सिवाना डायरीज - 105

 सिवाना_डायरीज  - 105


"जो एक बार संघ का स्वयंसेवक होता है, वो हमेशा स्वयंसेवक होता है। और हाँ, मैंने उन्हें नहीं छोड़ा, उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मसला ये है कि अब संघ को भी वो ही कार्यकर्त्ता ठीक लगते हैं जो भाजपा को सपोर्ट करे। भले ही वे मंचों से यूँ कह दे कि संघ कार्यकर्त्ता को किसी राजनैतिक दल से कोई मतलब नहीं हैं, मगर ज़मीन पर जो बीजेपी का नहीं, वो संघ का नहीं हो सकता।"

- गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और संघ के पूर्व प्रचारक रहे शंकर सिंह वाघेला जी का इंटरव्यू सुन रहा था अभी लल्लनटाॅप चैनल पर। सौरभ भैया कितनी जोरदार तैयारी के साथ जाते हैं इंटरव्यू लेने! ये बात आप साक्षात्कार देखकर खुद ही समझ जायेंगे। शंकर सिंह वाघेला जी से काफी हद तक सहमत हूँ मैं। धरातल पर यही स्थिति है संघ की और पिछले काफी समय से तो संघ और भाजपा में अंतर कहाँ रह गया है! संघ के खंड कार्यवाह अपने वार्ड के पार्षद के साथ फोटो खिंचवाकर स्टेटस अपडेट करने से बड़े बन रहे हैं। खैर, कभी लिखूंगा इस विषय पर और भी।


बहरहाल, आ गया हूँ वापस अपने सिवाना। बेग की दोनों लेसेज रात को ही टूट गई थी, आज चप्पलें भी ले गया कोई बस से। मैं स्लीपर्स नीचे उतार कर ऊपर स्लीपर में स्लीप करने गया और कोई पहन गया अपनी स्लीपर्स। अबाणे पैर आया बस से उतरकर घर तक। आज से आत्मरक्षा और आंगनवाड़ी वाले दोनों प्रशिक्षण शिविर अपने वहीं होने थे तो उधर ही रुके अपन दिन-भर। अपने वाले ऑफिस में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और मेंटोर टीचर्स की ट्रेनिंग थी। घर आकर सीधा सोने का मन था, सो अभी बिस्तरों पर ही हूँ। और ऐसे ही चला गया आज का भी पूरा दिन। खूब कोशिश में हूँ कि इम्प्रूव करूँ सब, मगर नहीं हो पा रहा है।


मन रात की उनकी साफ 'ना' पर बड़ी और मोटी वाली चद्दर ढक रहा है आगे बढ़ जाने के नाम की। देखते हैं क्या होता है। अभी तो नींद इंतजार कर रही है। चलो, गुड नाईट...


- सुकुमार 

28-11-2022

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