सिवाना डायरीज - 79
सिवाना_डायरीज - 79
दिल चरखे की एक तु डोरी, सूफी इसका रंग हाय।
इसमें जो तेरा ख्वाब पिरोया, नींदें बनी पतंग।।
दिल भरता नहीं, आँखें रजति नहीं - २
चाहे कितना भी देखती जाऊँ, वक्त़ जाए मैं रोक ना पाऊँ।
तु थोड़ी देर और ठहर जा सोणिया,
तु थोड़ी देर और ठहर जा...
-सिवाना से बाड़मेर आते हुए नये लड़कों के जैसे राजस्थान रोडवेज की एक सीट पर कानों में इयरफोन ठूँसे बैठा हूँ मैं। बहुत दिनों बाद कुछ सुनने का मन हुआ तो ये चला लिया। कुमार नाम के लिरिक राईटर ने लिखा है ये गीत। गीत कहूँगा तो कम होगा। यूँ कह दूँ कि उन्होंने लिखा है मेरे जैसे कइयों का मन। कुछ-कुछ लिखा हुआ ना, कहीं से भी पड़ जाये कानों में। उतर जाता है भीतर और घर लेता है बाहर से भी। आदमी बस एक तार की चाशनी हो जाता है।
बहरहाल, अब से तीन दिन बाड़मेर शहर की धरती पर लादेंगे अपना वजन। दो दिन तो आंगनवाड़ी कर्मचारियों के साथ काम करने संबंधित प्रशिक्षण है और एक दिन हमारे बाड़मेर की गणित टीम की बैठक। सुबह जल्दी ही निकल गये थे सिवाना से अपन और बालोतरा से सौरभ भाई के साथ बाड़मेर के लिए दूसरी बस पकड़ी। बायतू वाली टीम भी इसी बस में आ गई वहाँ से। रोडवेज बस स्टैंड के बाहर छोले-भटूरे निपटाकर अजीम प्रेमजी स्कूल आ गये सब। दिन-भर प्रशिक्षण रहा। चार ऑफलाईन सेशन और एक ऑनलाइन रहे। एसाॅसियेट स्वाति का बर्थ-डे था तो सभी ने मिलकर केक भी काटा। शाम को होटल कलिंगा में अपने रूम-मेट एक बार फिर से हैदर भाई है। नाॅन-वेज का मन होने के बाद भी मेरी इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने प्योर-वेज ही खाया खाने में।
मन ठीक है आजकल। ज्यादा नहीं सोचता ना! सहज रखने की कोशिश कर रहा हूँ खुद को। प्रेक्टिकल जीने की। कुछ उलझा हुआ हूँ पर उस सबको ठीक मोड़ दे दूँगा अब जल्दी ही। बाकि तो जय-जय।
शुभ रात्रि...
- सुकुमार
03-11-2022
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