ये थ्री-इडियट्स मूवी का। हारा हुआ महसूस करता हूँ जब व्यावहारिक जमीन पर पाता हूँ खुद को। बाकी रही नैतिक धरातल की बात, वो पूरा ठीक तो नहीं है। मैं जानता हूँ ये बात। बस अब ठीक करनी है।

बहरहाल, घर आना था आज। आ गया हूँ। सुबह ऑफिस पहुँचकर सुरेश भाई का बकाया काम निपटाया और फील्ड अड्डा पर टीचर्स अटेंडेंस फिल की। लगभग सवा तीन बजे वाली रोडवेज में बैठकर मोकलसर, रमणीया, बिशनगढ़, जालौर, आहोर, तखतगढ़ होते हुए सांडेराव पहुँचा शाम पौने सात बजे। यहाँ से देसूरी, चारभूजाजी और गोमती चौराहा होते हुए राजसमंद आया और फिर एक टेक्सी में अपने घर। रात को ग्यारह बजे घर आकर खाना खा पाया आज तो। भैया लेने आ गया था हाई-वे पर। फुफाजी रह-रहकर याद आ रहे हैं। माँ आज उधर भुआ के यहीं हैं। अपने रूम में आकर लेटा हूँ अभी ही।

मनोहरा को काॅल करने का बहुत मन हुआ आज। पर हर बार रोका खुद को। डर लग रहा है उनको खोने से। सो रहा हूँ अभी मगर वो जगी रहेगी आँखों में हमेशा...

- सुकुमार 
25-11-2022

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