सिवाना डायरीज - 78
सिवाना_डायरीज - 78
"हेलो, क्यूँ मुँह फुलाये हो दो दिन से?
जो कुछ भी भरा है मन में, बोलो"
-इसे उम्मीद थी उससे इन्ही लाईन्स की, मगर थोड़ी मिठास के साथ।
"नहीं, नहीं। कुछ भी नहीं। कहाँ फुलाये हूँ मुँह!
ठीक से तो बात कर रहा हूँ तुमसे।"
-इसे लगा बात को थोड़ा और खींचने पर शायद वो मिठास भी आ जायेगी।
"हाँ, नहीं फुला रखा हैं मुँह!
दिख रहा है वो तो जब से जोधपुर से आये हो, तब से ही।"
-उधर किसी के नाराज होने पर यूँ कारण पूछ लेना ही चरम है उनके पोलाईट होने का।
"थोड़ा ढंग से, मीठेपन से नहीं बोल सकती तुम? जब पता ही हैं तुम्हें तो!"
-इधर अब दरकने को था बांध। साफ-साफ कह दिया।
"यार विश...तुम जानते हो ना कि मैं ऐसे ही बोलती हूँ।
तुम्हारी तरह उतना साॅफ्ट नेचर है ही नहीं मेरा।"
-इस बार उसके ये बोलने में थोड़ा और मीठापन था।
"हम्म, मगर फिर भी।
चलो अब गले लगाओ।"
-इसका सख्तपना जनरली उसके थोड़े से मीठेपन से ही पिघल जाता है।
"हाँ...लगा लिया। और वो भी कसकर।
अब टेसूएँ मत बहाने लग जाना तुम।"
-ये महसूस कर रहा था उसका यूँ गले लगाना।
"लव यू..."
"हम्म। लव यू ठू..."
-और फिर इसके ठीक से नहीं चल रहे दिन आज से फिर से ठीक होने लगेंगे। इसको खूब विश्वास है इस बात पर...
बहरहाल, 13 दिनों की दीवाली के बाद आज खुले हैं स्कूल्स। इतनी छुट्टियों के बाद भी लगभग हर स्कूल में कुल नामांकन के आधे या आधे से कम ही थे बच्चे। अपने ऑफिस वाली मेला मैदान स्कूल के लगभग साढ़े चार सौ में से तीस-पैतीस बच्चे थे कुल। कानसिंह की ढाणी स्कूल में लगभग पचास में से बीस और निम्बेश्वर स्कूल में पैंतालीस में से चार। इन स्कूलों का इसलिए बता पा रहा हूँ क्योंकि गया था आज इन सब में। स्कूल्स का टाईम दस से चार हो गया है तो सुबह दलिया बना लिया था नाश्ते और लंच के काॅम्बो की फाॅर्म में। मगर शाम की चार होते-होते भूख लगने लगी जोर से। मंचूरियन ले जाकर ऑफिस में खाना पड़ा। अम्बा दीदी की स्कूल में गिनमाला से खुब हथाई की हम सब बच्चों ने। गिनना सीखने की समझ पर काम किया बच्चों के बीच।
मनोहरा से अच्छे संबंध जीवन में खुशियाँ ही घोलते हैं, एक बार फिर महसूस किया मैंने। खूब सारी बातें हुई और फिर से ले आये हम खुद को ठीक ट्रेक पर। सुबह जल्दी उठकर बाड़मेर जाना है बालोतरा वाले सौरभ भाई के साथ। चलो अभी सो ही जाते हैं फिर तो। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
01-11-2022
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