सिवाना डायरीज - 85
सिवाना_डायरीज - 85
"मेरे नैना सावन भादो।
फिर भी मेरा मन प्यासा,
फिर भी मेरा मन प्यासा।।"
-आनंद बक्षी का लिखा और किशोर दा - लता दी का गाया ये गीत आजकल फिट बैठ रहा है अपने पे। गलत हो रहा है या सही! मगर ये जो भी हो रहा है, एक दिन होना ही था। आदमी कब तक भला बैठा रहेगा अपना मन बहलाकर ढलते सूरज को देखता, जबकि भोर सुनहरी लगती हो उसे। मेरे मन को खुश रखने के लिए आखिर वो क्यूँ खराब करे अपना मन रोज-रोज। एक तो ये प्रेम ऐसा है, जिसने अपनी खुद की कोई एक मानक परिभाषा तय नहीं की आज तक। तभी तो एक की तरफ से जो प्रेम दिख रहा होता है, दूसरी तरफ से वो दोस्ती का पहला पायदान भी नहीं। कई दफा मन बहलाने को फ्लर्ट करना भी यही है, और कई दफा पूरी जिंदगी दाँव पर लगा देना भी नहीं। जहाँ ये हो, वहाँ 'लव यू' का उत्तर भी नहीं मिलेगा कई बार और कई बार दोस्ती के पहले पायदान पर भी लेन-देन हो जायेगा। मैं क्यों बार-बार गुजर रहा हूँ यार उसी एक गली से! समझ नहीं आ रहा।
बहरहाल, गुरू नानक जयंती है आज। कार्तिक पूर्णिमा भी। त्योहार, त्योहार भी तब ही लगता है जब आप घरवालों के आस-पास हो। बचपने में जी लिये हैं सारे त्योहार, अब चाहकर भी नहीं जी पाते। एक दिन पहले शुरू किया घूमना, आज रुक गया वापस। आलसी होता जा रहा हूँ। बालोतरा-सिवाना ब्लाॅक्स की मीटिंग रही आज अपनी एलआरसी में ही। आगामी तीन-चार महीनों की योजना बताई दिनेश भाई ने। लंच सबने इंदिरा रसोई में किया आज। ठीक ही लगा। फिर चाय पीने सब अपने घर पहुँचे वहीं पास ही। लंच के बाद फिर मीटिंग और शाम को सुरेश जी के घर भाभीजी के हाथ की जलेबी, गुलाब-जामुन और नमकीन मिल गई। संध्या होते-होते अपन फिर अकेले हो गए अपने घर में। कुछ नहीं हो पा रहा ऑफिस के बाद। घर आकर बस लड़ने लगती है माथे की नसें और मैं इन्हें चुप कराते-कराते थक जाता हूँ।
मन अक्खड़ हो रखा है। ठीक से बात करने के काबिल भी नहीं। इंतजार नहीं करने के खूब सारे बहाने जुटा लिये हैं इसने। मगर एक कोना अभी भी मायूस है। मायूस है क्योंकि मन के निशान हफ्ते-भर में थोड़े मिटेंगे। जिंदगी जीने के तरीके सोचता हूँ तो मैच नहीं करते हमारे आपस में। बस एक प्रेम के नाम का आधार समझ रहा था मैं तब भी। अब वो भी अपना वाला अपनी तरफ ही रह गया। बस इसी माथापच्ची से परेशान हैं माथा। अब आँखें मूँदने का मन हो रहा है, शायद ये माथापच्ची भी थम जाये। शुभ रात्रि...
- सुकुमार
08-11-2022
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