सिवाना डायरीज - 86

 सिवाना_डायरीज  - 86


"प्रेम मनुष्य को अपनी ओर खींचने वाला चुम्बक है।"

-पता नहीं किसने कही है ये लाईन। मगर महिलावास के मालियों का बेरा वाली मिडिल स्कूल के ऑफिस में पुराने लिखे हुए पर सफेद कल्ली पोत दी है किसी पेंटर ने। मेरे अभी के हालातों को पूछे तो पद्मश्री मिलना चाहिए उसे। कतई सहमत नहीं हो पा रहा हूँ मैं उपर्युक्त पंक्ति से। मुझे खुद से दूर कर दिया है प्रेम ने। जाने क्यों? मगर कहना पड़ रहा है। नहीं लग रहा मन सच में कहीं भी। नहीं रहा जा रहा सहजता से। नहीं मिल रहा सुकून। हर तरह के जतन कर देख लिये पिछले कुछ समय से। मैं खुद से बहुत दूर हुआ हूँ पिछले काफी समय से। कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। चेहरे पर हँसी चिपकाये और खुद को समझदार दिखाने का चोला ओढ़े, घूम रहा हूँ दुनिया में। जाने क्यों इस बनावटीपन से बाहर नहीं आ पा रहा हूँ। करूँ तो करूँ क्या! कुछ समझ नहीं आ रहा।


खैर, परसों वाला क्रम कल तोड़कर आज फिर बनाने की कोशिश की। उठकर पढ़ तो नहीं सका मगर माॅर्निंग वाॅक पर जा आया। नाश्ते और लंच के लिए एक ही खिचड़ी बना ली थी सुबह-सुबह। अम्बा दीदी वाली स्कूल गया था आज लंच से पहले और लंच के बाद उच्च प्राथमिक विद्यालय, सोलंकियों का वास। सोलंकियों का वास स्कूल क्यों, इसका बहुत विशेष कोई कारण नहीं। बस मन कहीं ठीक से लग जाये इस कोशिश में। अपने सीमित दायरे में खोजने का मन था मन को ठीक महसूस करवाने वाला कोई कोना। शाम को ऑफिस से घर पहुँचकर आजकल सोने के अलावा कुछ नहीं बचता आजकल। शरीर और मन दोनों थके-थके से ही रहने लगे हैं। कई बार यूँ लग रहा है जैसे जिंदगी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा हूँ। 


मन बिल्कुल भी ठीक नहीं है। इंतज़ार भी है इसे किसी का और न आये तो जस्टीफाई करने के ढेर सारे बहाने भी है इसके पास। टूटन होने लगी है हर स्तर पर। कोई पावर-बूस्टर चाहिए अभी मुझे। कोई हो जिसके सामने मन रख सकूँ अपना। बाकि शरीर को रखने के लिए तो बिस्तर है ही। अभी सो ही जाता हूँ। शुभ रात्रि...


- सुकुमार 

09-11-2022

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