सिवाना डायरीज - 103
सिवाना_डायरीज - 103
"वो है ही नहीं जब ख्वाहिशों के आसमां में।
तो हम भी क्यूँ हैं ऐसे बेकार के जहां में।।"
- सब-कुछ ठीक है, मगर कुछ है जो कम लग रहा है। कुछ है जो बहुत अकेला महसूस करा रहा है बार-बार। कुछ है जो एकदम निढ़ाल महसूस करवा देता है खुद को। कुछ है जो मार देता है एकदम से भीतर से। कुछ है जो कुचल देता है सारी ख्वाहिशें। कुछ है जो कम है मिल रहे इत्ते प्यार के बीच भी। बार-बार ये क्यूँ लगता है कि यूँ दूर होना जीवन का सबसे बड़ा नुकसान है! बहुत ऊहापोह में जी रहा हूँ आजकल। कुछ समझ नहीं आ रहा। पल में मन करता है कि अभी ही काॅल कर लूँ और पल में उनकी बताई खुशी याद आ जाती है। आदमी करे तो करे क्या! भरे मेले में अकेला हो जाता है।
बहरहाल, लगभग महीने भर बाद घर हूँ आज। दीपावली पर था लास्ट टाईम। फुफाजी का तीसरा है आज। नहा-धोकर जीजी(बुआजी) के यहाँ हो आया। गले लगकर रो पड़ी बुआजी। खुद को स्पेशल महसूस कर ऊब आने लगी है आजकल। पापाजी साथ लेकर जाते हैं, तो उनको बहुत खुशी मिलती है। मगर मैं बाहर हू आजकल। कोई नौकरी कर रहा हूँ। मास्टरों को ट्रेनिंग देता हूँ। ये सब बताते हुए पापाजी अच्छा महसूस करते हैं। मोती बासा देवली वालों की बैठक में यही सीन था। सुबह मामीसा के हाथों से बने स्वादिष्ट पोहे खाये फिर जीजी के यहीं खाना। पुष्पा भाभी और जसू भाभी का बहुत लाड है मुझ पर। शाम को तीसरे की धूप का कार्यक्रम था। लगभग चार सौ लोगों का खाना बनवाया जीजी ने। पथवारी के बालाजी के वहाँ था कार्यक्रम। लौटते ही सिया को सीने पर लगाये-लगाये झपकी आने लगी है।
आज पापाजी के कमरे वाले डबल-बेड पर ही है मैं और गोनु(ईशू)।
जीवन में से मन निकाल लें, तो सब-कुछ ठीक ही चल रहा है। मनोहरा बहुत याद आ रही है। मन चाह रहा है कि गले लग जाऊँ फिर उससे। मन चाह रहा है कि आँसू पी लूँ सारे उसके। मन कह रहा है कि भगवान बना लूँ। काश वो लौट आये। आज के टाईम पर ईश्वर से बस यही मांगूंगा कि काश मेरी मनोहरा लौट आये। काश!
- सुकुमार
26-11-2022
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