सिवाना डायरीज - 82
सिवाना_डायरीज - 82
"चौक पुरावो माटी रंगावो
आज मेरे पिया घर आवेंगे।
खबर सुनाऊँ जो खुशी ये बताऊँ जो
आज मेरे पिया घर आवेंगे।।"
-मैं इस वाले फील में ही हूँ सुबह से। कल रात को लेट सोने के बाद भी जल्दी उठ गया आज। यही कोई लगभग पाँच बजे। रसोई के सारे सामानों को ढंग से पोंछा और साफ किया। गंदे कपड़े धोये। जिन्हें नहीं पहनता, उन्हें साईड किया। किराणा का खूब सारा सामान लाया। सब्जियाँ और फ्र्यूट्स भी। उन्हें रखने के लिए तीन बकेट्स वाला नया स्टेंड। छः नये प्लास्टिक के डिब्बे। नमकीन और बिस्किट्स और भी बहुत-कुछ। आज अपने माँ-पापा जो आ रहे थे सिवाना वाले घर। बहुत उत्साहित रहा दिन-भर। घर के सारे काम से दोपहर के बारह बजे तक फ्री हो पाया। इसके बाद महिलावास के मालियों का बेरा स्कूल में जा आया। मोहन जी, एकता मे'म और पीटीआई जी के साथ अपने स्केफोल्डिंग प्लान को लेकर चर्चा की। बीच-बीच में पापाजी से बात होती रही कि वे कहाँ तक पहुँचे।
लगभग सवा पाँच बजे अपने अमृत बाबू कार में लेकर आ ही गये सबको। सबमें माँ-पापा, गुड़िया, अमृत, हैप्पी और शिवाय शामिल है। दिनोंदिन खूब शैतान होता जा रहा हैं शिवाय। घर आकर चाय पीकर सभी अपने ऑफिस गये जहाँ सुरेश भैया पहले ही थे और थोड़ी देर में हरीश भाई भी आ ही गये। अपने ऊँचा वाले लोभ जी का बहुत मन है अपने पर। इतनी व्यस्तता में भी मेरे लिए हमेशा तैयार रहते हैं। बिस्तर की व्यवस्था करनी थी। लोभ जी बात करवा आये अपनी। हालाँकि बाद में जरूरत ही नहीं पड़ी, मगर फिर भी लोभ जी के मन को नमन करने का मन करता है। ऑफिस से आकर खाने में मूँग की दाल और भिंडी की सब्जी बनाई यहाँ। बिल्कुल घर वाली फीलिंग आई आज खाना खाने में। खाना खाकर लोभ जे यहाँ हो आये हम सब वापस। सबने आइसक्रीम भी निपटाई वहीं।
मन इस उत्साह में कि माँ-पापा आ रहे हैं, रो न सका। यूँ भी कह सकते है कि टाईम नहीं मिला इसे रोने का। होने वाली अपनी नज़रअंदाज़ी को उनकी 'दो दिन तो तुम व्यस्त हो' वाली बात ने ढक लिया। मैंने भी अब सोचा है कि ज्यादा निकट नहीं जाऊँगा। अगर ठीक लगे तो स्वागत है। अभी सो जाते हैं। सुबह उठकर गढ़ सिवाना के गढ़ पर जाना तय हुआ है अभी हम सब का। बाकी जय-जय। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
05-11-2022
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